न्यायालय यह जांच कर रहा है कि क्या एकीकृत राज्य में आरक्षण का लाभ पाने वाला व्यक्ति राज्य के पुनर्गठन के बाद उससे वंचित हो सकता है

By भाषा | Updated: July 20, 2021 19:21 IST2021-07-20T19:21:10+5:302021-07-20T19:21:10+5:30

Court is probing whether a person who has benefited from reservation in a unified state can be deprived of it after the reorganization of the state. | न्यायालय यह जांच कर रहा है कि क्या एकीकृत राज्य में आरक्षण का लाभ पाने वाला व्यक्ति राज्य के पुनर्गठन के बाद उससे वंचित हो सकता है

न्यायालय यह जांच कर रहा है कि क्या एकीकृत राज्य में आरक्षण का लाभ पाने वाला व्यक्ति राज्य के पुनर्गठन के बाद उससे वंचित हो सकता है

नयी दिल्ली,20 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को इस ‘‘खास प्रश्न’’पर विचार किया कि क्या आरक्षण का लाभ पा रहा अनुसूचित जाति का कोई व्यक्ति राज्य पुनर्गठन के बाद बने राज्य में भी वही सुविधाएं पाने का हकदार है अथवा नहीं।

न्यायालय ने कहा कि उसके समक्ष ऐसा प्रश्न पहली बार आया है और जहां तक इस मामले का संबंध है और इस तरह का कोई फैसला उपलब्ध नहीं है और इसलिए वह इसकी जांच करना चाहेगा क्योंकि यह मुद्दा कहीं भी हो सकता है।

न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से इसमें सहयोग मांगा है, जिन्होंने कहा कि विभाजन के बाद बने राज्यों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण एक समान ही रहेगा क्योंकि पिछड़ेपन की स्थितियां, जिसने उस खास जाति के लोगों को प्रभावित किया है, वे तत्कालीन एकीकृत राज्य के निवासियों से काफी कुछ समान होंगी।

न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ के समक्ष यह प्रश्न अनुसूचित जाति के पंकज कुमार की याचिका पर विचार करने के दौरान सामने आया जिसमें झारखंड उच्च न्यायालय के पिछले वर्ष 24 फरवरी के आदेश को चुनौती दी गई है।

उच्च न्यायालय ने 2:1 बहुमत वाले अपने आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता बिहार और झारखंड दोनों में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता और इस प्रकार से वह राज्य सिविल सेवा परीक्षा के लिये पात्रता नहीं कर सकता।

कुमार का जन्म 1974 में झारखंड के हजारीबाग जिले में हुआ था और 1989 में 15 वर्ष की आयु में वह रांची चले गए थे, जो 15 नवंबर 2000 को बिहार के पुनर्गठन के बाद राज्य की राजधानी के रूप में अस्तित्व में आया।

उन्हें 21 दिसंबर 1999 में रांची के एक स्कूल में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने उसी स्कूल में 2008 तक शिक्षक के रूप में सेवाएं जारी रखी। वर्ष 2008 में कुमार ने झारखंड में तीसरी संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा के लिए आवेदन दिया और उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया गया।

कुमार ने 12 जनवरी 2007 की तिथि वाला अपना जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है जिसमें उन्हें रांची के निवासी के रूप में दिखाया गया था। साथ ही इसमें सिविल सेवा का उनका आवेदन भी था, जिसमें उनका ‘मूल निवास’ पटना बताया गया था।

झारखंड के अतिरिक्त महाधिवक्ता अरुणाभ चौधरी ने कहा कि राज्य उच्च न्यायालय के बहुमत के फैसले का समर्थन कर रहा है और उसका विचार है कि कुमार को बिहार और झारखंड दोनों में आरक्षण का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

इस पर पीठ ने कहा कि वह इस तर्क से सहमत है कि एससी या एसटी से ताल्लुक रखने वाले किसी व्यक्ति को दोनों राज्यों में आरक्षण का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, लेकिन चूंकि कुमार की जाति को बिहार और झारखंड दोनों राज्यों में अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता दी गई है, तो दोनों राज्यों के लोगों को इसका लाभ क्यों नहीं दिया जा सकता, क्योंकि हो सकता है कि वे एक ही बिरादरी से हों।

इस मामले में सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। अब बृहस्पतिवार को इस पर आगे सुनवाई होगी।

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Web Title: Court is probing whether a person who has benefited from reservation in a unified state can be deprived of it after the reorganization of the state.

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