'मैं आजाद था, आजाद हूं, आजाद रहूंगा' ठानकर आखिरी सांस तक चंद्रशेखर रहे आजाद, जयंती पर पढ़ें उनकी वीरता के किस्से
By पल्लवी कुमारी | Published: July 23, 2020 10:32 AM2020-07-23T10:32:42+5:302020-07-23T10:38:51+5:30
Chandra Shekhar Azad Jayanti:चंद्रशेखर आजाद की जयंती के मौके पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर देश के तमाम नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने देश की आजादी के लिए अपने जीवन की आहुति दे दी थी।
नई दिल्ली: अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई अहम भूमिका निभाने वाले चंद्रशेखर आजाद की आज जयंती है। चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश में हुआ था। महज 14 साल की उम्र में चंद्रशेखर आजाद ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। जिसके बाद उन्हें जेल भी जाना पड़ा था और उन्हें 15 बेतें (कोड़े) मारने की सजा मिली थी। इसी वक्त से वह अंग्रजों के आंखों में खटकने लगे थे। 15 बेतों की सजा का उल्लेख पं. जवाहरलाल नेहरू ने कायदा तोड़ने वाले एक छोटे से लड़के की कहानी के रूप में किया है। उन्होंने लिखा है,''ऐसे ही कायदे (कानून) तोड़ने के लिए एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र 14 या 15 साल की थी, उसे बेंत (कोड़े) की सजा दी गयी थी। वो अपने को आजाद कहता था। वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बांध दिया गया। जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते थे और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते थे, वह 'भारत माता की जय!' चिल्लाता था। हर बेंत के साथ वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया। बाद में वही लड़का उत्तर भारत के क्रांतिकारी कार्यों के दल का एक बड़ा नेता बना।''
चंद्रशेखर आजाद ने ये प्रण लिया था कि अंग्रेज उन्हें कभी भी जिंदा नहीं पकड़ पाएगा और ऐसा ही हुआ। करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत रहे चंद्रशेखर आजाद ने कहा था, 'मैं आजाद था, आजाद हूं, आजाद रहूंगा'। सच में ऐसा ही हुआ। आइए जानते हैं चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी कुछ रोचक बातें।
अंग्रेजों से बचने के लिए सन्यासी के वेश में गुफा में रहते थे चंद्रशेखर आजाद
स्वतंत्रता संघर्ष के लिए चंद्रशेखर आजाद हमेशा से ही अपनी गतिविधियों को लेकर अंग्रेजों के निशाने पर रहे। अंग्रेजों ने बचने के लिए उन्होंने एक गुफा बनाई थी। कहा जाता है कि मध्य प्रदेश के झांसी के पास एक मंदिर में चंद्रशेखर आजाद ने 8 फीट की एक गहरी गुफा बनाई थी।
गुफा में चंद्रशेखर एक सन्यासी के रूप में रहते थे और वहीं से अपने स्वतंत्रता संघर्ष को जारी भी रखते थे। लेकिन अंग्रेजों ने चंद्रशेखर आजाद के इस ठिकाने का पता लगा लिया था। जब अंग्रेज चंद्रशेखर आजाद के इस गुफा में दबिश देने आए तो चंद्रशेखर आजाद वहां से एक महिला का वेश बनाकर निकल गए थे।
काकोरी कांड में फरार होने के बाद से ही छिपने के लिए चंद्रशेखर साधु का वेश बनाना बखूबी सीख लिया था और इसका उपयोग चंद्रशेखर कई बार किया।
एक बार चंद्रशेखर अपने दल के लिए धन जुटाने हेतु गाजीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद मठ की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाए।
अंग्रेजों के हाथ ना आए इसलिए नष्ट करवा दी थी सारी तस्वीरें
चंद्रशेखर आजाद ने ये ठानी थी कि वह जिंदा रहते कभी भी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे। इसके लिए उन्होंने अपनी सारी तस्वीरों को नष्ट करवा दी थी। अपने घर और रिश्तेदारों के पास जितनी भी चंद्रशेखर की तस्वीरें थी सबको उन्होंने नष्ट करवा दिया था। हालांकि चंद्रशेखर आजाद की एक तस्वीर झांसी में रह गई थी। जब उन्हें इसका आभास हुआ तो उन्होंने अपने एक मित्र को तस्वीर नष्ट करने के लिए भेजा था। लेकिन वह संभव नहीं हो पाया।
चंद्रशेखर ने ऐसा इसलिए करवाया था कि ताकि कोई अंग्रेज उनका असली चेहरा ना देख पाए। चंद्रशेखर आजाद अक्सर अपना वेश बदलकर अपने स्वतंत्रता गतिविधियों को अंजाम दिया करते थे।
जालियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर आजाद ने आदिवासियों से तीरंदाजी का प्रशिक्षण भी लिया था। ताकि वह हर स्थिति में अंग्रेजों को सबक सिखा सकें। चंद्रशेखर आजाद हमेशा अपने साथ एक माउजर (पिस्टल) रखते थे। जिसका नाम उन्होंने 'बमतुल बुखारा' रखा था।
इस तरह वीरगति को प्राप्त हुए चंद्रशेखर आजाद
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलवाने की चंद्रशेखर आजाद ने काफी कोशिश की थी। इसी क्रम में उन्होंने 11 फरवरी 1931 को लंदन की प्रिवी कौन्सिल में अपील की थी। जिसे खारिज कर दिया गया था। इस सिलसिले में चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश की हरदोई जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से भी मिले थे। उनकी सलाह पर 20 फरवरी 1931 को वह इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनन्द भवन में भेंट की। उन्होंने पंडित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी को उम्र-कैद में बदलवाने के लिए जोर डाले।
इलाहाबाद में रहने के दौरान ही 27 फरवरी को अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद अपने एक मित्र से बात कर रहे थे उसी दौरान वहां अंग्रेजी सेना पहुंच गई। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना 27 फरवरी 1931 के दिन घटित हुई और हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गई। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिए चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संस्कार कर दिया था।
जैसे ही आजाद के बलिदान की खबर जनता को लगी इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में भीड़ उमड़ गई थी। जिस पेड़ के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस पेड़ की पूजा करने लगे।