सहानुभूति की फसल काटने की कवायद महंगी पड़ रही महबूबा को

By सुरेश डुग्गर | Published: January 5, 2019 05:09 AM2019-01-05T05:09:28+5:302019-01-05T05:09:28+5:30

ऐसा वे पहली बार वर्ष 2002 के चुनावों में कर चुकी हैं और फसल को काट भी चुकी हैं। पर इस बार उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

Empathy is going to cost Mehbooba to be expensive | सहानुभूति की फसल काटने की कवायद महंगी पड़ रही महबूबा को

फाइल फोटो

सत्ता से बाहर होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने फिर से अपना पुराना हथियार इस्तेमाल करना आरंभ किया है। वे सहानुभूति की फसल को वोटों में तब्दील करने की मुहिम में जुट गई हैं। इसकी खातिर वे अब एक बार फिर आतंकियों के परिवारों के दर्द पर ‘हीलिंग टच’ लगाने लगी हैं जो अन्य विरोधी पार्टियों को नागवार गुजर रहा है। नतीजतन महबूबा को विरोधी दलों के नेताओं के कटाक्ष की बौछार को भी सहन करना पड़ा है जिसका परिणाम ट्विट्र पर छिड़ने वाली जंग भी है।

पिछले कुछ दिनों से महबूबा ने आतंकियों के परिवारवालों पर कथित अत्याचारों के आरोप मढ़ते हुए जो मोर्चा राज्यपाल शासन के खिलाफ खोला उससे स्पष्ट हो गया था कि वे एक बार फिर सहानुभूति की फसल को काटना चाहती हैं और उसके जरिए सत्ता हासिल करने का उनका लक्ष्य है। ऐसा वे पहली बार वर्ष 2002 के चुनावों में कर चुकी हैं और फसल को काट भी चुकी हैं। पर इस बार उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और नेकां के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और महबूबा के बीच ट्विटर पर जंग भी हुई है। भाजपा तथा सज्जाद गनी लोन भी इसमें कूद चुके हैं। उमर ने तंज कसते हुए कहा है कि बुरी तरीके से खराब हो चुकी छवि को अब वह साफ करने की कोशिश कर रही हैं। आपरेशन आल आउट की वह आर्किटेक्ट रही हैं। इसके चलते 2015 से अब तक सैंकड़ों आतंकी मारे जा चुके हैं। अब वह एक आतंकी से दूसरे के घर जाकर अपनी दागदार छवि को सुधारने की कोशिश कर रही हैं।

उमर ने ट्वीट किया कि उन्होंने भाजपा को खुश करने के लिए आतंकियों की मौत को मंजूरी दी। अब वह मारे जा चुके आतंकियों का इस्तेमाल कर मतदाताओं को खुश करने में जुटी हैं। जनता को वह इतनी आसानी से धोखा खाने वाला कैसे समझ सकती हैं।

इस पर महबूबा ने जवाबी ट्वीट कर याद दिलाया कि 1996 से 2002 तक नेकां के शासनकाल में इख्वानों के जरिये खूनी खेल खेला गया। पीडीपी अपने लोगों तक पहुंच बनाने में विश्वास करती है। पीडीपी यह जानना चाहती है कि वह महबूबा मुफ्ती को अपमानित करना चाहते हैं या फिर नेकां की राजनीति है कि मासूमों का खून बहता रहे।

इस पर उमर ने फिर ट्वीट किया कि बॉस, यदि आप अपने एक्शन को लेकर पाखंड में जीना चाहती है तो मैं अपमानित करने वाला कौन हूं। वह क्या दूध या टाफी लेने गए थे, यह क्या उनके आउटरिच का हिस्सा है।

फिर महबूबा ने ट्वीट किया कि मेरा इन परिवारों के यहां जाना आपके लिए परेशानी पैदा नहीं करेगा। हमें चाहिए कि उन तक पहुंचा जाए क्योंकि उन्हें दूसरे की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है।

इस जंग में भाजपा भी कूद चुकी है तो पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद गनी लोन भी। भाजपा नेता अशोक कौल ने कहा कि यह राजनीतिक नौटंकी है। 2016 में बुरहान वानी के मारे जाने के बाद भड़की हिंसा के दौरान कई लोगों के मारे जाने पर उन्होंने कहा था कि क्या वे टाफी या दूध लेने गए थे। तो सज्जाद गनी लोन कहते थे कि नेकां और पीडीपी जो अभी थोड़े दिन पहले एक थे अब अलग कैसे हो गए। इस पर पीडीपी का ट्वीट कहता था कि सज्जाद गनी लोन की पार्टी के हाथ कश्मीरियों के खून से सने हुए हैं। अब देखना यह है कि यह जंग कहां जाकर रूकती है। 

Web Title: Empathy is going to cost Mehbooba to be expensive

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