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नागरिकता संशोधन बिल: बदले पार्टियों के सुर, बढ़ रहा समर्थन, शिवसेना, जेडीयू साथ, तृणमूल चुप, कांग्रेस कर रही अध्ययन

By अभिषेक पाण्डेय | Updated: December 5, 2019 08:26 IST

Citizenship Amendment Bill: नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर पहले विरोध कर रही पार्टियां अब धीरे-धीरे इसके समर्थन में आने लगी हैं

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ठळक मुद्देनागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर बदला पार्टियों का रुखजेडीयू, बीजेडी और तृणमूल जैसी पार्टियों का रुख बदला

नागरिकता संशोधन विधेयक को जब पिछली लोकसभा में पेश किया गया था तो ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया था और इसके लिए जॉइंट पार्लियामेंट कमिटी का गठन किया था। लेकिन अब इस सत्र में जब बीजेपी सरकार इसे फिर से संसद में पेश करने की तैयारी में हैं, तो विरोध के सुर मंद पड़ रहे हैं और इसका समर्थन करने वाली पार्टियों की संख्या में इजाफा हो रहा है।  

बुधवार को जब केंद्रीय कैबिनेट ने नागरिकता संशोधन बिल को इस शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किए जाने को मंजूरी दे दी, तो इस बात के भी संकेत मिलने लगे कि पहले इस बिल का विरोध कर रही कई पार्टियां अब इसका समर्थन करेंगी।

बीजेपी ने किया राज्यसभा में 122 सदस्यों के समर्थन का दावा

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी का कहना है कि राज्य सभा में पहले ही इस बिल का 122 सदस्य समर्थन कर रहे हैं और उसे और पार्टियों के भी इसमें जुड़ने की उम्मीद है। राज्यसभा की वर्तमान संख्या 238 है। अपने पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार इस बिल को राज्यसभा में बहुतम न होने से पास नहीं करवा पाई थी।

जेडीयू ने बदला रुख, पहले विरोध, अब साथ

पिछली बार जब इस बिल को लोकसभा में पेश किया गया था तो एनडीए की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड ने इसका विरोध करते हुए सदन से वॉक आउट किया था। यहां तक कि उसने इस बिल का विरोध करने के लिए एक अभियान भी चलाया था। पार्टी के प्रतिनिधिमंडल ने इस साल की शुरुआत में उत्तर-पूर्वी राज्यों का दौरा किया था और वहां इसका विरोध कर रहे सिविल सोसाइटीज को इस बिल के खिलाफ वोट करने का भरोसा दिलाया था। 

बुधवार को जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी का रुख पूर्वोत्तर की कुछ सामना विचारधारा वाली पार्टियों से चर्चा के बाद बदल गया है, जिन्होंने खुद भी बिल का समर्थन करने का फैसला किया है।

बीजेडी करेगी समर्थन, तृणमूल का भी बदला रुख

बीजेडी के भातृहरि महताब ने इस बिल का उस समय विरोध किया था, जब बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल की अगुवाई वाली जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी ने अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देते हुए इस बिल को इसके मूल स्वरूप में पेश करने की सिफारिश की थी। उन्होंने ये कहते हुए बिल का विरोध किया था कि ये असम समझौते के प्रावधान का उल्लंघन करता है, जिसके मुताबिक 25 मार्च 1971 के बाद भारत आने वालों को घुसपैठिया माना जाता है। 

इस रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेडी अब बिल का समर्थन करने को तैयार हैं क्योंकि इसमें पूर्वोत्तर राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों को छूट दी गई है।

इस बिल का सबसे प्रबल विरोध तृणमूल कांग्रेस ने किया था और उसके दो नेताओं सौगत रॉय और डेरेक ओ ब्रायन ने संयुक्त ससंदीय समिति को अपना असहमति नोट दिया था। 

बुधवार को, तृणमूल अपने रुख पर खामोश रही और माना जा रहा है कि वह बिल के विरोध को लेकर अपनी आपत्तियों को खारिज कर सकती है।

नागरिकता संशोधन बिल, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देना है, को कई विपक्षी पार्टियों ने सांप्रदायिक और विघटनकारी बताते हुए विरोध किया है और कांग्रेस ने तो इसको चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की धमकी दी है।  

बुधवार को कैबिनेट से पास बिल में इनर लाइन परमिट (ILP) शासित क्षेत्रों और संविधान की छठी अनुसूची द्वारा शासित क्षेत्रों को छूट दी गई है। शनिवार को पूर्वोत्तर के प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें यकीन दिलाया था कि राज्य के कुछ क्षेत्रों को इससे छूट मिलेगी। शाह ने पूर्वोत्तर के कुछ समूहों से बुधवार को भी बातचीत की।

वाईएसआरसीपी, शिरोमणि अकाली दल, एलजेपी बिल के समर्थन में 

इस बिल को अपना समर्थन देते हुए वाईएसआरसीपी के विजयसाई रेड्डी ने कहा कि पड़ोसी देशों में सताए गए लोगों का समर्थन करने में कुछ भी गलत नहीं है। ये एक सुरक्षात्मक भेदभाव है। धार्मिक आधार पर भेदभाव के बारे में पूछे जाने पर रेड्डी ने कहा कि ये सताए गए अल्पसंख्यकों के लिए है, जिसका हम विरोध नहीं कर सकते हैं। 

बीजेपी के दो प्रमुख सहयोगी शिरोमणि अकाली दल और एलजेपी के इस बिल का समर्थन करने की उम्मीद है। आप, एआईएडीएमके और टीआरएस, जिन्होंने पिछले सत्र में महत्वपूर्ण बिलों पर सरकार का समर्थन किया था, इस री-ड्राफ्डेट बिल को लेकर अपने रुख का ऐलान नहीं किया है। 

शिवसेना बिल के समर्थन पर कायम 

इस बिल की प्रबल समर्थक रही शिवसेना, अब सत्तारूढ़ गठबंधन से विपक्षी दल बन गई है, लेकिन उइस बिल पर उसका रुख वही है। शिवसेना के विनायक राउत ने कहा कि हमने हमेशा ही इस विचार का समर्थन किया है। हम इस बिल के प्रावधानों को देखेंगे और फिर फैसला लेंगे। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों पर हम हमेशा सकारात्मक फैसला लेंगे।  

कांग्रेस अध्यनय के बाद करेगी फैसला

अब तक इस बिल का विरोध कर रही कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि वह बिल का अध्ययन करने के बाद इस पर फैसला लेगी। कांग्रेस ने कहा कि उसे मीडिया से पता चला है कि बिल में बदलाव किए जा रहे हैं, लेकिन हम बिल को देखने के बाद ही इस पर फैसला कर पाएंगे। 

वहीं इस बिल का विरोध करने वाले सीपीआई-एम के मोहम्मद सलीम ने कहा पार्टी अब भी इसका विरोध कर रही है क्योंकि नागरिकता को धर्म से जोड़कर तय नहीं किया जा सकता है। पार्टी का कहना है कि इसी वजह से वह नागरिकता संशोधन बिल को अस्वीकार करती है और ये असंवैधानिक है।  

वहीं समाजवादी पार्टी के जावेद अली ने भी इस बिल पर अपनी असहमति जताई है, लेकिन इसको लेकर उनकी पार्टी का रुख स्पष्ट नहीं है। यही हाल 2019 लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी का रुख भी अभी इसको लेकर स्पष्ट नहीं है।  

टॅग्स :नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016नरेंद्र मोदीअमित शाहकांग्रेसजेडीयूसीपीआईएम
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