बिहार: सीएम नीतीश कुमार संग दो-दो हाथ करने की तैयारी में पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह, लाएंगे प्राइवेट बिल
By एस पी सिन्हा | Published: December 6, 2022 05:30 PM2022-12-06T17:30:20+5:302022-12-06T17:32:06+5:30
सुधाकर सिंह ने बताया एक गैर सरकारी विधेयक (प्राइवेट बिल) बिहार विधानसभा में प्रस्तुत करूंगा, जिसका नाम होगा "कृषि उपज और पशुधन विपणन एवं मंडी स्थापना विधेयक" है जिसको कृषकों, लघु उद्यमियों, एवं मंडी संचालकों से विमर्श के आधार पर तैयार किया गया।
पटना: बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने विभाग में भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के बाद भले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन किसानों की हित में लड़ाई लड़ने के लिए अभी भी वह नीतीश सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। राजद विधायक सुधाकर सिंह नीतीश सरकार के किसानों के लिए मंडी व्यवस्था को फिर से शुरू करने के खिलाफ नजर आ रहे हैं।
उन्होंने 44 साल बाद एक विधेयक लाने का फैसला किया है, जो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुसीबत बढ़ा सकती है। सुधाकर सिंह ने कहा है कि अगर ये विधेयक पास हो जाता है तो इससे बिहार के किसानों की बदहाली दूर होगी। शीतकालीन सत्र के दौरान वह प्राइवेट रूप से मंडी बिल को प्रस्तुत करेंगे।
सुधाकर सिंह ने बताया एक गैर सरकारी विधेयक (प्राइवेट बिल) बिहार विधानसभा में प्रस्तुत करूंगा, जिसका नाम होगा "कृषि उपज और पशुधन विपणन एवं मंडी स्थापना विधेयक" है जिसको कृषकों, लघु उद्यमियों, एवं मंडी संचालकों से विमर्श के आधार पर तैयार किया गया। यह बिल बिहार राज्य के सभी वर्गों के लिए लाभकारी होगा और बिहार राज्य की कृषि एवं अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में एक मील का पत्थर साबित होगा।
उन्होंने कहा कि बिहार सरकार ने 10 साल पहले ही किसानों के लिए एक रोड मैप तैयार किया था, लेकिन दुख की बात है कि बिहार के किसानों की स्थिति आज भी वही है, जो 10 साल पहले थी। किसानों की पेशानी दूर करने के लिए वे एक प्राइवेट विधेयक ला रहे हैं। सुधाकर सिंह ने ये भी कहा कि वे कल से वे बिहार के अलग-अलग राज्यों के दौरा करेंगे और किसानों से मिलकर कृषि पर चर्चा करेंगे।
पूर्व कृषि मंत्री ने कहा कि 2006 में कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) अधिनियम को समाप्त करने के बावजूद नए बाजारों के निर्माण और मौजूदा बाजार में सुविधाओं के सुदृढ़ीकरण में निजी निवेश बिहार में नहीं हुआ, जिसकी अपेक्षा कानून समाप्त करने के समय किया गया था, जिससे बाजार घनत्व कम हो गया। इसके अलावा, खरीद में सरकारी एजेंसियों की भागीदारी और अनाज की खरीद का पैमाना कम होना जारी रहा।
इस प्रकार, किसानों को उन व्यापारियों की दया पर छोड़ दिया जाता है, जो बेईमानी से कृषि उपज के लिए कम कीमत तय करते हैं। कम कीमत वसूली और कीमतों में अस्थिरता के लिए अपर्याप्त बाजार सुविधाएं और संस्थागत व्यवस्थाएं जिम्मेदार हैं" । ऐसे में यह बात स्पष्ट है कि बिहार के कृषि व्यवस्था में एक व्यापक बदलाव की जरूरत है।