Coronavirus: लॉकडाउन के बाद सौ गुना बढ़ सकती है मानव तस्करी! दिल्ली के रेडलाइट एरिया में फंसे कई सेक्स वर्कर्स
By नितिन अग्रवाल | Published: April 10, 2020 07:13 AM2020-04-10T07:13:08+5:302020-04-10T07:13:08+5:30
Coronavirus: सेक्स वर्कर्स के लिए काम करने वाली पद्मश्री से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता कृष्णन ने लॉकडाउन के बाद मानव तस्करी की आशंका जताई है।
कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन होने के बाद कठिनाई से गुजर रहे सेक्स वर्कर्स के सामने अब मानव तस्करी की समस्या खड़ी हो गई है. सेक्स वर्कर्स के उत्थान के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि लॉकडाउन के बाद मानव तस्करी सौ गुना तक बढ़ जाएगी.
सेक्स वर्कर्स के लिए काम करने वाली पद्मश्री से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता कृष्णन ने लोकमत से बातचीत में कहा कि लॉकडाउन और कोरोना महामारी से हम किस तरह बाहर निकलेंगे यह कोई नहीं जानता. लेकिन मुझे यकीन है कि व्यावसायिक यौन शोषण के लिए महिलाओं और बच्चों की तस्करी में बहुत तेजी से बढ़ोत्तरी होगी. बता दें कि कोरोना लॉकडाउन की मार दिल्ली के मशहूर रेडलाइट इलाके जीबी रोड पर बेहद भारी पड़ी है.
अपनी रंगीनियों के लिए मशहूर दिल्ली की इस बदनाम सड़क पर मौजूद लगभग 100 से ज्यादा कोठे या वैश्यालय 2000 से ज्यादा सेक्स वर्कर्स के लिए जेल बन गए हैं. वैश्यालयों के मालिकों ने तालाबंदी के चलते धंधा बंद कर दिया. जिसके चलते यहां फंसी सेक्स वर्कर्स के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.
पहले से ही अमानवीय हालात में जी रही एक सेक्स वर्कर नूरी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि लॉकडाउन में जिंदगी बेहत कठिन हो गई है.जो जमापूंजी और राशन था अब वो खत्म होने के कागार पर है. सिर पर पहले ही काफी कर्ज है और कमाई नहीं होने के वह बढ़ता जा रहा है. न खाना.. न दवाएं.
सोशल डिस्टेंसिंग संभव नहीं : नूरी के साथ रह रही रागिनी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह लॉकडाउन के बाद बहुत सी दूसरी सेक्स वर्कर्स के साथ वह अपने घर झारखंड के लिए रवाना हुई थी. लेकिन आनंद विहार से लौटा दिया गया जिसके बाद से दोनों ने दिलशाद गार्डन में एक परिचित के घर शरण ली है. रागिनी ने बताया कि जीबी रोड के कोठों में सेक्स वर्कर गंदे, बदबूदार और अंधेरे माहौल में किसी तरह दिन काटने को मजबूर हैं. सोशल डिस्टेंसिंग तो बहुत दूर वहां तो इतनी जगह ही नहीं होती. हां लोग हाथ के बने मास्क के सहारे जिंदगी को भरोसा जरूर दे रहे हैं. बहुत से लोग बीमार हैं लेकिन न तो डॉक्टर तक पहुंचने का कोई जरिया नहीं है. हालांकि स्वंयसेवी संस्थाओं की ओर से खाने के लिए कुछ इंतजाम किए गए हैं लेकिन वह नाकाफी हैं.
बच्चे भी बदनाम रेडलाइट एरिया में फंसे : जिन झरोखों से झांककर सेक्स वर्कर्स अपनी रंगीनियां बिखेरती थी आज लॉकडाउन की वजह से वहां ताले जड़े हैं. सेक्स वर्कर्स के साथ-साथ उनके बच्चे भी इस बदनाम रेडलाइट एरिया की कोठों में फंसे हैं. रागिनी ने बताया कि लगभग हर उम्र और लिंग के बच्चे भी अपनी मां के साथ हैं. बहुत से तो 1 साल या उससे भी छोटे हैं. उनके लिए भी यह समय बहुत दर्दनाक है. रागिनी ने कहा कि टीवी में चल रही खबरों को देखकर दिल बैठा जाता है. पता नहीं तालाबंदी कब खत्म होगी. कोरोना की मार से फिर भी बच जाएंगे लेकिन अगर ये हालात लंबे चले तो लाचारी बहुतों को लील जाएगी.
सेक्स वर्कर्स के लिए मेडिकल इमरजेंसी : सामाजिक कार्यकर्ता सुनीती कृष्णन ने लोकमत को बताया कि लॉकडाउन से सेक्स वर्कर्स के लिए हालात बेहद बदतर हुए हैं. अधिक्तर नशे की लत की शिकार होती हैं. लॉकडाउन के दौरान शराब या दूसरी नशीली चीजें नहीं मिलने से ज्यादातर की हालत गंभीर है. देशभर में हजारों की तादाद में सेक्स वर्कर्स विभिन्न रेडलाइट इलाकों में फंसी हुई हैं. उनमें से कई गंभीर बीमारियों की शिकार हैं और कई तो एड्स से संक्रमित हैं. ऐसे में उनके लिए मेडिकल इमरजेंसी वाले हालात हैं.
नए रास्ते चुनने का समय : सुनीता का मानना है कि लॉकडाउन सेक्सवर्क्स के लिए नया रास्ता चुनने का भी अच्छा मौका है. वह इस जिल्लत की जिंदगी से बाहर निकलकर दूसरे रास्ते चुन सकती हैं. हालांकि अपने रास्ते तय करना ज्यादातर के बस में नहीं होता.