न्यायालय ने हरियाणा सरकार की अर्जी पर 40 से अधिक किसान संगठनों, नेताओं से जवाब मांगा

By भाषा | Published: October 4, 2021 05:26 PM2021-10-04T17:26:49+5:302021-10-04T17:26:49+5:30

Court seeks response from more than 40 farmer organizations, leaders on the application of Haryana Government | न्यायालय ने हरियाणा सरकार की अर्जी पर 40 से अधिक किसान संगठनों, नेताओं से जवाब मांगा

न्यायालय ने हरियाणा सरकार की अर्जी पर 40 से अधिक किसान संगठनों, नेताओं से जवाब मांगा

नयी दिल्ली, चार अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को 43 किसान संगठनों और राकेश टिकैत, दर्शन पाल तथा गुरनाम सिंह सहित उनके विभिन्न नेताओं को हरियाणा सरकार के उस आवेदन पर नोटिस जारी किये जिसमें आरोप लगाया गया है कि वे दिल्ली की सीमाओं पर सड़कों की नाकेबंदी का मुद्दा हल के लिए राज्य पैनल के साथ बातचीत में शामिल नहीं हो रहे हैं।

हरियाणा सरकार ने नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल की जनहित याचिका में आवेदन दिया है। जनहित याचिका में नाकेबंदी को हटाए जाने का अनुरोध करते हुए कहा गया है कि पहले दिल्ली पहुंचने में 20 मिनट लगते थे और अब दो घंटे से भी अधिक समय लग रहा है तथा दिल्ली सीमा पर यूपी गेट पर विरोध प्रदर्शन के कारण क्षेत्र के लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने आवेदन का संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी करने और इसे दस्ती भी तामील करने का आदेश दिया। पीठ ने सवाल किया, ‘‘श्री मेहता (सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता), आपने करीब 43 लोगों को पक्षकार बनाया है। आप उन तक नोटिस कैसे भेजेंगे।’’

मेहता ने कहा कि किसानों के नेतागण इस मामले में आवश्यक पक्ष हैं और वह सुनिश्चित करेंगे कि उन लोगों पर नोटिस की तामील हो। मेहता ने याचिका पर शुक्रवार यानी आठ अक्टूबर को सुनवाई का अनुरोध किया।

राज्य की ओर से पेश मेहता ने कहा कि हरियाणा ने प्रदर्शन कर रहे किसान नेताओं के साथ बातचीत के लिए एक समिति का गठन किया है लेकिन किसान नेताओं ने बातचीत में भाग लेने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा, "नोटिस जारी किए जाएं ताकि वे यह नहीं कहें कि उनके पास आने का कोई कारण नहीं है। पीठ ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 20 अक्टूबर की तारीख तय की है।

हरियाणा ने अपनी याचिका में कहा कि किसानों के संगठनों के साथ बातचीत करने के लिए 15 सितंबर, 2021 को राज्य स्तरीय एक पैनल का गठन किया गया था। लेकिन उन्होंने 19 सितंबर को बातचीत के लिए आगे आने से इनकार कर दिया।

इस आवेदन में कहा गया है, ‘‘सिन्धु बार्डर और टिकरी बार्डर पर विभिन्न किसान यूनियनों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने इस धरने का आयोजन किया है और इसमें पक्षकार बनाने के लिये लिखित व्यक्ति जो विभिन्न किसान यूनियनों के पदाधिकारी और कार्यकर्ता है, इस मुद्दे को हल करने के लिए जरूरी पक्षकार हैं।’’

इससे पहले की सुनवाई में पीठ ने यह कहते हुए आश्चर्य जताया था कि राजमार्गों को हमेशा के लिए कैसे बाधित किया जा सकता है। पीठ ने केंद्र से यह भी सवाल किया था कि सरकार इस मामले में क्या कर रही है।

केंद्र ने कहा था कि उसने प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ एक बैठक बुलाई थी और हलफनामे में ब्योरे का उल्लेख किया गया है। मेहता ने अनुरोध किया था कि अदालत को याचिकाकर्ता को याचिका में किसान संगठनों को पक्ष बनाने की अनुमति देनी चाहिए, ताकि बाद में वे यह नहीं कह सकें कि उन्हें इस मामले में पक्ष नहीं बनाया गया था।

पीठ ने मेहता से कहा था कि उन्हें ही किसानों के प्रतिनिधियों को पक्षकार बनाने के लिए आवेदन दाखिल करना होगा क्योंकि किसी निजी व्यक्ति को यह नहीं मालूम होगा कि उनके नेता कौन हैं।

शीर्ष अदालत ने 23 अगस्त को केन्द्र और दिल्ली के पड़ोसी राज्यों से कहा था कि सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के कारण अवरुद्ध हुयी दिल्ली की सीमाओं को खोलने के लिये उन्हें कोई समाधान खोजना चाहिए।

न्यायालय ने कहा था कि किसानों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन वे एक निर्धारित स्थान पर ऐसा कर सकते हैं ताकि यातायात का आवागमन बाधित नहीं हो। न्यायालय ने कहा था कि केन्द्र सरकार इसका समाधान क्यों नहीं खोज सकती ।

शीर्ष अदालत का कहना था कि इसका टॉल संग्रह पर भी असर पड़ेगा क्योंकि मार्ग अवरुद्ध होने की वजह से वाहन यहां से नहीं गुजर सकते।

इससे पहले, 26 मार्च को शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा को नोटिस जारी किये थे। उप्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि दिल्ली-उप्र सीमा पर अवरोध हटाने के प्रयास किये जा र हे हैं। सरकार का कहनाा था कि इस समय किसानों ने इलाके में करीब 141 टेन्ट और 31 लंगर लगा रखे हैं। विरोध कर रहे लोगों ने फ्लाई ओवर पर एक मंच बना लिया है जहां से उनके नेतागण भाषण देते हैं।

हरियाणा सरकार ने भी इसी तरह न्यायालय से कहा था कि प्रदर्शनकारियों ने पिछले साल 27 नवंबर से सिन्धु बार्डर पर एनएच-44 की करीब छह किलोमीटर के दायरे में डेरा डाल रखा है।

आन्दोलनरत किसान तीन विवादित कानूनों -- कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार, कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून का विरोध कर रहे हैं।

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