जानें पाकिस्तान अपने संविधान के तहत नागरिकता कैसे प्रदान करता है, इसके अल्पसंख्यकों को कौन से अधिकार प्राप्त हैं!

By अनुराग आनंद | Published: December 18, 2019 08:10 AM2019-12-18T08:10:15+5:302019-12-18T08:17:01+5:30

पाकिस्तान का संविधान "अल्लाह के नाम पर शुरू होता है। इसमें लिखा है कि "इन द नेम ऑफ अल्लाह मोस्ट बेनिफिसेंट एंड मर्सिफूल।" इसका अर्थ है कि सरकार इस संविधान में लिखी बातों को मानने के लिए राज्य बाध्य है, जिसका वायदा वह अल्लाह को साक्ष्य रखकर करेगा। वह अल्लाह जो ब्रह्मांड में सर्वाधिक उदार व दयालू है। 

Explained: How Pakistan grants citizenship, what provisions cover its minorities | जानें पाकिस्तान अपने संविधान के तहत नागरिकता कैसे प्रदान करता है, इसके अल्पसंख्यकों को कौन से अधिकार प्राप्त हैं!

 पाकिस्तान अपने संविधान के तहत नागरिकता कैसे प्रदान करता है, इसके अल्पसंख्यकों को कौन से अधिकार प्राप्त हैं!

Highlightsपाकिस्तानी संविधान ब्रह्मांड के संबंध में ईश्वर की संप्रभुता को स्वीकार करता है, और इसमें मुसलमानों और इस्लाम के संदर्भ भी शामिल हैं।संविधान सभा सदस्य श्रीश चंद्र चट्टोपाध्याय ने लियाकत से कहा, "राज्य में धर्म के लिए कोई जगह नहीं है ... राज्य धर्म एक खतरनाक सिद्धांत है।" क्या पाकिस्तान धर्म के आधार पर नागरिकता देता है?

भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम के कानून बनने के बाद तीन पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करना आसान हो जाएगा।  ऐसे में जब देश के अल्पसंख्यक इस कानून को संविधान के खिलाफ और अपने साथ छलावा बता रहे हैं, तो आइये जानते हैं कि भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में नागरिकता और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधान क्या हैं? 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना देश को एक "संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य" के रूप में घोषित करती है। "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों के साथ 42 वें संशोधन द्वारा 1976 में जोड़ा गया है। दुनिया में 60 लोकतांत्रिक देश ऐसे हैं जिसके संविधान में भगवान को संदर्भित किया गया है, जिनमें जर्मनी, ब्राजील, ग्रीस और आयरलैंड शामिल हैं।

इंडियन एक्सप्रेस पर लिखे गए एक लेख के मुताबिक,पाकिस्तान का संविधान "अल्लाह के नाम पर शुरू होता है। इसमें लिखा है कि "इन द नेम ऑफ अल्लाह मोस्ट बेनिफिसेंट एंड मर्सिफूल।" इसका अर्थ है कि इस संविधान में लिखी बातों को मानने के लिए राज्य बाध्य है, जिसका वायदा वह अल्लाह को साक्ष्य रखकर करेगा। वह अल्लाह जो ब्रह्मांड में सर्वाधिक उदार व दयालू है। 

इसके साथ ही पाकिस्तानी संविधान ब्रह्मांड के संबंध में ईश्वर की संप्रभुता को स्वीकार करता है, और इसमें मुसलमानों और इस्लाम के संदर्भ भी शामिल हैं।

जब 12 मार्च, 1949 को लियाकत अली खान द्वारा वस्तुनिष्ठ प्रस्ताव में इस प्रावधान को स्थानांतरित किया गया, तो तब संविधान सभा के गैर-मुस्लिम सदस्यों द्वारा इसका विरोध किया गया था। 

श्रीश चंद्र चट्टोपाध्याय ने कहा, "राज्य में धर्म के लिए कोई जगह नहीं है ... राज्य धर्म एक खतरनाक सिद्धांत है।" क्या पाकिस्तान धर्म के आधार पर नागरिकता देता है?

हालांकि, एक इस्लामिक राज्य, पाकिस्तान के पास नागरिकता के लिए कोई धार्मिक सिद्धांत नहीं है। इसका नागरिकता अधिनियम, 1951 कुछ मामलों में भारत के नागरिकता अधिनियम के समान है। या फिर इसे कुछ अधिक उदार कानून के रूप में देखा जा सकता है। 

इस कानून की धारा 6 यह बताती है कि 1 जनवरी, 1952 से पहले पाकिस्तान जाने वाला कोई भी व्यक्ति वहां का नागरिक है। धारा 3 अधिनियम (13 अप्रैल, 1951) से किसी को भी, या जिनके माता-पिता या दादा-दादी, कोई पाकिस्तान का रहने वाला था, उसे 31 मार्च, 1973 को पाकिस्तान में शामिल क्षेत्रों में नागरिकता प्रदान करता है।

पाकिस्तान ने पलायन कर वहां पहुंचने वाले किसी भी व्यक्ति को नागरिकता प्रदान की है। 13 अप्रैल, 1951 से पहले वापस अपने देश आने वाले सभी नागरिकों को पाकिस्तान ने नागरिकता प्रदान की है।  

भारत के कानून की तरह, पाकिस्तान में नागरिकता कानून के धारा 7 में कहा गया है कि 1 मार्च, 1947 के बाद भारत आया व्यक्ति पाकिस्तान का नागरिक नहीं होगा। यदि वह नागरिकता प्राप्त करना चाहता है तो उसे पुनर्वास प्रक्रिया  या स्थायी वापसी प्रक्रिया के तहत ही देश में नागरिकता दी जाएगी। 

इसके अलावा,पाकिस्तान कानून में धारा 4 यह बताती है कि अधिनियम के लागू होने के बाद पाकिस्तान में पैदा होने वाला प्रत्येक व्यक्ति जन्म से पाकिस्तान का नागरिक होगा। यदि भारत की बात करें तो भारत ने 1986 में संशोधनों के द्वारा प्रतिबंधात्मक योग्यता जोड़ी है। इसके तहत नागरिकता के तहत व्यक्ति के माता-पिता को भारतीय नागरिक होना चाहिए। इसके बाद 2003 नियम के मुताबिक, माता-पिता दोनों भारतीय नागरिक होने चाहिए और किसी भी परिस्थिति में कोई भी अवैध प्रवासी नहीं होना चाहिए।

वहीं, पाकिस्तान के मामले में यदि किसी व्यक्ति के जन्म के समय माता-पिता में से कोई एक पाकिस्तानी नागरिक है, तो पाकिस्तान अधिनियम की धारा 5, नागरिकता देती है।

पाकिस्तान में जम्मू-कश्मीर के प्रवासियों को तब तक पाकिस्तान का नागरिक माना जाता है जब तक कि पाकिस्तान के साथ कश्मीर का रिश्ता आखिरकार तय नहीं हो जाता है। ब्रिटिश निवासियों को इसी तरह नागरिक समझा जाता था। सरकार द्वारा राष्ट्रमंडल नागरिकों को नागरिकता भी दी जा सकती है।

पाकिस्तान और भारत के धर्म की स्वतंत्रता को परिभाषित करने के तरीके में क्या अलग है?

भारत के संविधान की प्रस्तावना के विपरीत, पाकिस्तान का संविधान स्पष्ट रूप से प्रस्तावना में ही स्पष्ट है कि "अल्पसंख्यकों के लिए स्वतंत्र रूप से पर्याप्त प्रावधान किए जाएंगे। संविधान में लिखा है कि धर्म की स्वतंत्रता का हक सबों को होगा और अपनी संस्कृति का विकास कर सकेंगे। यही नहीं इसके लिए सरकार पर्याप्त प्रावधान करेगी।

अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों के वैध हितों की रक्षा की बात भी पाकिस्तान के संविधान में लिखा गया है। बेशक, अल्पसंख्यकों के संबंध में अभिव्यक्ति की बीत करें तो "वैध हितों" के मामले में प्रतिबंधात्मक है।

भारत के विपरीत, पाकिस्तान सिर्फ अपने नागरिकों को ही धर्म की स्वतंत्रता व प्रचार-प्रषार करने का अधिकार देता है। वहीं, भारत में, विदेशियों सहित, सभी को धर्म की स्वतंत्रता व प्रचार करने का अधिकार प्राप्त है।  इसलिए विदेशी मिशनरियों को ईसाई धर्म का प्रचार करने का भारत में अधिकार है, लेकिन पाकिस्तान में नहीं है।

पाकिस्तान ने अल्पसंख्यकों के वैध हितों की रक्षा के लिए क्या कदम उठाए हैं! 

अनुच्छेद 36 कहता है कि राज्य संघीय और प्रांतीय सेवाओं में उचित प्रतिनिधित्व सहित अल्पसंख्यकों के वैध अधिकारों और हितों की सरकार द्वारा रक्षा की जाएगी, जबकि सच यह है कि धार्मिक अल्पसंख्यक भेदभाव का सामना करते हैं।

इसके अलावा, संविधान उनके लिए आरक्षण का प्रावधान करता है और  नेशनल असेंबली में भी अल्पसंख्यकों के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं। बलूचिस्तान की बात करें तो यहां अल्पसंख्यकों की आबादी केवल 1.25% है। उनके लिए आरक्षण 4.62% है। वहीं, पाकिस्तान के पंजाब में, वे 2.79% अल्पसंख्यक हैं और 2.16% आरक्षण रखते हैं। सिंध में, वे 8.69% अल्पसंख्यक हैं जिसे 5.36% आरक्षण मिलता है। 


1961 की जनगणना से गैर-मुस्लिम आबादी आज के पाकिस्तान में घटकर 2.83 प्रतिशत हो गई। यह 1972 में 3.25 प्रतिशत, 1981 में 3.30 प्रतिशत और 1998 में 3.70 प्रतिशत हो गया।

क्या पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए व्यक्तिगत कानून हैं?

हां। यद्यपि पाकिस्तान के संविधान में यह प्रावधान है कि राज्य के धर्म के साथ असंगत होने वाले कानूनों को असंवैधानिक माना जाएगा। लेकिन, पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 227 (3) में इस प्रावधान से अल्पसंख्यकों के व्यक्तिगत कानून को छूट दी गई है। 

भारत की बात करें तो संविधान के साथ मेल नहीं खाने वाला अल्पसंख्यकों का  पर्सनल लॉ का कोई भी प्रावधान लगभग शून्य और शून्य है। इस प्रकार ट्रिपल तालक को 2017 में अमान्य घोषित कर दिया गया।

2016 में, सिंध प्रांत, जिसमें पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या सबसे ज्यादा है, ने जबरन धर्म परिवर्तन कानून पारित कर दिया। पंजाब विधानसभा ने 2018 में सिख आनंद विवाह अधिनियम बनाया।
 

English summary :
Explained: How Pakistan grants citizenship, what provisions cover its minorities


Web Title: Explained: How Pakistan grants citizenship, what provisions cover its minorities

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