‘जी 23’ और असंतुष्टों को आइना दिखाने के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी का चेहरा बदलने की शुरू की कवायद
By शीलेष शर्मा | Published: October 17, 2021 05:53 PM2021-10-17T17:53:45+5:302021-10-17T17:55:19+5:30
कांग्रेस के ‘जी 23’ समूह के प्रमुख सदस्य गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद घोषित संगठनात्मक चुनाव के कार्यक्रम का स्वागत किया और सोनिया गांधी के नेतृत्व की सराहना की।
नई दिल्लीः कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में असंतुष्टों को आइना दिखाने के बाद सोनिया गांधी अब कांग्रेस का चेहरा बदलने की कवायद में जुट गयी हैं। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार सोनिया गांधी तय कर चुकी हैं कि अगले साल होने वाले संघठनात्मक चुनाव से पहले राहुल गांधी के लिए अध्यक्ष बनाने का रास्ता साफ कर देंगी।
पार्टी के एक महासचिव ने संकेत दिए कि अपने इस इरादे को अंजाम देने के लिए सोनिया गांधी राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक पार्टी में युवा चेहरों को आगे लाने की रणनीति बना चुकी हैं। हाल के दिनों में विभिन्य राज्यों में सोनिया ने जो फेरबदल किये हैं उनमें अधिकांश वे चेहरे शामिल हैं जो राहुल की पसंद बताये जाते हैं।
दरअसल सोनिया चुनाव से पहले संगठन के हर महत्वपूर्ण पद पर राहुल के वफादारों को बैठाने का काम करेंगी। इसी क्रम में राष्ट्रीय स्तर पर भी नए महासचिवों की नियुक्तियां सोनिया के अजेंडे पर हैं। सोनिया अपने मुहिम में कितनी कामयाब होती हैं, यह उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब जैसे राज्यों के विधानसभा के चुनाव के नतीजे तय करेंगे।
अगर इन राज्यों में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती है तो राहुल का फिर से अध्यक्ष बनना तय है। पार्टी के महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने दो टूक कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल को फिर अध्यक्ष के पद पर देखना चाहते हैं। इधर एके एंटोनी, हरीश रावत, अशोक गहलोत सरीके वरिष्ठ नेता भी इस बात पर अड़े हैं कि पार्टी की कमान राहुल को सौंप दी जाए।
जी 23 समूह के नेताओं के पास ग़ुलाम नबी आजाद को छोड़ कर अब कोई ऐसा नेता शेष नहीं है, जिसे चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए राहुल के सामने उतारा जा सके। हैरानी की बात तो यह है कि असंतुष्टों के खेमे में भी फूट पड़ चुकी है, जिसके कारण आंनद शर्मा, कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा सरीखे नेता अलग-थलग पड़ते नज़र आ रहे हैं।
प्राप्त संकेतों के अनुसार चुनाव से पूर्व सोनिया गांधी गुलाम नबी आज़ाद को भी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी देकर इस खेमे से अलग कर देना चाहती हैं। 1999 में जिस तरह सोनिया गांधी के खिलाफ अध्यक्ष पद के लिए जितेन्द्र प्रसाद चुनाव मैदान में उतरे थे उसी तरह यदि असंतुष्ट खेमे का कोई नेता राहुल के खिलाफ उतरता है तो उसी रणनीति के तहत राहुल अपनी प्रतिद्वंदी को पराजित करने में कामयाब होंगे, क्योंकि तब तक सोनिया सभी महत्वपूर्ण पदों पर अपने वफादारों को बैठा चुकी होंगी।
कार्यसमिति के चुनाव में भी राहुल और सोनिया के समर्थन से जो लोग चुनाव मैदान में उतरेंगे उनको जिताने के लिए पहले से ही मतदान करनेवाले पार्टी के डेलीगेट गांधी परिवार की पसंद के होंगे ताकि चुनाव में किसी चुनौती का सामना न करना पड़े और राहुल की पसंद की कार्य समिति जिसमें युवाओं की बेहतरीन हिस्सेदारी होगी बन सके।