भारत का बंटवारा होने से आखिर क्यों खुश हैं कांग्रेस नेता नटवर सिंह, जानिए क्या कहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 10, 2020 07:18 PM2020-02-10T19:18:38+5:302020-02-10T19:18:38+5:30

नटवर सिंह ने महात्मा गांधी को एक महान और मोहम्मद अली जिन्ना को एक जटिल व्यक्ति बताया। उन्होंने कहा कि अगर देश का बंटवारा नहीं होता तो गांधी और जिन्ना का साथ रहना मुश्किल हो जाता। 

Former Foreign Minister Natwar Singh supporter of the partition | भारत का बंटवारा होने से आखिर क्यों खुश हैं कांग्रेस नेता नटवर सिंह, जानिए क्या कहा

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह।

Highlightsविभाजन से पहले कोलकत्ता के सांप्रदायिक दंगों में हिंदू और बिहार दंगों में मरने वाले मुस्लिम का उदाहरण देते हुए उन्होंने अपनी बात को सही ठहराया।मुस्लिम लीग के बारे में अपनी राय के पक्ष में नटवर सिंह ने दो सितंबर 1946 में गठित अंतरिम भारत सरकार का उदाहरण दिया।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने भारत का विभाजन होने पर खुशी जताई है। नटवर सिंह ने समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा कि यदि भारत का विभाजन नहीं हुआ होता, तो मुस्लिम लीग कांग्रेस सरकार को कार्य नहीं करने देती। इसलिए, मैं  बंटवारे का समर्थन करता हूं। मुस्लिग लीग देश को चलने नहीं देती और ऐसे में देश की समस्याएं बढ़ती चली जाती। 

इससे पहले नटवर सिंह ने राज्यसभा सांसद एमजे अकबर की नई किताब ‘गांधीज हिंदुज्म: द स्ट्रगल अगेंस्ट जिन्नाज इस्लाम’ के लॉन्चिंग पर भी इस विषय पर अपनी बात रखा। नटवर सिंह ने महात्मा गांधी को एक महान और मोहम्मद अली जिन्ना को एक जटिल व्यक्ति बताया। उन्होंने कहा कि अगर देश का बंटवारा नहीं होता तो गांधी और जिन्ना का साथ रहना मुश्किल हो जाता। 

विभाजन से पहले कोलकत्ता के सांप्रदायिक दंगों में हिंदू और बिहार दंगों में मरने वाले मुस्लिम का उदाहरण देते हुए उन्होंने अपनी बात को सही ठहराया। नटवर सिंह ने कहा, ‘‘मेरे विचार से मुझे खुशी है कि भारत का विभाजन हुआ क्योंकि अगर भारत का बंटवारा नहीं होता तो हमें और भी ‘सीधी कार्रवाई कार्रवाई दिवस’ देखने पड़ते-- पहली बार यह जिन्ना (मुहम्मद अली जिन्ना) के जीवनकाल में 16 अगस्त 1946 को हुआ, जिसमें हजारों हिंदू कोलकाता (तब कलकत्ता) में मारे गए और फिर उसके जवाब में बिहार में हिंसा की घटनाएं हुई जिसमें हजारों मुस्लिम मारे गए।’’


मुस्लिम लीग के बारे में अपनी राय के पक्ष में नटवर सिंह ने दो सितंबर 1946 में गठित अंतरिम भारत सरकार का उदाहरण दिया। और किस तरह से मुस्लिम लीग ने शुरुआत में (वायसराय की कार्यकारिणी) परिषद के उपाध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया था और बाद में केवल प्रस्तावों को खारिज करने के लिए इसमें शामिल हो गई। 

सिंह ने कहा, ‘‘इसलिए व्यापक स्तर पर आप यह कल्पना कीजिए कि अगर भारत का बंटवारा नहीं होता तो मुस्लिम लीग (शासन का) कामकाज हमारे लिए बहुत ही मुश्किल कर देती। साथ ही, उस समय एक हफ्ते में ही सरकार की स्थिति कमजोर हो जाती। उन्होंने (महात्मा) गांधी और जिन्ना का उल्लेख दो बहुत ही ‘‘महान’’ और ‘‘जटिल’’ व्यक्ति के रूप में किया। सिंह ने कहा, ‘‘ उनके साथ रहना असंभव होता क्योंकि गांधीजी के मानदंड बहुत ऊंचे थे और जिन्ना का स्वभाव बहुत ही अक्खड़ था जिनके साथ संभवत: मैं नहीं रह सकता था। ’’ 

उन्होंने वहां मौजूद लोगों से कहा कि वह कार्यक्रम में एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने गांधी को जीवित देखा है। पूर्व विदेशमंत्री ने कहा, उनका मानना है कि भारत के अंतिम गर्वनर जनरल सी राजगोपालचारी के मनाने पर महात्मा गांधी ने जिन्ना को महत्व दिया। उन्होंने कहा, कई तरह से और मेरा मानना है कि गांधी जी ने जिन्ना को महत्व दिया। वर्ष 1944 में गांधी जी मालाबार हिल स्थित जिन्ना हाउस 17 बार गए, लेकिन जिन्ना एक बार भी उनके यहां नहीं आए।’’ नटवर सिंह ने कहा, ‘‘फिर गांधीजी क्यों वहां गए? मैं जानता हूं क्योंकि श्री सी राजगोपालाचारी ने ऐसा करने के लिए उन्हें मनाया था।’’

 उन्होंने कहा, ‘‘ कई वर्षों तक जिन्ना कांग्रेस के सदस्य रहे, लेकिन जब गांधी फलक पर आए...तो जिन्ना अपने स्वभाव की वजह से उनके असहयोग आंदोलन में सहज नहीं महसूस कर पाए और क्रमिक रूप से अपने रास्ते अलग कर लिए। वर्ष 1928 में असली अलगाव हुआ, जब जिन्ना वकील बनने लंदन गए क्योंकि उन्होंने अपने लिए राजनीतिक भविष्य के बारे में सोचा था।’’ 

मुखर्जी के मुताबिक पुस्तक को अच्छी तरह से और गहरे शोध कर लिखा गया है जो विभाजन के इतिहास का विश्लेषण करने में अहम संदर्भ हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘ यह पुस्तक स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्ष के उन जरूरी अध्यात्म को रेखांकित करता है जिसका महात्मा गांधी ने समर्थन किया था। साथ ही यह जिन्ना के विभाजनकारी रंग को भी दिखाता है जो उन्होंने राजनीतिक लक्ष्य के लिए धर्म को दिया। ’’ 

मुखर्जी ने कहा, ‘‘यह इस बात का भी जिक्र करता है कि कैसे महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश के विभाजन के खिलाफ अंतिम समय तक डटी रही।’’ कार्यक्रम में मौजूद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि गांधी जी ने बयान दिया था कि वह 15 अगस्त को पाकिस्तान जाना चाहेंगे, यह उस बड़े दर्द का सांकेतिक प्रकटीकरण था, जो वह महसूस कर रहे थे।

 उन्होंने कहा, ‘‘यह महज बंटवारा नहीं था लेकिन गांधी ने बंटवारे के बाद की इस स्थिति को महसूस किया कि रिश्ते (भारत और पाकिस्तान के बीच) ऐसे होंगे जो संभवत: दोनों देशों को दर्द और दुख देंगे, जो सही साबित हुआ।’’ डोभाल ने कहा, ‘‘संभवत: 70 साल का इतिहास लंबा नहीं है। समय गुजरने के साथ हम अपने अनुभवों से सीखेंगे। संभवत: हम सभी प्रयोगों के बाद सही चीजें करेंगे। हमें एहसास होगा कि हमारा सह अस्तित्व संभव और वास्तविकता है तथा यही एक मात्र चीज अंतत: लाभदायक है।’’ इस पुस्तक को ब्लूम्सबरी ने प्रकाशित किया गया है और इसमें 1940 से 1947 के बीच की घटनाओं का उल्लेख है। (भाषा इनपुट के साथ)

Web Title: Former Foreign Minister Natwar Singh supporter of the partition

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