सार्वजनिक स्थानों पर नहीं होगी छठ पूजा, त्योहार मनाने के लिए पहले जीवित रहना होगा: अदालत
By भाषा | Published: November 18, 2020 08:51 PM2020-11-18T20:51:25+5:302020-11-18T20:51:25+5:30
नयी दिल्ली, 18 नवंबर कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर के बीच दिल्ली उच्च न्यायालय ने जलाशय और नदी तट जैसे सार्वजनिक स्थलों पर छठ पूजा मनाने की अनुमति देने से बुधवार को इनकार कर दिया और कहा कि किसी भी व्यक्ति को कोई भी त्योहार मनाने या किसी भी धर्म का पालन करने के लिए पहले जीवित रहना होगा।
उच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली के बाशिंदो का स्वास्थ्य का अधिकार सर्वोच्च है और छठ मनाने की ऐसी कोई भी अनुमति देने का परिणाम लोगों को ‘संक्रमण का वाहक’ बनाना होगा।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा, ‘‘ समाज के सभी वर्गों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन त्योहार मनाने के अधिकार की जगह लोगों के जीवन जीने और स्वास्थ्य के अधिकार की बलि नहीं दी जा सकती है, भले ही वह किसी खास समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हो।’’
पीठ ने दुर्गा जन सेवा ट्रस्ट की याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘ इस संक्रमण को काबू में लाने के लिए चीजें (गतिविधियां) बढ़ाने नहीं बल्कि घटाने का समय है।’’
दुर्गा जन सेवा ट्रस्ट ने दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) के अध्यक्ष द्वारा जारी प्रतिबंध के आदेश को चुनौती दी थी। डीडीएमए ने 10 नवंबर को अपने आदेश में कहा था कि 20 नवंबर को छठ पूजा के लिए सार्वजनिक स्थलों पर भीड़ के एकत्रित होने की अनुमति नहीं होगी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि छठ पूजा के लिए 1000 लोगों के इकट्ठा होने की अनुमति देने की मांग संबंधी इस अर्जी में दम नहीं है।
पीठ ने कहा, ‘‘दिल्ली सरकार शादियों में 50 से ज्यादा लोगों को आने की इजाजत नहीं दे रही है और आप चाहते हैं कि केवल 1,000 लोग आएं।’’
पीठ ने कहा कि उसे डीडीएमए के 10 नवंबर के आदेश में दखल देने का कोई कारण नजर नहीं आता क्योंकि डीडीएमए ने दिल्ली में कोविड-19 संक्रमण के प्रसार को ध्यान में रखा और लोगों को 20 नवंबर को छठ मनाने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर इकट्ठा नहीं होने देने का निर्णय लिया।
न्यायालय ने कहा, ‘‘आपको कोई भी त्योहार मनाने के लिए जीवित रहना होगा।’’ पीठ ने कहा कि दिल्ली के बाशिंदों का स्वास्थ्य का अधिकार सर्वोच्च है।
अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि मौजूदा समय में इस तरह की याचिका जमीनी सच्चाई से परे है।
अदालत ने कहा कि प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता कोविड-19 की स्थिति से वाकिफ नहीं है।
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