आठ संसदीय स्थायी समितियों का पुनर्गठन किया गया, कांग्रेस नेता पी चिदंबरम और जयराम नरेश को मिली अहम जिम्मेदारी
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: August 29, 2023 12:00 PM2023-08-29T12:00:37+5:302023-08-29T12:23:56+5:30
31 सदस्यीय गृह पैनल में वरिष्ठ कांग्रेस राज्यसभा सांसद पी चिदंबरम को भी जगह दी गई है। राज्यसभा के सभापति ने चिदंबरम को गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति के सदस्य के रूप में ऐसे समय में नियुक्त किया जब पैनल तीन प्रस्तावित विधेयकों पर चर्चा कर रहा है।
नई दिल्ली: संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने आठ संसदीय स्थायी समितियों (डीआरएससी) का पुनर्गठन किया है। इसमें से एक 31 सदस्यीय गृह पैनल में वरिष्ठ कांग्रेस राज्यसभा सांसद पी चिदंबरम को भी जगह दी गई है। राज्यसभा के सभापति ने चिदंबरम को गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति के सदस्य के रूप में ऐसे समय में नियुक्त किया जब पैनल तीन प्रस्तावित विधेयकों पर चर्चा कर रहा है। इसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS) लाने का प्रस्ताव, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट) की जगह भारतीय साक्ष्य बिल 2023 लाने का प्रस्ताव शामिल है। तीनों विधेयक 11 अगस्त को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा संसद में पेश किए गए थे।
संसद में 24 विभाग-संबंधित स्थायी समितियाँ (DRSCs) हैं। इनमें से प्रत्येक समिति में 31 सदस्य हैं। इनके सदस्यों में 21 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से होते हैं। गृह मंत्रालय की समिति में पी चिदंबरम की नियुक्ति कांग्रेस के पी भट्टाचार्य की सेवानिवृत्ति के बाद खाली हुई जगह के रूप में हुई। कांग्रेस पार्टी के लोकसभा सांसद अधीर रंजन चौधरी पहले से ही भाजपा सांसद बृज लाल की अध्यक्षता वाले होम पैनल के सदस्य हैं।
इसके अलावा, राज्यसभा सभापति ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश को विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन समिति का अध्यक्ष भी नियुक्त किया है। बता दें कि छह प्रमुख संसदीय समितियों - गृह, आईटी, रक्षा, विदेश, वित्त और स्वास्थ्य - के अध्यक्ष बीजेपी या एनडीए गठबंधन के सदस्य हैं।
क्या है संसदीय समिति और उसके कार्य
संसदीय समिति सांसदों का एक पैनल है जिसका गठन अध्यक्ष या सभापति के द्वारा किया जाता है। समिति अध्यक्ष/सभापति के निर्देशन में कार्य करती है और यह अपनी रिपोर्ट सदन या अध्यक्ष/सभापति को प्रस्तुत करती है। जब संसद के किसी भी सदन में एक विधेयक प्रस्तुत किया जाता है लेकिन उस पर व्यापक चर्चा और उसके बारीक अध्ययन की जरूरत होती है तो यह कार्य संसदीय समितियां ही करती हैं।
ये समितियाँ एक छोटी-संसद के रूप में कार्य करती हैं, क्योंकि उनके पास विभिन्न दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद होते हैं। संसदीय समितियों के पास किसी बिल के अध्ययन के लिए पर्याप्त समय होता है। ये समितियां विषय को समझने के लिए विशेषज्ञों की राय भी लेती हैं। जब इन समितियों को बिल भेजे जाते हैं, तो उनकी बारीकी से जाँच की जाती है और जनता सहित विभिन्न बाहरी हितधारकों से इनपुट मांगे जाते हैं। हालाँकि समिति की सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं।