कोरोना वायरस ने अपनी चपेट में दुनिया के अधिकांश देश के लोगों के ले लिया है। चीन के बाद इटली व ईरान में इस वायरस के संक्रमण से न सिर्फ तेजी से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है, बल्कि इस वायरस की चपेट में आकर मरने वाले लोगों की संख्या भी लगातार इन देशों में बढ़ रही है।
भारत की स्थिति दूसरे देशों से बेहतर है लेकिन यहां भी करीब 150 से ज्यादा लोग इस बीमारी से संक्रमित हो गए हैं। ऐसे में इस वायरस से जुड़ी हर जानकारी जो रिसर्च में सामने आ रही है, उसके बारे में हमलोगों को के लिए जानना बेहद जरूरी है।
रॉयटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिजीजेस के साइंटिस्ट ने पता लगाया है कि खांसी व छींक से निकले कोरोना वायरस के कण तीन घंटे तक हवा में रह सकते हैं। यही नहीं रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि कोरोना वायरस सतह पर कई दिनों तक जीवित रहता है। इसकी वजह से संक्रमण का डर संक्रमित होने वाले लोगों की वजह से उसके आसपास कई दिनों तक बना रहता है। साइंटिस्ट की मानें तो तांबे की बर्तन पर यह वायरस बेहद कम समय तक जीवित रहता है।
इसके अलावा बता दें कि भारत के प्रतिष्ठित संस्थान एम्स के डॉक्टर ने बताया कि कोरोना वायरस (कोविड-19) का खतरा महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा हो सकता है। एम्स, दिल्ली के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया के मुताबिक दुनिया भर में चिकित्सा व स्वास्थ्य क्षेत्र में एकत्रित किए जा रहे आंकड़ों से यह चौंकाने वाले संकेत मिले हैं। साथ ही गुलेरिया ने यह भी कहा कि अभी दुनियाभर में जांच और आंकड़ों पर काम जारी है, इसलिए किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना ठीक नहीं होगा।
पुरुषों को ज्यादा प्रभावित करने के संकेतों पर गुलेरिया का कहना है कि इसकी वजह शायद यह हो कि महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता पुरुषों से बेहतर होती है। उन्होंने बताया कि वूहान में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक तो 'ए' टाइप के खून वालों को कोरोना वायरस का खतरा ज्यादा होता है।
गुलेरिया ने कहा कि कोरोना वायरस की एक नई किस्म है. उन्होंने कहा कि चीन से मिले आंकड़ों से यह खुलासा हुआ है कि महिलाओं की तुलना में इसने पुरुषों को ज्यादा प्रभावित किया है। उन्होंने बताया कि अब तक उपलब्ध आंकड़ों को देखकर नहीं लगता कि इससे गर्भवती महिलाओं से यह शिशुओं तक पहुंच सकता है।
गुलेरिया के मुताबिक भारत ने कोरोना पर नियंत्रण को लेकर बहुत ही सधा हुआ रवैया अपनाया है। उन्होंने कहा कि यूके जैसे देशों का 'हर्ड कम्युनिटी' जैसा प्रयोग भारत के लिए ठीक नहीं होगा। इस प्रयोग के तहत स्वस्थ लोगों को पहले संक्रमित होने दिया जाता है और फिर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता के बूते उबरने का मौका दिया जाता है।