‘राष्ट्र और नैतिकता: नए भारत से उठते 100 सवाल’ का लोकार्पण, गोपालकृष्ण गांधी बोले-‘सवाल’ आज का सबसे जरूरी शब्द

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 4, 2024 18:33 IST2024-10-04T18:32:58+5:302024-10-04T18:33:55+5:30

प्रोफ़ेसर राजीव भार्गव की किताब ‘राष्ट्र और नैतिकता : नए भारत से उठते 100 सवाल’ के लोकार्पण कार्यक्रम में वक्ताओं ने कही।

DELHI BOOK Rashtra Aur Naitikata Naye Bharat Se Uthte 100 Sawal Inauguration Gopalkrishna Gandhi said ‘Question’ most important word today | ‘राष्ट्र और नैतिकता: नए भारत से उठते 100 सवाल’ का लोकार्पण, गोपालकृष्ण गांधी बोले-‘सवाल’ आज का सबसे जरूरी शब्द

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Highlightsराजीव भार्गव ने अपनी किताब में बहुत शिद्दत से बात की है। किताब में हमारे समय के बहुत जरूरी सवालों को उठाया गया है।लोकार्पण गुरुवार शाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ।

नई दिल्लीः हम आजकल इतनी जल्दी में है कि तुरन्त सबकुछ हासिल कर लेना चाहते हैं। इस जल्दबाजी में हम अपने मूल्यों और नैतिकता को भुला रहे हैं। हमारी सभ्यता की हजारों वर्षों की यात्रा से हमने जिन मूल्यों को हासिल किया है, वे आज खंडित हो रहे हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मूल्यों के बिना हम जी नहीं सकते। आज हम अपने में ही इतने सिमट रहे हैं कि विपरीत विचारों वाले व्यक्ति से बात तक नहीं करना चाहते। इस तरह के एक बंटे हुए समाज में नीति और नैतिकता के परिप्रेक्ष्य में, हमारा रोजमर्रा का व्यवहार और विचार क्या हो, इस पर राजीव भार्गव ने अपनी किताब में बहुत शिद्दत से बात की है।

इस किताब में हमारे समय के बहुत जरूरी सवालों को उठाया गया है। यह किताब हिन्दुस्तान के ईमान के बारे में है, उसकी आत्मा के बारे में है। ये बातें राजनीतिक सिद्धान्तकार प्रोफ़ेसर राजीव भार्गव की किताब ‘राष्ट्र और नैतिकता : नए भारत से उठते 100 सवाल’ के लोकार्पण कार्यक्रम में वक्ताओं ने कही।

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का लोकार्पण गुरुवार शाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ। कार्यक्रम मेें लेखक-राजनयिक गोपालकृष्ण गाँधी, विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, इतिहासकार एस. इरफ़ान हबीब, सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता संजय हेगड़े, लेखक राजीव भार्गव और अनुवादक अभिषेक श्रीवास्तव बतौर वक्ता मौजूद रहे। 

इस मौके पर गोपालकृष्ण गांधी ने कहा, ‘सवाल’ आज का सबसे जरूरी शब्द है। जवाब जरूरी नहीं, पर सवाल उठाना जरूरी है। यह किताब सवालों पर ही टिकी हुई है। जीना है या मरना है, तय करना है। इस किताब का सवाल यही है। हमें यह पहचान करने की जरूरत है कि किन-किन चीजों में आज सांस नहीं है। आज के समय में ‘ईमान’ बहुत खतरे में है।

हमें यह भी तय करना है कि ईमान को बचाना है कि नहीं। यह किताब हिन्दुस्तान के ईमान के बारे में है, उसकी आत्मा के बारे में है। यह किताब एक ऐसे व्यक्ति की कलम से निकली है जो एक बुद्धिजीवी है विचारक है और नागरिकता पर विश्वास रखने वाला हिन्दुस्तानी है। यदि आज हम इस किताब को पढ़ें तो इस ख़याल से कि हमें हिन्दुस्तान के ईमान को जिन्दा रखना है।

प्रोफेसर एस. इरफ़ान हबीब ने कहा, आज हम बहुत जल्दी सबकुछ हासिल कर लेना चाहते हैं। इस जल्दबाजी में हम मूल्यों की परवाह नहीं करते। हम नैतिकता को भुला रहे हैं। उन्होंने कहा, राजीव भार्गव ने अपनी किताब में हमारे समय के बहुत जरूरी सवालों को उठाया है और बड़ी खूबसूरती से उनके जवाब भी दिए गए हैं।

यह किताब हमें एक उम्मीद दिखाकर खत्म होती है कि यह समय भी बदलेगा। यह भरोसा करना बहुत जरूरी है कि आज हम जहाँ है उससे एक दिन जरूर बाहर निकलेंगे। रूपरेखा वर्मा ने कहा, यह किताब ऐसे समय में आई है जब हमारा संविधान और लोकतंत्र ही नहीं बल्कि जीवन और समाज का हर पहलू संकट में है। आज हर चीज पर दोबारा विचार की जरूरत पड़ रही है।

पिछले कुछ सालों से मैं खोज रही हूँ कि हमारा देश कहाँ है। हालांकि वो वैसा तब भी नहीं था जैसा हम उसे बनाना चाहते थे लेकिन उस समय उसके वैसा बनने की एक उम्मीद दिखती थी, अब वो भी नहीं रही। 
उन्होंने कहा, हमारा लोकतंत्र आज बहुत बीमार है। इस वक्त में सबसे अहम सवाल यह है कि हम अपने लोकतंत्र और पारस्परिकता की समझ को कैसे अमल में लाएं।

यह किताब एक दिशा देती है कि हमें किस नज़रिए से इस समय को देखना चाहिए। मेरे विचार से हमारे जीवन और समाज का ऐसा कोई पहलू नहीं बचा है जिस पर यह किताब नैतिकता की दृष्टि से विचार न करती हो। इस समय के लिए यह एक बहुत महत्वपूर्ण और सामयिक किताब है। संजय हेगड़े ने कहा, संविधान वह नहीं है जो वकीलों और जजों के बीच कोर्ट की बहसों तक सीमित होता है।

संविधान एक नागरिक का दूसरे नागरिक के साथ समझौता है। संविधान वह है जिसकी बुनियाद पर एक नागरिक दूसरे नागरिक को यह भरोसा दिलाए कि जो हमारा हक है, वह तुम्हारा भी हक है। यही संवैधानिक नैतिकता है जो हमारे संविधान को एक सूत्र में बांधती है और उसे ही राजीव भार्गव ने अपनी किताब में लिखा है। 

उन्होंने कहा, राजीव भार्गव ने अपनी किताब में जिन विषयों पर टिप्पणियाँ कीं हैं वो आगे ऐसे और जरूरी कामों के लिए एक भूमिका का काम करेंगी। मैं यह आशा करता हूँ कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढ़ें और संवैधानिक नैतिकता को आगे बढ़ाएँ। अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा, हमारे यहाँ के प्रचलित विमर्श में राजनीति, विचारधारा, संस्कृति और इतिहास पर बात होती है, लेकिन नैतिकता पर बात नहीं होती।

पूरे समाज में इस बात को लेकर एक तरह से सहमति दिखाई पड़ती है कि क्या अच्छा है, क्या बुरा है, क्या सही है और क्या गलत है। इसकी वजह से हमारे समाज में पिछले कुछ वर्षों में एक अजीब तरह का ध्रुवीकरण पैदा हो गया है। इसके चलते आज स्थिति यहाँ तक आ पहुँची है कि हमारी जिससे असहमति होती है, उनसे हम संवाद तक नहीं करते।

हम अपने जैसे लोगों को खोजते हैं, जो हमारे जैसा सोचते हैं। हमारा समाज लगातार अलग-अलग पालों में बंटता जा रहा है। एक बंटे हुए, ध्रुवीकृत समाज में, नीति और नैतिकता के परिप्रेक्ष्य में, हमारा रोजमर्रा का व्यवहार और विचार क्या हो, चीजों को देखने का नज़रिया क्या और कैसा हो, इस पर प्रो. राजीव भार्गव ने अपनी इस किताब में बहुत शिद्दत से बात की है।

किताब के लेखक राजीव भार्गव ने अपनी बात रखते हुए कहा, हमारी हजारों वर्षों की सभ्यता ने जो मूल्य अर्जित किए, वो आज खंडित हो रहे हैं। वो मूल्य बड़े संकट में है, वो जिएंगे कि मरेंगे इस बात का खतरा है। इसका निर्णय हमें एक सामूहिक समझ से करना है। इसी निर्णय से हम राष्ट्र की आत्मा और सभ्यता को बचा पाएंगे। मूल्यों के बिना हम जी नहीं सकते।

यदि हम मूल्यों से खुद को अलग करते हैं तो फिर हम मनुष्य ही नहीं रह पाते। इस किताब में मैंने ‘राष्ट्र’ शब्द पर जोर देकर इसे बार-बार इसलिए इस्तेमाल किया है क्योंकि मेरा मानना है कि राष्ट्र के बारे में बात नहीं करके हमने उसे कहीं दूसरी तरफ धकेल दिया है।

हमें उसे रिक्लेम करने की जरूरत है। मेरी प्रेरणा यही थी कि मैं इस किताब के जरिए लोगों से बात कर सकूँ, उनसे जुड़ सकूँ। मुझे जिस तरह की प्रतिक्रियाएँ मिल रही हैं तो लगता है कि मैं इस मकसद में कुछ कामयाब हुआ हूँ।

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