उर्दू शायरी की अजीम शख्सियत रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी का जन्म 28 अगस्त 1896 को हुआ था। उनकी शायरी आसान थी लेकिन उसका प्रभाव गहरे तक असर करता है। उनकी शख्सियत के कई पहलू देखने को मिलते हैं। फिराक गोरखपुरी 3 मार्च 1982 को इस दुनिया से चले गए लेकिन उनकी बेहतरीन रचनाओं ने उन्हें अमर बना दिया। पढ़िए, जन्मदिन पर फिराक गोरखपुरी के लिखे कुछ चुनिंदा शेर...
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
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बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैंतुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
***तेरे आने की क्या उमीद मगरकैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
हम से क्या हो सका मोहब्बत मेंख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
***न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीदमगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
***मौत का भी इलाज हो शायदज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
***तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी होतुम को देखें कि तुम से बात करें