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दिल्ली दंगों को एक राजनीतिक दल की करतूत बताने पर वकील के प्रति अदालत ने जताई नाराजगी

By भाषा | Updated: November 15, 2021 18:39 IST

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नयी दिल्ली, 15 नवंबर दिल्ली की एक अदालत ने एक वकील को उनके इस आरोप पर आड़े लेते हुए अप्रसन्नता जताई कि 2020 में दिल्ली में हुए दंगे एक राजनीतिक दल ने कराए थे और आपराधिक मामले केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों पर थोप दिए गए। अदालत ने उनके इस बयान को अत्यंत गैरजिम्मेदाराना और साफ तौर पर गलत बताया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट्ट ने 11 नवंबर के आदेश में कहा, ‘‘वकील की ये दलीलें निश्चित ही अनुचित हैं। इन्हें बहुत अप्रसन्नता, विरोध और कड़ी अस्वीकृति के साथ संज्ञान में लिया गया है।’’

अदालत के आदेश की प्रति के अनुसार वकील महमूद प्राचा ने अदालत में दलील दी थी कि दंगे दरअसल सांप्रदायिक नहीं थे और संशोधित नागरिकता कानून तथा राष्ट्रीय नागरिक पंजी के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को बाधित करने के लिए कुछ निहित राजनीतिक स्वार्थ वाले लोगों के इशारे पर हुए थे।

वकील ने दंगों में आलोक तिवारी नामक व्यक्ति की कथित तौर पर हत्या के आरोपी आरिफ की जमानत के लिए दलील देते हुए यह बात कही थी।

आदेश के अनुसार, उन्होंने दलील दी कि इन दंगों के बाद पुलिस ने केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया और झूठे मामलों में फंसाया।

न्यायाधीश ने प्राचा की दलीलों को खारिज करते हुए कहा, ‘‘अधिवक्ता ने अपने दावे की पुष्टि के लिए कोई सामग्री रिकॉर्ड में नहीं रखी है जिससे साबित होता हो कि दंगे सांप्रदायिक नहीं थे और किसी राजनीतिक दल की करतूत थे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह तो स्वयं अधिवक्ता ही हैं जो अब पूरी दिल्ली पुलिस को सांप्रदायिक रंग में दिखाने का प्रयास कर रहे हैं और कह रहे हैं कि दंगों से जुड़े आपराधिक मामले केवल मुस्लिम समुदाय के सदस्यों पर थोपे गए हैं। वकील का बयान न केवल बहुत गैर जिम्मेदाराना है बल्कि साफ तौर पर झूठ भी है।’’

न्यायाधीश भट्ट ने कहा कि दंगों से जुड़े मामलों पर सुनवाई के दौरान उन्होंने पाया कि दोनों ही समुदाय के लोगों को आरोपी बनाया गया है और पुलिस ने उनके खिलाफ आरोप-पत्र दायर किए हैं।

उन्होंने वकील प्राचा को अनुचित, गैरजिम्मेदाराना और साफ तौर पर झूठी दलीलें देने से बचने की सलाह दी।

न्यायाधीश ने आरिफ की जमानत याचिका अस्वीकार करते हुए कहा कि पूरी-पूरी आशंका है कि आरोपी इकलौते गवाह को डराने-धमकाने का प्रयत्न करे। उन्होंने कहा कि रिहा करने पर वह फरार होने की कोशिश भी कर सकता है।

फरवरी 2020 में उत्तरपूर्वी दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच झड़प ने सांप्रदायिक दंगों का रूप ले लिया था। उनमें कम से कम 53 लोग मारे गए थे तथा 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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