Delhi Elections Results: कांग्रेस को पराजय का रंज नहीं, लेकिन भाजपा की हार से गदगद
By शीलेष शर्मा | Published: February 12, 2020 04:42 AM2020-02-12T04:42:37+5:302020-02-12T04:46:23+5:30
दरअसल दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही कांग्रेस मन बना चुकी थी कि वह यह चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि भाजपा को रोकने के लिए लड़ रही है, यही कारण था कि चुनाव प्रचार अभियान के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनाव प्रचार अभियान में नहीं उतरी और पूरा प्रचार अभियान स्थानीय नेताओं के हवाले कर दिया.
दिल्ली की 70 सीटों वाली विधानसभा में खाता ना खुलने के बावजूद कांग्रेस को अपनी पराजय का रंज नहीं है. उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कांग्रेस इस बात से खुश है कि वह अपनी पूर्व निर्धारित रणनीति के अनुसार दिल्ली में भाजपा को रोकने में कामयाब हो गई.
इसके साफ संकेत उस समय सामने आए जब दिल्ली के प्रभारी पी.सी. चाको ने कहा ‘‘हम खुश है कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जो प्रचार किया उसे दिल्ली के लोगों ने पराजित कर दिया है.’’
पार्टी के प्रवक्ता और मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला का मानना था कि गृहमंत्री ने धर्म और संप्रदाय के नाम पर दिल्ली को बांटने की कोशिश की लेकिन दिल्ली की जनता ने उसे नकार दिया.
दरअसल दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही कांग्रेस मन बना चुकी थी कि वह यह चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि भाजपा को रोकने के लिए लड़ रही है, यही कारण था कि चुनाव प्रचार अभियान के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनाव प्रचार अभियान में नहीं उतरी और पूरा प्रचार अभियान स्थानीय नेताओं के हवाले कर दिया. हालांकि राहुल गांधी ने कुछ चुनावी सभाएं की और दो में तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी उनके साथ थी जो केवल एक महज एक औपचारिकता थी. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी एक प्रचार सभा में जाकर रस्म अदायगी की.
यह पूरी रस्म अदायगी इस रणनीति के तहत की जा रही थी कि कांग्रेस यदि दम-खम से चुनाव लड़ती है तो वह वोट काटने का काम ही कर पाएगी. उसे पता था कि दिल्ली में जीतना उसके लिए संभव नहीं है और इससे मतों का विभाजन होगा जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा. इस रोकने के लिए कांग्रेस ने एक सोची समझी रणनीति के तहत अन्य राज्यों की भांंति दिल्ली को चुना. पार्टी की रणनीति है कि भाजपा को कमजोर करने के लिए जहां क्षेत्रीय दल मजबूत है उन्हें आगे रखा जाए. झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, जैसे राज्यों के उदाहरण सामने है और वहीं प्रयोग कांग्रेस ने दिल्ली में दोहराया.
कांग्रेस का साफ मानना है कि जिस राज्य में पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती उस राज्य में भाजपा को रोकने वाले दल को परोक्ष समर्थन दिया जाए ताकि 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को मनोवैज्ञनिक तरीके से इतना कमजोर कर दिया जाए जिसका लाभ सीधे-सीधे कांग्रेस को मिल सके. कांग्रेस की रणनीति का दूसरा हिस्सा गैर भाजपा दलों के साथ 2024 में चुनाव परिणामों के बाद तालमेल बैठाने का भी है. आज विधानसभा चुनावों में इन दलों के लिए रास्ता खोलकर कांग्रेस आगे का रास्ता मजबूर कर लेना चाहती है.
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 9.7 फीसदी मत प्राप्त हुए थे जो की घटकर 4.26 फीसदी तक जा पहुंचे है हालांकि अंतिम गणना होनी बाकी है.
कांग्रेस को इस बात का कोई दु:ख नहीं कि वो चुनाव में शून्य पर पहुंच गई. वह मानती है कि एकता और अखंडता , धु्रवीकरण और नफरत की राजनीति को पराजित करने में वह कामयाब हुई है. चुनाव परिणाम आने से पहले हीकांग्रेस ने अपनी पराजय स्वीकर की और इस बात पर खुशी जाहिर की कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने में वह कामयाब रही है. कांग्रेस ने अपने संसाधनों का भी कोई उपयोग इस चुनाव में नहीं किया नतीजा दिल्ली मे कहीं उसका प्रचार अभियान ही नजर नहीं आ रहा था क्योंकि उसकी निगाह 2024 के चुनाव पर है. इसी उदासीनता के कारण कांग्रेस के अनेक उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके.