दिल का दौरा पड़ने से बेहतर देश के लिए जान देकर मरना पसंद करूंगा: अन्ना हजारे
By कोमल बड़ोदेकर | Published: March 24, 2018 09:57 AM2018-03-24T09:57:18+5:302018-03-24T11:05:21+5:30
एक किसान ने कहा, सरकार किसानों को अन्ना आंदोलन में शामिल होने से रोक रही है, लेकिन फिर भी छुपते-छुपाते किसान यहां पहुंच रहे हैं।
नई दिल्ली, 24 मार्च। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का आंदोलन शुरू हो चुका है। शनिवार को उनके आंदोलन का दूसरा दिन है। लोकपाल, किसानों सहित अन्य मुद्दों पर मोदी सरकार के खिलाफ बिगुल बजाने वाले अन्ना हजारे का कहना है कि वे दिल का दौरा पड़ने की बजाय देश के लिए जान देकर मरना पसंद करेंगे।
अन्ना ने बताया कि बीते चार साल में उन्होंने मोदी सरकार को 43 पत्र लिखे, लेकिन सरकार ने एक भी पत्र का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। मोदी सरकार से लोकपाल औप कृषि संकट पर बातचीत करने के प्रयास का कोई नतीजा नहीं निकला।
अन्ना आंदोलन की मुख्य मांग
अन्ना हजारे ने बताया कि देश का किसान संकट में हैं, उन्हें फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है और सरकार उचित मूल्य तय करने की दिशा में कोई काम नहीं कर रही है। मोदी सरकार ने अब तक लोकपाल लागू नहीं किया है।
अन्ना अपने आंदोलन के जरिए केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति, नए चुनाव सुधार और देश में कृषि संकट को हल करने के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करवाना अन्ना आंदोलन का मुख्य उद्देश्य है।
कई राज्यों से पहुंच रहे किसान
अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश व असम सहित कई राज्यों से लोग पहुंच रहे हैं। इसमें बड़ी संख्या में किसान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। अन्ना ने अपने आंदोलन के दौरान मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि आंदोलन में शामिल होने वाले किसानों के सामने मोदी सरकार मुश्किल पैदा कर रही है।
दिल्ली आ रहे किसानों को ट्रेन में नहीं चढ़ने दे रही पुलिस
एक किसान ने बताया कि सरकार किसानों को अन्ना के आंदोलन में शामिल होने से रोक रही है। अहमद नगर से दिल्ली जा रहे किसानों को पुलिस ने भूसावल रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पर चढ़ने से रोक दिया लेकिन कुछ किसान जैसे-तैसे छुपते-छुपाते यहां पहुंचने में सफल रहे।
इसलिए शहीदी दिवस को शुरू किया आंदोलन
अन्ना हजारे ने अपने आंदोलन की शुरूआत दिल्ली स्थित रामलीला मैदान से शुक्रवार को 23 मार्च शहीदी दिवस से की है। इस बारे में उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शासन में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दी गई थी। इन शहीदों ने सिर्फ अंग्रेजों से आजादी के लिए नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक शासन के लिए अपना जीवन दांव पर लगाया था। लेकिन क्या हुआ? हमारे देश में अभी भी सही मायने में लोकतंत्र स्थापित नहीं हुआ है।