Coronavirus: कश्मीर के लिए लॉकडाउन नया नहीं, अबकी बार लोग खुद कर रहे घरों में रहने की अपील
By सुरेश एस डुग्गर | Published: March 22, 2020 07:36 AM2020-03-22T07:36:28+5:302020-03-22T07:37:01+5:30
इस बार के इन उपायों की खास बात यह थी कि कश्मीरी खुद इसमें सहयोग कर रहे थे। दरअसल वे इस बात की सच्चाई को जान चुके थे कि इस बार का खतरा उनकी ‘आजादी की तथाकथित मुहिम’ से ज्यादा खतरनाक है।
कोरोना वायरस की रोकथाम की खातिर देश के विभिन्न शहरों में लॉकडाउन ने चाहे नागरिकों की परेशानी को बढ़ाया है, पर कश्मीर के लोगों के लिए यह नया नहीं है। न ही जनता कर्फ्यू उनके लिए कोई नई चीज है। पिछले साल 5 अगस्त को संविधान की धारा 370 को हटाने तथा जम्मू कश्मीर के दो हिस्से कर उसे बांटने की कवायद के साथ ही कश्मीर ने 6 महीने लॉकडाउन में ही गुजारे हैं, वह भी संचारबंदी के साथ।
यही कारण है कि इस बार के लॉकडाउन से कश्मीरियो में कोई घबराहट नजर नहीं आती थी। अगर कोई चिंता और परेशानी दिखती थी तो वह वायरस के फैलने का डर था जिससे अपने आपको दूर रखने के लिए वे प्रशासन का पूरा साथ देने आगे आ रहे थे।
तीन दिन पहले श्रीनगर के खान्यार में एक महिला के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि के बाद प्रशासन ने आनन फानन में कश्मीर के लगभग सभी जिलों में सब कुछ बंद करवा दिया। स्कूल कालेज से लेकर यातायात को भी रोक दिया गया। शनिवार को इस लॉकडाउन का तीसरा दिन था। इतना जरूर था कि कश्मीरियों को लॉकडाउन रखने के लिए प्रशासन ने उन्हीं तौर तरीकों का सहारा लिया था जिनका इस्तेमाल वे पिछले कई सालों से करते आ रहे थे। नागरिक प्रशासन ने सुरक्षाबलों की सहायता से कई कस्बों और शहरों में अघोषित कर्फ्यू लागू करने के साथ ही हर गली-नुक्कड़ पर कांटेदार तार लगा कर लोगों की आवाजाही को रोक दिया था।
इस बार के इन उपायों की खास बात यह थी कि कश्मीरी खुद इसमें सहयोग कर रहे थे। दरअसल वे इस बात की सच्चाई को जान चुके थे कि इस बार का खतरा उनकी ‘आजादी की तथाकथित मुहिम’ से ज्यादा खतरनाक है। यही कारण था कि सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगों को घरों के भीतर रहने और सामुदायिक मुलाकातों को बंद करने की अपीलों के लिए कर रही थीं। जबकि इससे पहले यही देखा गया था कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए ही होता था।
और देश कल जिस जनता कर्फ्यू कहिए या फिर सिविल कर्फ्यू, की तैयारी कर रहा है वह भी जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए खासकर कश्मीरियों के लिए नया नहीं है। कश्मीर में फैले आतंकवाद के 30 सालों के दौर के दौरान कई बार कश्मीर में अलगाववादियों के आह्वान पर कश्मीरी सिविल कर्फ्यू का पालन कर चुके हैं। यही नहीं जम्मू में भी वर्ष 2008 के अमरनाथ जमीन आंदोलन के दौरान जम्मूवासी कई दिनों तक सिविल कर्फ्यू अर्थात जनता कर्फ्यू के दौर से गुजर चुके हैं। ऐसे में जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए ऐसी कवायद के दौर से गुजरना कोई मुश्किलभरा काम नहीं है।