दल-बदल विरोधी कानून पर विशेषज्ञों के अलग-अलग मत, यह मायने नहीं रखता कि विधायकों ने शपथ ली है या नहीं
By भाषा | Published: November 23, 2019 07:51 PM2019-11-23T19:51:27+5:302019-11-23T19:51:27+5:30
महाराष्ट्र में शनिवार सुबह भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस और राकांपा नेता अजित पवार के क्रमश: मुख्यमंत्री एवं उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद दल-बदल विरोधी कानून का मुद्दा सामने आया है।
कानून के विशेषज्ञों का इस बारे में अलग-अलग विचार है कि ‘दल-बदल विरोधी कानून’ कब प्रभावी होगा। एक विशेषज्ञ का कहना है कि सरकार गठन के समय इसका कोई ‘‘प्रभाव’’ नहीं होगा, जबकि दूसरे विशेषज्ञ का मानना है कि यह लागू होगा और यह मायने नहीं रखता कि विधायकों ने शपथ ली है या नहीं।
महाराष्ट्र में शनिवार सुबह भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस और राकांपा नेता अजित पवार के क्रमश: मुख्यमंत्री एवं उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद दल-बदल विरोधी कानून का मुद्दा सामने आया है। राज्य में आज सुबह तेजी से बदले घटनाक्रम के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने कहा कि फड़नवीस का समर्थन करने का फैसला उनके भतीजे अजित पवार का व्यक्तिगत निर्णय है और यह पार्टी का रुख नहीं है। साथ ही, जिन विधायकों ने अपना पाला बदला है उन पर दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधान लागू होंगे।
यह पूछे जाने पर कि महाराष्ट्र के मामले में कब और कैसे दल-बदल विरोधी कानून लागू होगा, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संवैधानिक कानून विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी ने कहा कि सरकार गठन के समय इसका कोई प्रभाव नहीं होगा, जो विधानसभा में विधायकों के शपथ ग्रहण से पहले हो चुका है।
उन्होंने कहा, ‘‘दल-बदल विरोधी कानून का सरकार गठन के समय कोई प्रभाव नहीं होगा। हमेशा ही विधायकों और सांसदों के शपथ ग्रहण से पहले सरकार का गठन होता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बाद में कोई व्यक्ति दल-बदल का आरोप लगाते हुए स्पीकर के समक्ष अर्जी देता है।’’
हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि दल-बदल विरोधी कानून लागू होगा। उन्होंने कहा, ‘‘दल-बदल विरोधी कानून लागू होगा। यह मायने नहीं रखता कि विधायकों ने शपथ ले ली है या नहीं।’’ सिंह ने कहा कि अब तक सौदेबाजी जारी है और यही कारण है कि यह हो रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘इस (महाराष्ट्र के) मामले में मान लीजिए कि पार्टी (राकांपा) का एक धड़ा वास्तविक राकांपा होने का दावा कर रहा है। तब एक सवाल उठता है और चुनाव आयोग को इस बारे में फैसला करना होगा कि दल-बदल विरोधी कानून के उद्देश्य के लिये कौन सा धड़ा मुख्य राकांपा है। यह एक लंबी प्रक्रिया होगी।
मुख्य राकांपा वह होगी जिसके पास अधिक संख्या में विधायक होंगे।’’ द्विवेदी ने कहा कि सरकार गठन के बाद राज्यपाल मुख्यमंत्री से विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहते हैं, जिसके लिये सदन की बैठक बुलाई जाती है और अस्थायी विधानसभा अध्यक्ष विधायकों को शपथ दिलाते हैं।
उन्होंने कहा कि स्पीकर के चुनाव के बाद सदन में शक्ति परीक्षण होता है और तब यदि दल-बदल विरोधी कानून के सिलसिले में स्पीकर के समक्ष कोई अर्जी दी जाती है तो दल-बदल विरोधी कानून प्रभावी होता है। वहीं, एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता अजित कुमार सिन्हा ने कहा कि यदि अजित पवार का समर्थन कर रहे राकांपा विधायकों की संख्या दो -तिहाई या इससे अधिक है तो विधायकों की अयोग्यता का मुद्दा नहीं उठता।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि दो-तिहाई या इससे अधिक विधायकों के साथ विलय होता है तो अयोग्यता लागू नहीं होगी।’’ महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री एवं उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिये अपनाये गये तरीके के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘यदि वे लोग राज्यपाल के समक्ष बहुमत साबित करने में सक्षम हैं तो राज्यपाल इस पर आगे बढ़ने के लिये आबद्ध हैं। राज्यपाल को विधायकों के बहुमत के साथ समर्थन का पत्र दिया गया और उन्होंने इस पर कार्य किया तथा शपथ ग्रहण कराया।’’
हालांकि, द्विवेदी ने महाराष्ट्र में सत्ता के लिये रस्साकशी के संभावित नतीजे और इस मामले में दल-बदल विरोधी कानून के प्रभाव पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘मैं इस पर टिप्पणी नहीं कर रहा क्योंकि मैं नहीं जानता कि किसके पास कितने विधायकों का समर्थन है।’’ भाजपा के पास 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के पास 105 विधायक हैं। भगवा पार्टी ने राकांपा के अजित पवार के साथ गठजोड़ कर लिया है। राकांपा के कुल 54 विधायक हैं।