हरियाणा में देवीलाल की विरासत अब उनके पड़पोतों के हाथ

By बलवंत तक्षक | Published: February 3, 2019 04:54 AM2019-02-03T04:54:07+5:302019-02-03T04:54:07+5:30

तेरह राउंड की गिनती में जेजेपी ने कई बार भाजपा पर बढ़त हासिल कर पार्टी के उम्मीदवार डॉ. कृष्ण मिड्ढा की सांसें फुलाईं, लेकिन आखिर में पार्टी के युवा नेता दिग्विजय सिंह चौटाला को हार स्वीकार करने को मजबूर होना पड़ा.

Devilal's legacy in Haryana is now in the hands of his grand son | हरियाणा में देवीलाल की विरासत अब उनके पड़पोतों के हाथ

फाइल फोटो

Highlightsभाजपा को टक्कर देते हुए जींद में कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेलने में कामयाब रहे दिग्विजयलोगों की सहानुभूति हासिल करने के लिए चौटाला के इस बयान को जगह-जगह पर स्क्र ीन लगाकर जींद में खूब दिखाया गया, लेकिन लोगों ने इनेलो को

हरियाणा में पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. चौधरी देवीलाल की राजनीतिक विरासत अब पोते अभय सिंह चौटाला के हाथों से खिसक कर पडपोतों सांसद दुष्यंत चौटाला और उनके छोटे भाई दिग्विजय सिंह चौटाला के पास आ गई है. जींद उप चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से अलग होकर अस्तित्व में आई जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को वोट के मामले में लोगों ने ज्यादा तरजीह दी है. इनेलो ने जहां बसपा के समर्थन के बावजूद जींद उप चुनाव में केवल 3 हजार 454 वोट हासिल कर अपनी जमानत जब्त करवा ली, वहीं जेजेपी ने आप का साथ लेकर 37 हजार 631 वोट लिए और दूसरे स्थान पर रही. तेरह राउंड की गिनती में जेजेपी ने कई बार भाजपा पर बढ़त हासिल कर पार्टी के उम्मीदवार डॉ. कृष्ण मिड्ढा की सांसें फुलाईं, लेकिन आखिर में पार्टी के युवा नेता दिग्विजय सिंह चौटाला को हार स्वीकार करने को मजबूर होना पड़ा.

इसमें कोई शक नहीं कि चार महीने पहले एक नई पार्टी के साथ जनता के सामने आए दुष्यंत और दिग्विजय ने पूरे दमखम से उप चुनाव लड़ा. दिग्विजय सिंह भले ही चुनाव हार गए, लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि सत्तारूढ़ भाजपा को चुनौती देने का माद्दा जेजेपी में है, उनके चाचा और विपक्ष के नेता के नेतृत्व वाली इनेलो में नहीं. चुनाव आयोग की तरफ से अभी जेजेपी को क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता नहीं मिली है, लेकिन दिग्विजय सिंह ने प्रचार के दौरान खुद को निर्दलीय नहीं, बल्कि जेजेपी का ही उम्मीदवार घोषित किया. जिस ढंग से जेजेपी ने चुनाव जीतने के लिए दिन-रात एक किए, उससे आने वाले समय में दुष्यंत-दिग्विजय को हल्के में लेना किसी भी पार्टी के लिए घातक साबित होगा. उधर, बसपा के समर्थन के बावजूद इनेलो जींद उप चुनाव में अपना गढ़ नहीं बचा पाया. पिछले दो चुनावों से इनेलो के टिकट पर डॉ. हरिचंद मिड्ढा लगातार चुनाव जीतते आ रहे थे. डॉ. मिड्ढा के निधन के बाद उनके बेटे डॉ. कृष्ण मिड्ढा न केवल इनेलो छोड़ गए, बल्कि भाजपा में शामिल होकर टिकट भी ले आए.

ऐसे में लोगों ने उप चुनाव में दल बदल कर मैदान में आए डॉ. मिड्ढा के प्रति किसी नाराजगी का इजहार करने के बजाय उनके इस फैसले को सही ठहराते हुए उन्हें विजयी भी बना दिया. उप चुनाव में विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला के कंडेला खाप के लोगों से माफी मांगना भी इनेलो को कोई काम नहीं आया. गौरतलब है कि चौटाला राज के दौरान वर्ष 2002 में कंडेला में बिजली के बिलों की वसूली के विरोध में सड़क जाम करते हुए एक डीएसपी को बंधक बनाने पर पुलिस की गोलियों से नौ लोगों की मौत हो गई थी. इससे लोगों में इनेलो के प्रति नाराजगी थी. 

इनेलो के लिए प्रचार करना चाहते थे चौटाला

पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला जींद उपचुनाव में प्रचार के लिए तिहाड़ जेल से फरलो पर बाहर आना चाहते थे. चौटाला इनेलो के उम्मीदवार उमेद रेढू के समर्थन में प्रचार कर अपने छोटे बेटे अभय सिंह की मदद करना चाहते थे, लेकिन ऐन वक्त पर उनकी फरलो रद्द कर दी गई. इससे नाराज चौटाला ने अपने पोतों दुष्यंत-दिग्विजय को गद्दार करार दे दिया. लोगों की सहानुभूति हासिल करने के लिए चौटाला के इस बयान को जगह-जगह पर स्क्र ीन लगाकर जींद में खूब दिखाया गया, लेकिन लोगों ने इनेलो को वोट नहीं दिए. 

Web Title: Devilal's legacy in Haryana is now in the hands of his grand son

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