यूपी में जयंत को साधने में जुटी भाजपा, साथ आने पर केंद्र और राज्य में मिलेगा मंत्री पद!

By राजेंद्र कुमार | Published: February 7, 2024 09:17 PM2024-02-07T21:17:45+5:302024-02-07T21:18:55+5:30

बताया जा रहा हैं कि विधानसभा चुनावों के बाद जिस तरह से सपा मुखिया अखिलेश यादव ने रालोद नेताओं को अपना पिछलग्गू बनाने का प्रयास किया। फिर आगामी लोकसभा चुनावों के लिए पश्चिम यूपी में रालोद को अपनी मर्जी वाली सात सीटें देने का ऐलान किया, वह जयंत को पसंद नहीं आया।

Effort to bring Jayant Chaudhary into BJP camp Rashtriya Lok Dal Lok Sabha Elections 2024 | यूपी में जयंत को साधने में जुटी भाजपा, साथ आने पर केंद्र और राज्य में मिलेगा मंत्री पद!

राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के मुखिया जयंत चौधरी (फाइल फोटो)

Highlightsयूपी में जयंत को साधने में जुटी भाजपाएक केंद्रीय मंत्री की देखरेख में चल रही मुहिमभाजपा के साथ आने पर केंद्र और राज्य में मिलेगा मंत्री पद

लखनऊ: बीते विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के मुखिया जयंत चौधरी को साधने में नाकाम रहा भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व एक बाद फिर जयंत चौधरी को अपने साथ जोड़ने के मुहिम में जुट गया है। इस मुहिम की कमान एक केंद्रीय मंत्री संभाल रहे हैं। यह मंत्री जयंत के अमेरिका में रह रहे रिशतेदारों के जरिए जयंत तक पार्टी का संदेश पहुंचा रहे हैं। रालोद सूत्रों के अनुसार, जयंत को भाजपा के साथ जुड़ने पर यूपी और केंद्र की सरकार में मंत्री पद दिए जाने के साथ ही तीन लोकसभा सीटें देने का आफ़र दिया गया है। कहा जा रहा है कि जयंत चौधरी पश्चिम उत्तर प्रदेश में छह तथा यूपी से सटे राजस्थान में भी के लोकसभा सीट चाह रहे हैं। इसके साथ ही वह विधानसभा चुनावों के लेकर भी भाजपा से आश्वासन चाहते हैं। भाजपा अगर रालोद मुखिया की उक्त मांगों से सहमत होकर उनसे बातचीत को आगे बढ़ाएगी तो जयंत चौधरी इंडिया गठबंधन से नाता तोड़ लेंगे। रालोद नेताओं ने यह संकेत दिया है।

भाजपा इसलिए चाहती है जयंत का साथ

रालोद नेताओं के अनुसार, पश्चिम यूपी मुस्लिम और जाट बहुल है। यहां के अधिकांश लोग खेती किसानी से जुड़े हैं, जो मोदी सरकार की नीतियों के कारण उनके खफा हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश भाजपा की कमजोर नस है। चुनाव के आंकड़े में यह साबित करते हैं। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव और वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा चुनौतियों का सामना पश्चिमी यूपी में करना पड़ा है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को यूपी में जिन 16 संसदीय सीटों पर मात खानी पड़ी थी, उनमें से सात सीटें पश्चिमी यूपी की रही थी। इसी प्रकार वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर से लेकर बिजनौर, मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, बरेली सहित पश्चिमी यूपी के तमाम जिलों में भाजपा के तमाम प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में भाजपा की शीर्ष नेतृत्व चाहता है कि पश्चिम यूपी में मजबूत पकड़ रखने वाली रालोद को अपने साथ जोड़ा जाए ताकि जाट बाहुल्य समूचे पश्चिमी यूपी में सपा, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को झटका दिया जा सके। इसके अलावा पश्चिम यूपी में भाजपा के नाराज किसानों को रालोद के जरिए मनाया जा सके।

जयंत के परिवार का रहा है दबदबा 

जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह और पिता चौधरी अजित सिंह भी जाट, मुस्लिम, दलित, गुर्जर, यादव और अन्य जाति के लोगों को अपने साथ जोड़ने के फॉर्मूले पर चलते हुए ही पश्चिमी यूपी में कभी किंग तो कभी किंगमेकर बनते रहे हैं। परंतु अखिलेश सरकार के समय मुजफ्फरनगर में हुए दंगे ने जाट और मुस्लिमों को दूर कर दिया था। इसका खामियाजा सबसे ज्यादा रालोद को उठाना पड़ा। जयंत जानते हैं कि जाट समुदाय भले ही यूपी में 2 से 3 फीसदी के बीच हों, लेकिन पश्चिमी यूपी में 20 से 25 फीसदी है। ऐसे ही मुस्लिम यूपी में 20 फीसदी हैं, लेकिन पश्चिमी यूपी में 30 से 40 फीसदी तक हैं। पश्चिमी यूपी के 17 जिलों में जाट-मुस्लिम एक साथ होकर किसी भी राजनीतिक दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। इसलिए जयंत चौधरी जाट, मुस्लिम, दलित, गुर्जर, यादव और अन्य जातियों को अपने साथ जोड़ने के प्रयास में जुटे रहते हैं। जिसके चलते ही उन्होंने बीते विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ जाने के इंकार कर दिया था।
 
ऐसे शुरू जयंत को भाजपा खेमे में लाने का प्रयास 

बताया जा रहा हैं कि विधानसभा चुनावों के बाद जिस तरह से सपा मुखिया अखिलेश यादव ने रालोद नेताओं को अपना पिछलग्गू बनाने का प्रयास किया। फिर आगामी लोकसभा चुनावों के लिए पश्चिम यूपी में रालोद को अपनी मर्जी वाली सात सीटें देने का ऐलान किया, वह जयंत को पसंद नहीं आया। बीते माह अखिलेश यादव ने रालोद को अमरोहा, मेरठ, कैराना, मथुरा, बागपत, बिजनौर और हाथरस सीटें छोड़ने का ऐलान किया। इनमें से तीन सीटों पर अखिलेश सपा के उम्मीदवार को रालोद के सिंबल पर लड़ाना चाहते हैं। जयंत चौधरी को अखिलेश ही यह शर्त मंजूर नहीं है। यही नहीं सपा से अमरोहा के बजाय मुजफ्फरनगर और नगीना सीट भी जयंत चौधरी चाह रहे हैं।

अखिलेश इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। जयंत और अखिलेश के बीच सीटों को लेकर चल रही उठापटक की भनक भाजपा की शीर्ष नेताओं को हुई तो उन्होने जयंत चौधरी को अपने साथ लाने की कोशिश शुरू की। कहा जा रहा है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस संबंध में सूबे के भाजपा नेताओं को दूर ही रखा है क्योंकि वह जयंत से हाथ मिलाने का विरोध करते है। यह जानते हुए ही पार्टी ने सीनियर नेता यूपी में ऑपरेशन लोटस के तहत जयंत को साधने में हुए हैं।

Web Title: Effort to bring Jayant Chaudhary into BJP camp Rashtriya Lok Dal Lok Sabha Elections 2024

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