राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने बंगाल की शिक्षा व्यवस्था को ‘राजनीतिक पिंजरे में बंद’ बताया
By भाषा | Published: July 17, 2020 04:25 AM2020-07-17T04:25:16+5:302020-07-17T04:25:16+5:30
नये नियमों से विश्वविद्यालयों के कामकाज में राज्यपाल की भूमिका व्यापक रूप से कम हुई है। नए नियमों के तहत राज्यपाल और विश्वविद्यालयों के बीच होने वाले सभी संवाद उच्च शिक्षा विभाग के जरिये होंगे।
कोलकाता: राज्यपाल जगदीप धनखड़ द्वारा बुधवार को बुलाई गई डिजिटल बैठक में राज्य के अधिकतर विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के नहीं पहुंचने के एक दिन बाद नाराजगी जताते हुए उन्होंने पश्चिम बंगाल में शिक्षा व्यवस्था के ‘राजनीतिक पिंजरे में बंद’ होने का आरोप लगाते हुए अनुपस्थित कुलपतियों से स्पष्टीकरण मांगने की बात कही।
धनखड़ की इस धमकी पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की त्वरित और तीखी प्रतिक्रिया आई और उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यपाल भाजपा के “मुखपत्र” से भी “ज्यादा खतरनाक” तरीके से काम कर रहे हैं जो संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को शोभा नहीं देता। कोविड-19 महामारी के बीच शैक्षणिक स्थिति पर चर्चा के लिये राज्यपाल द्वारा बुलाए गए डिजिटल सम्मेलन में सिर्फ एक कुलपति ने हिस्सा लिया। इससे राज्यपाल नाराज थे। धनखड़ ने कहा कि वह अनुपस्थित रहने वाले कुलपतियों से महामारी के कारण छात्रों के सामने पेश आ रही शैक्षणिक समस्याओं पर भी जानकारी मांगेंगे।
संभवत: अधिकतर कुलपतियों के अनुपस्थित रहने के संदर्भ में उन्होंने कहा, “मैं पश्चिम बंगाल के शिक्षा परिदृश्य में इस राजनीतिक रूपी पिंजरे की जकड़न को बढ़ता हुआ देख रहा हूं।” उन्होंने कहा, “कुलपतियों की डिजिटल बैठक बुलाकर मैं विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के सामने आ रही समस्याओं का हल करना चाहता था, जिसका उन्होंने पुरजोर विरोध किया और कारण सभी जानते हैं।”
बनर्जी ने नाराजगी जाहिर करते हुए अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “वह भाजपा के मुखपत्र से भी ज्यादा खतरनाक तरीके से काम कर रहे हैं। हम राज्यपाल के नियमित संपर्क में हैं। मैंने बुधवार को उनसे चार बार बात की...ऐसा लगता है जैसे हम नौकर हों और हम काम की तनख्वाह ले रहे हों तथा हमें उन्हें हर समय जवाब देना होगा। सरकार क्या करे.... कोविड-19 से निपटे या उनके प्रश्नों के उत्तर दे? मुख्यमंत्री ने धनखड़ की चेतावनी के बाद सरकार संचालित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को भी आश्वासन दिया कि वे चिंता न करें।
राज्यपाल ने चेतावनी दी थी कि उनके द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल न होने वाले कुलपतियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। बनर्जी ने कहा, ‘‘कुलपति चिंता न करें। वे सभी सम्मानित हैं और वे जिस तरह से काम करते रहे हैं, उसी तरह काम करना जारी रखेंगे। हम उनके साथ हैं। उन्हें हमारा शत प्रतिशत समर्थन है।’’
वहीं राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार राज्यपाल का बेहद सम्मान करती है और कोरोना वायरस संकट के बीच वह “उनके साथ किसी तरह के विवाद में उलझने का उसका मन नहीं है।” उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि तृणमूल सरकार राज्यपाल के साथ राजनीति में नहीं उलझना चाहती।
उन्होंने कहा, “हम छात्रों के कल्याण से संबंधित उनके मूल्यवान सुझाव सुनना चाहेंगे लेकिन संविधान के दायरे के अंदर ही। राज्याल छात्रों की कुशलता के बारे में काम करेंगे तो इससे हमें क्यों परेशानी होनी चाहिए लेकिन उन्होंने उच्च शिक्षा विभाग को बताए बिना कुलपतियों की बैठक बुलाई। यह राज्य विधानसभा से पारित कानून के खिलाफ है।”
राज्यपाल के साथ अक्सर गतिरोध के बीच पश्चिम बंगाल सरकार ने हाल में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के तौर पर राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित प्रासंगिक नियमों में संशोधन किया है। नये नियमों से विश्वविद्यालयों के कामकाज में राज्यपाल की भूमिका व्यापक रूप से कम हुई है। नए नियमों के तहत राज्यपाल और विश्वविद्यालयों के बीच होने वाले सभी संवाद उच्च शिक्षा विभाग के जरिये होंगे।
प्रदेश के सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की संस्था पश्चिम बंगाल कुलपति परिषद ने मंगलवार को एक बयान जारी कर राज्यपाल से सलाह मांगी थी कि क्या नियम ऐसे संवाद की इजाजत देते हैं। परिषद के एक पदाधिकारी ने धनखड़ के सात जुलाई के बैठक आहूत करने संबंधी पत्र के संदर्भ में कहा था, “हमें यह पक्का नहीं है कि माननीय राज्यपाल जो कुलाधिपति भी हैं, हमें राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के जरिये पत्र न भेजकर सीधे लिख सकते हैं?”
बैठक में कुलपतियों की गैर मौजूदगी पर नाराजगी जाहिर करते हुए धनखड़ ने कहा, “क्या शिक्षा विभाग और कुलपति खुद यह घोषणा कर सकते हैं कि वे कुलाधिपति की बात नहीं मानेंगे? क्या वे जवाबदेह नहीं हैं? वे कब जवाबदेह बनेंगे?” उन्होंने हालांकि कुलपतियों की अनुपस्थिति के लिये राज्य सरकार पर आरोप लगाया। कुलपतियों के मामले में “अत्याधिक संयम” दिखाने पर जोर देते हुए धनखड़ ने कहा कि उन्हें वे “अपना परिवार” मानते हैं और आरोप लगाया, “यह अपरिहार्य स्थिति राज्य सरकार द्वारा बनाई गई थी।”