Chandrayaan-2: ISRO के नाम नई उपलब्धि, मात्र 35 घंटे में खोजा 'विक्रम', यूरोपियन स्पेस एजेंसी को लगे थे 12 साल
By रामदीप मिश्रा | Updated: September 10, 2019 16:50 IST2019-09-10T15:10:34+5:302019-09-10T16:50:48+5:30
Chandrayaan-2: बीगल-2 यान को मंगल पर 2 जून 2003 को भेजा गया था और उसे 19 दिसंबर 2003 को मंगल ग्रह की सतह पर लैंड करना था, लेकिन उससे पहले ही यान से संपर्क टूट गया था। इसके बाद उसका 12 साल बाद पता चला था।

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 'चंद्रयान-2' (Chandrayaan-2) के लैंडर 'विक्रम' को चांद की सतह पर साबुत अवस्था में पाया है और यह सिर्फ उसने संपर्क टूटने के 35 घंटे के बाद कामयाबी हासिल की। अब वह उससे संपर्क साधने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है। इस बीच देश-विदेश से इसरो को जमकर तारीफ मिली है, यह इसलिए भी हुआ है क्योंकि इसरो ने अपने पहले ही प्रयास में करीब 95 फीसदी मिशन सफल कर लिया।
बताते चलें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब इसरो के मिशन Chandrayaan-2 के लैंडर 'विक्रम' से संपर्क टूटा। इससे पहले यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) का एक बीगल-2 नाम का यान मंगल ग्रह पर भेजा गया था, जिससे संपर्क टूट गया था और वैज्ञानिकों ने उसके बाद लगातार यान से संपर्क साधने की कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता हाथ नहीं लगी थी।
बीगल-2 यान को मंगल पर 2 जून 2003 को भेजा गया था और उसे 19 दिसंबर 2003 को मंगल ग्रह की सतह पर लैंड करना था, लेकिन उससे पहले ही यान से संपर्क टूट गया था। इसके बाद उसका 12 साल बाद उस समय पता चला कि जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (नासा) का यान मार्स रिकॉन्सेंस ऑर्बिटर मंगल की कक्षा में चक्कर लगा रहा था। इस दौरान उसने 16 जनवरी 2015 को बीगल-2 की तस्वीरों को क्लिक कर लिया था। तस्वीरों का विश्लेषण करने के दौरान पता चला था कि बीगल-2 लैंडिग के स्थान से करीब पांच किलोमीटर दूर पड़ा था।
आपको बता दें कि इसरो ने अपने लैंडर विक्रम के बारे में कहा है कि वह हार्ड लैंडिंग की वजह से यह झुक गया है और उससे पुन: संपर्क स्थापित करने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। 'विक्रम' का शनिवार को 'सॉफ्ट लैंडिंग' के प्रयास के अंतिम क्षणों में उस समय इसरो के नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया था जब यह चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था। लैंडर के भीतर 'प्रज्ञान' नाम का रोवर भी है।
मिशन से जुड़े इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि लैंडर के फिर सक्रिय होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन कुछ सीमाएं हैं। उन्होंने भूस्थिर कक्षा में संपर्क से बाहर हुए एक अंतरिक्ष यान से फिर संपर्क बहाल कर लेने के इसरो के अनुभव को याद करते हुए कहा कि ‘विक्रम’ के मामले में स्थिति भिन्न है। वह पहले ही चंद्रमा की सतह पर पड़ा है और उसकी दिशा फिर से नहीं बदली जा सकती।
बता दें 'चंद्रयान-2' मिशन पर 978 करोड़ रुपये की लागत आई है। भारत अब तक का ऐसा एकमात्र देश है जिसने चांद के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर पहुंचने का प्रयास किया है। मिशन के 'सॉफ्ट लैंडिंग' चरण में यदि सफलता मिलती तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाता।