न्यायालय ने दुआ के खिलाफ प्राथमिकी रद्द की, कहा कि राजद्रोह के मामलों में पत्रकार सुरक्षा के हकदार

By भाषा | Published: June 3, 2021 10:30 PM2021-06-03T22:30:26+5:302021-06-03T22:30:26+5:30

Court quashes FIR against Dua, says journalists entitled to protection in sedition cases | न्यायालय ने दुआ के खिलाफ प्राथमिकी रद्द की, कहा कि राजद्रोह के मामलों में पत्रकार सुरक्षा के हकदार

न्यायालय ने दुआ के खिलाफ प्राथमिकी रद्द की, कहा कि राजद्रोह के मामलों में पत्रकार सुरक्षा के हकदार

नयी दिल्ली, तीन जून उच्चतम न्यायालय ने एक यूट्यूब कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कथित टिप्पणियों के लिए वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि 1962 के एक फैसले के तहत राजद्रोह के मामलों में पत्रकारों को सुरक्षा का अधिकार है।

दुआ ने पिछले साल 30 मार्च को ‘द विनोद दुआ शो ऑन यूट्यूब’ पर एक वीडियो अपलोड किया था जिसमें कथित तौर पर कहा गया कि प्रधानमंत्री ने पठानकोट और पुलवामा में आतंकी हमलों तथा मौतों का इस्तेमाल वोट पाने के लिए किया।

राजद्रोह के आरोप में हिमाचल प्रदेश के एक स्थानीय भाजपा नेता ने शिमला के कुमारसैन में प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि दुआ ने यह झूठी जानकारी प्रसारित करने की कोशिश की कि सरकार के पास कोविड-19 की पर्याप्त जांच सुविधाएं नहीं हैं।

न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘हमारी दृढ़ राय है कि आईपीसी की धाराओं 124ए तथा 505 (1) (बी) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए याचिकाकर्ता पर मुकदमा चलाना अन्यायपूर्ण होगा।’’

फैसले में कहा गया, ‘‘प्राथमिकी के आरोपों और अन्य परिस्थितियों को देखते हुए ये अपराध नहीं किये गये हैं और इस संबंध में किसी तरह का अभियोजन संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत प्रदत्त याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन होगा।’’

पीठ ने केदानाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में संविधान पीठ के 60 साल पुराने फैसले का विश्लेषण और इस्तेमाल किया तथा कहा, ‘‘केवल वैसी गतिविधियां दंडनीय हैं जिनमें मंशा या प्रवृत्ति हिंसा फैलाकर सार्वजनिक शांति को बाधित करने या अव्यवस्था पैदा करने की हो।’’

पीठ ने दुआ की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह की इस दलील को खारिज कर दिया कि डॉक्टरों की तरह पत्रकार भी संवेदनशील हैं और पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले उनके विरुद्ध शिकायतों का एक समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए।

उसने कहा, ‘‘हालांकि यह स्पष्ट होना चाहिए कि प्रत्येक पत्रकार को केदारनाथ सिंह मामले के अनुरूप सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।’’

1962 के फैसले से चुने गये सिद्धांत दर्शाते हैं कि किसी नागरिक को सरकार तथा उसके पदाधिकारियों के कदमों पर टिप्पणी करने का या उनकी आलोचना करने का अधिकार है, बशर्ते वह लोगों को विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ हिंसा के लिए नहीं उकसाए या सार्वजनिक अव्यवस्था की मंशा से काम नहीं करे।

हालांकि शीर्ष अदालत ने दुआ के इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया कि जब तक एक समिति अनुमति नहीं दे देती, तब तक पत्रकारिता का 10 साल से अधिक का अनुभव रखने वाले किसी मीडिया कर्मी के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए।

पीठ ने कहा कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप होगा।

मीडिया कर्मियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पीठ ने कहा, ‘‘ केदार नाथ सिंह फैसले (भादंवि में राजद्रोह अपराध के दायरे पर 1962 का प्रसिद्ध आदेश) के तहत प्रत्येक पत्रकार सुरक्षा का हकदार है। ’’

भादंवि की धारा 124ए (देशद्रोह) की वैधता बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने 1962 के अपने फैसले में कहा था कि सरकार के कार्यों की आलोचना के लिए एक नागरिक के खिलाफ राजद्रोह के आरोप नहीं लगाए जा सकते, क्योंकि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अनुरूप है।

पीठ ने पिछले साल छह अक्टूबर को दुआ का पक्ष सुनने के बाद याचिका पर आदेश को सुरक्षित रख दिया था।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 20 जुलाई को मामले में किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से दुआ को दिया गया संरक्षण अगले आदेश तक बढ़ा दिया था।

शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि दुआ को मामले के संबंध में हिमाचल प्रदेश पुलिस द्वारा पूछे गए किसी अन्य पूरक प्रश्न का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है।

भाजपा नेता श्याम ने शिमला जिले के कुमारसैन थाने में पिछले साल मई में राजद्रोह, सार्वजनिक उपद्रव मचाने, मानहानिकारक सामग्री छापने आदि के आरोप में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दुआ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी और पत्रकार को जांच में शामिल होने को कहा गया था।

श्याम ने आरोप लगाया था कि दुआ ने अपने यूट्यूब कार्यक्रम में प्रधानमंत्री पर कुछ आरोप लगाए थे।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने पिछले वर्ष 14 जून को रविवार के दिन अप्रत्याशित सुनवाई करते हुए विनोद दुआ को अगले आदेश तक गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया था, लेकिन उनके खिलाफ चल रही जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

दुआ ने न्यायालय से उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया था।

उन्होंने कहा है कि प्रेस की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकार है।

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Web Title: Court quashes FIR against Dua, says journalists entitled to protection in sedition cases

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