Supreme Court Order On Child Porn: बाल ‘पॉर्न’ देखना और डाउनलोड करना पॉक्सो-आईटी कानूनों के तहत अपराध, सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य बातें पढ़िए, क्या-क्या कहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 23, 2024 22:10 IST2024-09-23T22:08:56+5:302024-09-23T22:10:51+5:30

Supreme Court Order On Child Porn: तिरुवल्लूर जिले की सत्र अदालत में महिला नीति मंद्रम (त्वरित अदालत) की अदालत में आपराधिक कार्यवाही बहाल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है...।

Egregious Error By High Court Big Supreme Court Order On Child Porn Watching downloading child porn crime under POCSO-IT laws read main points | Supreme Court Order On Child Porn: बाल ‘पॉर्न’ देखना और डाउनलोड करना पॉक्सो-आईटी कानूनों के तहत अपराध, सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य बातें पढ़िए, क्या-क्या कहा

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Highlightsदुनिया भर के समाजों को त्रस्त कर रखा है तथा भारत में यह गंभीर चिंता का विषय है। उच्च न्यायालय ने आक्षेपित निर्णय पारित करने में गंभीर त्रुटि की है।बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून तथा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून के तहत अपराध नहीं है।

Big Supreme Court Order On Child Porn: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि बच्चों से संबंधित किसी भी अश्लील सामग्री को अपने पास रखना भी यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानूनों के तहत अपराध माना जाएगा, भले ही उनका आगे प्रसार न किया गया हो। शीर्ष अदालत ने कहा कि "बच्चों का यौन शोषण ऐसा मुद्दा है जो व्यापक भी है एवं गहरी जड़ें जमा चुका है। इस मामले ने दुनिया भर के समाजों को त्रस्त कर रखा है तथा भारत में यह गंभीर चिंता का विषय है।"

न्यायालय ने इस मुद्दे पर मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को "बेहद खराब" करार देते हुए खारिज कर दिया। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को सोमवार को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल पॉर्नोग्राफी देखना और डाउनलोड करना बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून तथा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून के तहत अपराध नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि उच्च न्यायालय ने आक्षेपित निर्णय पारित करने में गंभीर त्रुटि की है।

हमारे पास इस निर्णय को रद्द करने और तिरुवल्लूर जिले की सत्र अदालत में महिला नीति मंद्रम (त्वरित अदालत) की अदालत में आपराधिक कार्यवाही बहाल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है...।’’ न्यायालय ने सुझाव दिया कि संसद को कानून में संशोधन कर ‘बाल पॉर्नोग्राफी’ शब्द को बदलकर ‘‘बच्चों के साथ यौन शोषण और अश्लील सामग्री’’ करने पर विचार करना चाहिए।

इसने अदालतों से ‘बाल पॉर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल न करने के लिए कहा। पीठ ने बाल पॉर्नोग्राफी और उसके कानूनी परिणामों पर कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किए। इसने कहा, ‘‘हमने संसद को सुझाव दिया है कि वह पॉक्सो में संशोधन करे..ताकि बाल पॉर्नोग्राफी की परिभाषा बदलकर ‘बच्चों के साथ यौन शोषण और अश्लील सामग्री’ किया जा सके। हमने सुझाव दिया है कि एक अध्यादेश लाया जा सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने उस याचिका पर अपना फैसला दिया जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने कहा कि इस बीच, फैसले में सभी अदालतों को "यह ध्यान में रखना होगा कि 'बाल पॉर्नोग्राफी' शब्द का इस्तेमाल किसी भी न्यायिक आदेश या निर्णय में नहीं किया जाएगा, बल्कि इसके स्थान पर 'बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री' (सीएसईएएम) शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए"। पीठ ने कहा, ‘‘पॉक्सो अधिनियम की धारा 15 में तीन अलग-अलग अपराधों का प्रावधान है, जो उपधारा (1), (2) या (3) के तहत निर्दिष्ट किसी विशेष इरादे से किए जाने पर किसी भी बाल पॉर्नोग्राफिक सामग्री के भंडारण या कब्जे के अपराध से जुड़ा है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘यह एक अपराध की प्रारंभिक प्रकृति और स्वरूप में है, जो किसी बच्चे से जुड़ी किसी भी पॉर्नोग्राफिक सामग्री को अपने पास रखने के मामले में दंड का प्रावधान करता है, जब ऐसा किसी वास्तविक प्रसारण आदि की आवश्यकता के बिना किसी विशिष्ट इरादे से किया जाता है।’’ पीठ ने पॉक्सो अधिनियम की धारा 15 के तहत अपराध के तीन पहलुओं का उल्लेख किया।

इसने कहा कि धारा 15 की उप-धारा (1) "किसी भी बाल पॉर्नोग्राफिक सामग्री को हटाने, नष्ट करने या रिपोर्ट करने में विफलता के मामले में दंड का प्रावधान करती है, जो इसे साझा करने या प्रसारित करने के इरादे से किसी व्यक्ति के पास संग्रहीत पाई गई है"। किसी भी सामान्य अपराध के एक आवश्यक घटक आपराधिक मकसद (मेन्स रिया) का जिक्र करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो प्रावधान के तहत आवश्यक इरादे को ‘वास्तविक कार्य’ से ही प्राप्त किया जाना है।

न्यायालय ने कहा, "पुलिस और अदालत यदि किसी भी बाल पॉर्नोग्राफी के भंडारण या कब्जे से जुड़े किसी भी मामले की जांच करते समय पाते हैं कि धारा 15 की कोई विशेष उपधारा लागू नहीं होती है, तो उन्हें इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए कि पॉक्सो की धारा 15 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

यदि अपराध धारा 15 की एक विशेष उपधारा के अंतर्गत नहीं आता है, तो उन्हें यह पता लगाने का प्रयास करना चाहिए कि क्या यह अन्य उपधाराओं के अंतर्गत आता है या नहीं।" फैसले में कहा गया है कि अदालतें किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की राय ले सकती हैं।

आईटी कानून के प्रावधानों पर बात करते हुए, इसने कहा कि धारा 67बी एक व्यापक प्रावधान है, जिसे बच्चों के ऑनलाइन शोषण और दुर्व्यवहार के विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक रूपों से निपटने और दंडित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। पीठ ने अपने 200 पन्नों के फैसले में सुझाव दिया कि व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करना संभावित अपराधियों को रोकने में मदद कर सकता है।

पीठ के अनुसार, इन शिक्षा कार्यक्रमों में बाल पॉर्नोग्राफी के कानूनी और नैतिक प्रभावों के बारे में जानकारी शामिल होनी चाहिए। फैसले में कहा गया है, ‘‘इन कार्यक्रमों के जरिये आम गलतफहमियों को दूर किया जाना चाहिए और युवाओं को सहमति एवं शोषण के प्रभाव की स्पष्ट समझ प्रदान की जानी चाहिए।’’

शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि प्रारंभिक पहचान, हस्तक्षेप और वैसे स्कूल-आधारित कार्यक्रमों को लागू करने में स्कूल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जो छात्रों को स्वस्थ संबंधों, सहमति और उचित व्यवहार के बारे में शिक्षित करते हैं और समस्याग्रस्त यौन व्यवहार (पीएसबी) को रोकने में मदद कर सकते हैं।

न्यायालय ने कहा कि बच्चों का यौन शोषण एक व्यापक और गहरी जड़ वाली समस्या है, जिसने दुनिया भर के समाजों को परेशान किया है और भारत में यह "गंभीर चिंता" का विषय रहा है। शीर्ष अदालत ने पॉस्को अधिनियम, 2012 के विधायी इतिहास और योजना का उल्लेख करते हुए कहा कि इस कानून के लागू होने से पहले देश में नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए समर्पित एक विशिष्ट कानूनी ढांचे का अभाव था। फैसले में कहा गया है कि इस कमी को पूरा करने तथा बच्चों को यौन अपराधों से बचाने तथा उन्हें यौन हमले, यौन उत्पीड़न और पॉर्नोग्राफी के अपराधों से बचाने के लिए एक मजबूत कानूनी तंत्र प्रदान करने के लिए पॉक्सो अधिनियम लाया गया था।

उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी को 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी, जिस पर अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप था। इससे पहले, मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को त्रुटिपूर्ण बताते हुए उच्चतम न्यायालय इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया था।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि बाल पॉर्नोग्राफी देखना और महज डाउनलोड करना पॉक्सो कानून तथा आईटी कानून के तहत अपराध नहीं है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि आजकल बच्चे पॉर्नोग्राफी देखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और समाज को ‘‘इतना परिपक्व’’ होना चाहिए कि वह उन्हें सजा देने के बजाय उन्हें शिक्षित करे।

उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ता संगठनों की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एच एस फुल्का की दलीलों पर गौर किया कि उच्च न्यायालय का फैसला इस संबंध में कानून के विरोधाभासी है। वरिष्ठ अधिवक्ता फरीदाबाद में स्थित एनजीओ ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस’ और नयी दिल्ली स्थित ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की ओर से अदालत में पेश हुए।

ये गैर सरकारी संगठन बच्चों की भलाई के लिए काम करते हैं। उच्च न्यायालय ने पॉक्सो कानून, 2012 और आईटी कानून 2000 के तहत एस. हरीश के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द कर दिया था। अदालत ने कहा था कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67-बी के तहत अपराध साबित करने के लिए व्यक्ति को बच्चों के यौन कृत्य या आचरण से संबंधित सामग्री तैयार करने, प्रकाशित अथवा प्रसारित करने में लिप्त होना चाहिए। इसने कहा था कि इस प्रावधान को सावधानीपूर्वक पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री देखना सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67-बी के तहत अपराध नहीं है।’’

अदालत ने कहा कि भले ही आईटी अधिनियम की उक्त धारा को व्यापक रूप से वर्णित किया गया है, लेकिन यह उस मामले को कवर नहीं करता है, जहां किसी व्यक्ति ने अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट में केवल बच्चों की अश्लील सामग्री डाउनलोड की हो और उसे केवल देखा हो, तथा इससे अधिक कुछ नहीं किया।

मद्रास उच्च न्यायालय ने हालांकि, बच्चों के पॉर्नोग्राफी देखने को लेकर चिंता जताई थी। इसने कहा था कि पॉर्नोग्राफी देखने से किशोरों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है जिससे उनके मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित होंगे। उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को सलाह दी थी कि अगर उसे अब भी पॉर्नोग्राफी देखने की लत है तो वह काउंसलिंग करा सकता है।

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