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समाज को बनाए रखने और मानवता की प्रगति सुनिश्चित करने का काम करता है धर्म : जस्टिस दीपक मिश्रा

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 11, 2018 20:55 IST

न्यायमूर्ति मिश्रा ने ‘मानव मूल्यों और कानून की दुनिया’ विषय पर यहां दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद कहा, "धर्म एक अवधारणा है जिसका अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में सही रूप में अनुवाद नहीं किया जा सकता है।

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आंध्र प्रदेश, 11 अगस्त: प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने आज कहा कि धर्म, समाज और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखता है। इसके अलावा यह मानवता की भलाई और प्रगति सुनिश्चित करता है।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने ‘मानव मूल्यों और कानून की दुनिया’ विषय पर यहां दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद कहा, "धर्म एक अवधारणा है जिसका अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में सही रूप में अनुवाद नहीं किया जा सकता है। यह समाज को बनाए रखता है, सामाजिक व्यवस्था कायम रखता है और मानवता की प्रगति के अलावा कल्याण सुनिश्चित करता है।"

उच्चतम न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के 30 से ज्यादा वर्तमान न्यायाधीशों के अलावा विधिक बिरादरी के 750 से अधिक प्रतिनिधि इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। इसे भारत में अपनी तरह का पहला सम्मेलन बताया जा रहा है।

मानव मूल्यों और मानवाधिकारों के बीच भेद करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि कोई व्यक्ति मानवाधिकारों का लाभ तभी ले सकता है जब वह दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है। उन्होंने कहा, "मानव मूल्यों और मानवाधिकारों के बीच भेद है। हमें मानव मूल्यों को व्यक्त करके मानवाधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता है। कोई दूसरों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किये बिना मानवाधिकारों का लाभ ले सकता है। आपको दूसरों के मानवीय मूल्यों में विघ्न नहीं डालना चाहिए।" ।

उन्होंने कहा कि यदि मानव मूल्य खत्म हो गए तो पूरी इमारत गिर जाएगी। उन्होंने मानवीय स्पर्श के साथ न्याय प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, ‘‘कानून और न्याय मानवता के साथ मिश्रित है।" आध्यात्मिक गुरू सत्य साई बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति केवल अहंकार को छोड़कर ही शांति प्राप्त कर सकता है।

जीवन और कानूनी दुनिया में आध्यात्मिकता और मानवता के महत्व के बारे में बात करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि आध्यात्मिकता तार्किकता से परे नहीं है और तार्किकता आध्यात्मिकता से वंचित नहीं है, और इसलिए उनके बीच एक संश्लेषण, मेल और तालमेल होना चाहिए।

ईश्वर के समक्ष आत्मसमर्पण के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि किसी की कल्पना से समस्याएं हल नहीं होंगी और तार्किकता भी समस्याओं के उत्तर प्रदान नहीं करेगी।

सीजेआई ने कहा, "केवल एक चीज, जो समस्या का समाधान प्रदान करती है, वह है आत्मसमर्पण। जैसा कि आप बाबा से कहते हैं, अब मैं आपके सामने समर्पण करता हूं।" इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश दलवीर भंडारी, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टीबीएन राधाकृष्णन, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और एनसीएलएटी के अध्यक्ष एस जे मुखोपाध्याय भी उपस्थित थे।

कानून के पेशे में मानव मूल्यों के महत्व पर चर्चा करने के लिए आयोजित सम्मेलन कल समाप्त होगा। इसमें विधि बिरादरी के सदस्य और छात्र हिस्सा ले रहे हैं।

 

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