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अनिवार्य बीमा कवर और दोपहिया वाहनों पर हेलमेट पहनने का नियम इलेक्ट्रिक वाहनों पर पहले से लागू, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा-जनहित याचिका दायर करने वाले थोड़ा रिसर्च करें

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 14, 2023 20:53 IST

उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में पंजीकृत इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी समय पर वितरित हो।

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ठळक मुद्देबीमा कवर अनिवार्य बनाने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का आग्रह किया गया था।न्यायिक समय को बर्बाद करती हैं और इसमें बाधा डालती हैं।कानूनों, नियमों और अधिसूचनाओं के माध्यम से समाधान किया जा चुका है।

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि अनिवार्य बीमा कवर, दोपहिया वाहनों पर हेलमेट पहनने और नियम का पालन नहीं करने पर दंडात्मक कार्रवाई का मौजूदा नियम पहले से ही इलेक्ट्रिक वाहनों पर भी लागू है।

उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में पंजीकृत इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी समय पर वितरित हो। उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया जिसमें मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के लिए बीमा कवर अनिवार्य बनाने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का आग्रह किया गया था।

जनहित याचिका में अदालत से सभी प्रकार की इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिलों और स्कूटरों पर हेलमेट पहनना अनिवार्य करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का भी आग्रह किया गया था। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि जनहित याचिका केवल दो समाचार रिपोर्ट के आधार पर दायर की गई और याचिकाकर्ता की ओर से उठाए गए मुद्दे, लगाए गए आरोप और दावे काफी हद तक अप्रमाणित हैं तथा इस तरह की बेकार जनहित याचिकाएं न्याय तक पहुंच को सक्षम करने के बजाय, वास्तव में न्यायिक समय को बर्बाद करती हैं और इसमें बाधा डालती हैं।

पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘अगर याचिकाकर्ता की ओर से कुछ उचित परिश्रम किया गया होता और शोध किया गया होता, तो यह स्पष्ट होता कि याचिकाकर्ता द्वारा जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दों का पहले ही प्रासंगिक कानूनों, नियमों और अधिसूचनाओं के माध्यम से समाधान किया जा चुका है।’’

अदालत ने कहा कि जनहित के मुद्दों का समाधान करने के लिए जनहित याचिका का सिद्धांत विभिन्न फैसलों के माध्यम से अदालतों द्वारा विकसित किया गया है, जिसका मकसद उन लोगों की सहायता करना है, जिन्हें क्षति पहुंचाई गई हो या जिनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो और उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया गया हो।

पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, ऐसा अकसर देखा जाता है कि अदालतों के समक्ष निरर्थक जनहित याचिकाएं दायर की जाती हैं, जिससे वैध शिकायतों वाले वास्तविक वादियों के मामलों का निपटारा करने में अनावश्यक देरी होती है।’’ इसने यह भी कहा, ‘‘हालांकि यह अदालत उस उद्देश्य से अवगत है जिसके लिए जनहित याचिका का सिद्धांत विकसित किया गया है।

इसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग जनहित याचिका से संबंधित उदार नियमों का दुरुपयोग न करें और इस अदालत का कीमती न्यायिक समय बर्बाद न करें।’’ अदालत ने याचिकाकर्ता को भविष्य में ऐसी जनहित याचिका दायर करने से पहले आवश्यक मेहनत करने और संयम बरतने की सलाह दी। 

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