आरक्षण के जनक और सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे छत्रपति शाहू महाराज
By पल्लवी कुमारी | Published: June 26, 2018 07:43 AM2018-06-26T07:43:38+5:302018-06-26T07:43:38+5:30
2 जुलाई 1894 में उन्होंने कोल्हापुर का शासन सूत्र अपने हाथों में लिया और 28 साल तक वहां का शासन किया। 19-21अप्रैल 1919 को कानपुर में आयोजित अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के 13 वें राष्ट्रीय सम्मलेन में उन्हें राजर्षि के खिताब से नवाजा गया
नई दिल्ली, 25 जून: छत्रपति शाहूजी महाराज महाराष्ट्र के निकट कोल्हापुर संस्थान के राजा थे। इनकी 26 जून को 144वीं जयंती है। ये शूद्र जाति से थे और इनको आरक्षण का जनक भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने अपने शासन काल में दरबार से सारे ब्राह्मणों को हटवा दिया था। ब्राह्मणों को हटाकर बहुजन समाज को मुक्ति दिलाने का क्रांतिकारी कदम छत्रपति शाहूजी ने ही उठाया था। इन्होंने इसके साथ ही शूद्रों एवं दलितों के लिए शिक्षा का दरवाजा खोलकर उन्हें मुक्ति की राह दिखाने में बहुत बड़ा कदम उठाया था।
उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में आधुनिक भारत में एक नाम उभरकर सामने आता है, जिसे राजा अशोक की उपाधी दी गई थी। छत्रपति साहू महाराज को भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता था। वह कोल्हापुर के इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी याद किए जाते हैं। ये एक ऐसे राजा थे, जिन्होंने छत्रपति साहू महाराज ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा। उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की थी। इन्होंने गरीब छात्रों के छात्रावास स्थापित किए और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान करने के आदेश दिए।
साहू महाराज के शासन के दौरान 'बाल विवाह' पर ईमानदारी से प्रतिबंधित लगाया गया। उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था। छत्रपति साहू महाराज का बचपन का नाम 'यशवंतराव' था। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे। इनका जन्म जन्म 26 जून 1874 में हुआ था।
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बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को छत्रपति साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी पर बिठा दिया गया था। छत्रपति साहू महाराज की माता राधाबाई मुधोल राज्य की राजकन्या थी। पिता जयसिंग रॉव उर्फ अबासाहेब घाटगे कागल निवासी थे। उनके दत्तक पिता शिवाजी चतुर्थ व दत्तक माता आनंदी बाई थी।
छत्रपति शाहू महाराज केवल 3 वर्ष के थे तभी उनकी सगी माँ राधाबाई 20 मार्च 1977 को मृत्यु हो गई थी। छत्रपति संभाजी की माँ का देहांत बचपन में ही हुआ था। इसलिए उनका लालन-पालन जिजाबाई ने किया था। छत्रपति साहू महाराज की उम्र जब 20 वर्ष थी, उनके पिता अबासाहेब घाटगे की मृत्यु भी हो गई थी।
छत्रपति शाहू महाराज की शिक्षा राजकोट के राजकुमार विद्यालय में हुई थी। प्रारंभिक शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई रजवाड़े में ही एक अंग्रेज शिक्षक 'स्टुअर्ट मिटफर्ड फ्रेजर ' को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अंग्रेजी शिक्षक और अंग्रजी शिक्षा का प्रभाव छत्रपति शाहू महाराज के दिलों-दिमाग पर काफी हावी था। वैज्ञानिक सोच को न सिर्फ वे मानते थे बल्कि इसे बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास करते थे। पुरानी प्रथा, परम्परा अथवा काल्पनिक बातों को वे महत्त्व नहीं देते थे।
2 जुलाई 1894 में उन्होंने कोल्हापुर का शासन सूत्र अपने हाथों में लिया और 28 साल तक वहां का शासन किया। 19-21अप्रैल 1919 को कानपुर में आयोजित अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के 13 वें राष्ट्रीय सम्मलेन में उन्हें राजर्षि के खिताब से नवाजा गया। दलितों की दशा में बदलाव लाने के लिए उन्होंने दो ऐसी विशेष प्रथाओं का अंत किया जो युगांतरकारी साबित हुईं। पहला,1917 में उन्होंने उस ‘बलूतदारी-प्रथा’ का अंत किया। जिसके तहत एक अछूत को थोड़ी सी जमीन देकर बदले में उससे और उसके परिवार वालों से पूरे गाँव के लिए मुफ्त सेवाएं ली जाती थीं। इसी तरह 1918 में उन्होंने कानून बनाकर राज्य की एक और पुरानी प्रथा ‘वतनदारी’ का अंत किया तथा भूमि सुधार लागू कर महारों को भू-स्वामी बनने का हक दिलाया। इस आदेश से महारों की आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हो गई।
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