हथियार डाल दें, एक भी गोली नहीं चलेगी, शाह ने कहा-चरमपंथी हथियार डालकर आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो स्वागत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 28, 2025 23:08 IST2025-09-28T23:07:18+5:302025-09-28T23:08:37+5:30

हाल ही में भ्रम फैलाने के लिए एक पत्र लिखा गया, जिसमें कहा गया कि अब तक जो कुछ हुआ है वह एक गलती है, युद्ध विराम घोषित किया जाना चाहिए और हम (नक्सली) आत्मसमर्पण करना चाहते हैं। मैं कहना चाहता हूं कि कोई संघर्षविराम नहीं होगा। अगर आप आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो संघर्षविराम की कोई जरूरत नहीं है।

Ceasefire proposal rejected talks only down arms Home Minister Amit Shah said extremists want surrender welcome security forces not fire single bullet | हथियार डाल दें, एक भी गोली नहीं चलेगी, शाह ने कहा-चरमपंथी हथियार डालकर आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो स्वागत

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Highlights“लाल आतंक” के कारण ही था कि कई दशकों तक देश के कई हिस्सों में विकास नहीं हो सका।भाकपा (माओवादियों) द्वारा की गई संघर्ष विराम की पेशकश के जवाब में कही।“ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट” सहित कई शीर्ष नक्सलियों के सफाए के बाद की गई थी।

नई दिल्लीः केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को माओवादियों द्वारा दिए गए संघर्ष विराम के प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि अगर चरमपंथी हथियार डालकर आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है और सुरक्षा बल उन पर एक भी गोली नहीं चलाएंगे। यह पहला मौका है जब केंद्र सरकार के किसी शीर्ष पदाधिकारी ने लगभग एक पखवाड़े पहले नक्सलियों द्वारा दिए गए संघर्ष विराम प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। शाह ने कहा, “हाल ही में भ्रम फैलाने के लिए एक पत्र लिखा गया, जिसमें कहा गया कि अब तक जो कुछ हुआ है वह एक गलती है, युद्ध विराम घोषित किया जाना चाहिए और हम (नक्सली) आत्मसमर्पण करना चाहते हैं। मैं कहना चाहता हूं कि कोई संघर्षविराम नहीं होगा। अगर आप आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो संघर्षविराम की कोई जरूरत नहीं है।

हथियार डाल दें, एक भी गोली नहीं चलेगी।” उन्होंने कहा कि यदि नक्सली आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो उनके लिए “लाभदायक” पुनर्वास नीति के साथ भव्य स्वागत किया जाएगा। ‘नक्सल मुक्त भारत’ पर आयोजित संगोष्ठी के समापन सत्र को संबोधित करते हुए शाह ने वामपंथी उग्रवाद को वैचारिक समर्थन देने के लिए वामपंथी दलों पर निशाना साधा और उनके इस तर्क को खारिज कर दिया कि विकास की कमी के कारण माओवादी हिंसा हुई। उन्होंने कहा कि यह “लाल आतंक” के कारण ही था कि कई दशकों तक देश के कई हिस्सों में विकास नहीं हो सका।

उन्होंने कहा, “मैं आपको बताना चाहता हूं कि कोई युद्धविराम नहीं होगा। यदि आप आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो हथियार डाल दीजिए, एक भी गोली नहीं चलेगी। यदि आप आत्मसमर्पण करते हैं तो आपका भव्य स्वागत किया जाएगा।” शाह ने यह बात कुछ समय पहले भाकपा (माओवादियों) द्वारा की गई संघर्ष विराम की पेशकश के जवाब में कही।

यह पेशकश सुरक्षा बलों द्वारा छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर चलाए गए “ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट” सहित कई शीर्ष नक्सलियों के सफाए के बाद की गई थी। मंत्री ने कहा कि ऐसे कई लोग हैं, जो मानते हैं कि नक्सलियों द्वारा की जा रही हत्याओं को रोकना ही भारत से नक्सलवाद को खत्म करने के लिए पर्याप्त है। उन्होंने कहा, हालांकि यह सच नहीं है, क्योंकि भारत में नक्सलवाद इसलिए विकसित हुआ, क्योंकि इसकी विचारधारा को समाज के लोगों ने ही पोषित किया। उन्होंने कहा, “देश में नक्सल समस्या क्यों पैदा हुई, बढ़ी और विकसित हुई? किसने उन्हें वैचारिक समर्थन दिया?

जब तक भारतीय समाज यह नहीं समझेगा, नक्सलवाद का विचार और समाज में वे लोग जिन्होंने वैचारिक समर्थन, कानूनी समर्थन और वित्तीय सहायता प्रदान की, तब तक नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं होगी।” शाह ने कहा, “हमें उन लोगों की पहचान करनी होगी और उन्हें समझना होगा जो नक्सल विचारधारा को पोषित करना जारी रखे हुए हैं।”

गृहमंत्री ने कहा कि देश 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद से मुक्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि हथियार रखने वालों को आदिवासियों की चिंता नहीं है, बल्कि उन्हें वामपंथी विचारधारा को जिंदा रखने की चिंता है, जिसे दुनिया भर में पहले ही खारिज किया जा चुका है। उन्होंने पूछा, “उन्होंने पत्र लिखे और प्रेस नोट जारी कर मांग की कि ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ तुरंत बंद किया जाए। भाकपा और माकपा ने ऐसा किया।

उन्हें इनकी रक्षा करने की क्या जरूरत है? ये सभी नक्सल समर्थक एनजीओ आदिवासी पीड़ितों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आगे क्यों नहीं आते?” शाह ने कहा कि वामपंथी दल नक्सली हिंसा पर चुप्पी साधे रहते हैं, लेकिन जब नक्सलियों के सफाए के लिए ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ चलाया गया तो वे मानवाधिकारों की बात करने लगे।

उन्होंने यह भी कहा कि जब पश्चिम बंगाल में वामपंथी दल सत्ता में नहीं थे, तब नक्सली हिंसा अपने चरम पर थी, लेकिन 1970 के दशक में वामपंथी दलों के सत्ता में आने के बाद इसमें कमी आने लगी। उन्होंने कहा कि “पशुपति से तिरुपति” को सरकारी दस्तावेजों में “लाल गलियारा” के नाम से जाना जाता है और लगभग 12 करोड़ की आबादी नक्सली हिंसा के साये में जी रही थी।

उन्होंने कहा, “उस समय लगभग 10 प्रतिशत आबादी नक्सलवाद का दंश झेल रही थी।” जम्मू-कश्मीर का जिक्र करते हुए शाह ने कहा कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ एक सोची-समझी नीति के तहत अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया। मैं इसके परिणाम साझा करना चाहता हूं। सुरक्षाकर्मियों की मौत में 65 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि नागरिकों की मौत में 77 प्रतिशत की कमी आई है।

Web Title: Ceasefire proposal rejected talks only down arms Home Minister Amit Shah said extremists want surrender welcome security forces not fire single bullet

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