विशेषाधिकार हनन का मामला: अर्नब का न्यायालय से महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस देने का अनुरोध
By भाषा | Published: November 24, 2020 05:38 PM2020-11-24T17:38:08+5:302020-11-24T17:38:08+5:30
नयी दिल्ली, 24 नवंबर पत्रकार अर्नब गोस्वामी ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष को नोटिस जारी कर उनसे सदन के अधिकारी के बयान पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध किया जाये। इस अधिकारी ने न्यायालय को दिये अपने जवाब में कहा है कि कथित विशेषाधिकार हनन के मामले में उसने अध्यक्ष के निर्देश पर अर्नब गोस्वामी को पत्र भेजा था।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने शुरू में कहा कि संभवत: अध्यक्ष को नोटिस देने की आवश्यकता होगी ताकि सदन के अधिकारी के कथन के दावे के बारे में उनका पक्ष जाना जा सके, लेकिन बाद में अर्नब की याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिये स्थगित कर दी। पीठ ने कहा कि उसने विधानसभा के सहायक सचिव के जवाब का अभी अवलोकन नहीं किया है।
शीर्ष अदालत ने छह नवंबर को महाराष्ट्र विधानसभा के सहायक सचिव विलास आठवले को कारण बताओ नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर पूछा है कि पत्रकार अर्णब गोस्वामी को वह पत्र लिखने के कारण क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाये, जिससे लगता है कि उन्हें कथित विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव के मामले में शीर्ष अदालत जाने की वजह से ‘धमकाया’ गया है।
अर्नब की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पीठ को सूचित किया कि अवमानना के लिये कारण बताओ नोटिस के जवाब में विधानसभा के अधिकारी ने कहा है कि उसने अध्यक्ष के निर्देश पर यह पत्र लिखा था।
साल्वे ने कहा, ‘‘उनका (आठवले) कहना है कि उन्होंने अध्यक्ष के निर्देश पर काम किया था। कृपया विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस जारी कीजिये।’’
आठवले की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने साल्वे के कथन का विरोध किया और कहा कि अवमानना का कोई मामला नहीं बनता है और चूंकि अधिकारी ने कहा है कि उसने अध्यक्ष के निर्देश पर काम किया, इसका मतलब यह नहीं कि इस चरण में अध्यक्ष को बुलाया जाना चाहिए।।
उन्होंने कहा कि अध्यक्ष को नोटिस जारी करने से पहले यह देखना होगा कि क्या अवमानना का कोई मामला बनता है या नहीं।
पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘इस बात की आशंका है कि अध्यक्ष बाद में कह सकते हैं कि उन्हें नहीं सुना गया।’’ साथ ही पीठ ने इस मामले में न्याय-मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द दातार से इस बारे में उनकी राय जाननी चाही।
दातार ने कहा, ‘‘अगर यह अधिकारी (विधानसभा का) कह रहा है कि उसने अध्यक्ष के निर्देश पर काम किया तो अध्यक्ष को सुना जाना चाहिए।’’
पीठ ने कहा, ‘‘आपने (विधानसभा अधिकारी) यह सब कहा है लेकिन आपने पत्र (गोस्वामी को लिखा गया) वापस नहीं लिया है।’’ पीठ ने कहा कि वह इस अधिकारी के जवाब का अवलोकन करके दो सप्ताह बाद इस मामले में आगे सुनवाई करेगी।
इस बीच, पीठ ने दवे की इस दलील को उचित बताया कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर विधानसभा के इस अधिकारी को वयक्तिगत रूप से पेश होने से छूट दी जाये।
न्यायालय ने छह नवंबर के अपने आदेश में इस पत्र का एक अंश शामिल किया था। इसमें कहा गया है, ‘‘आपको सूचित किया गया था कि सदन की कार्यवाही गोपनीय है....इसके बावजूद, यह पाया गया है कि आपने सदन की कार्यवाही आठ अक्टूबर, 2020 को उच्चतम न्यायालय के सामने पेश की है। इस कार्यवाही को न्यायालय के समक्ष पेश करने से पहले महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष से कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गयी। आपने जानबूझ कर महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष के आदेशों का हनन किया है और आपकी कार्रवाई गोपनीयता का हनन है। निश्चित ही यह गंभीर मामला है और अवमानना है।’’
इससे पहले, न्यायालय ने अर्नब को लिखे इस पत्र के संबंध में महाराष्ट्र विधानसभा के सहायक सचिव को कारण बताओ नोटिस करते हुये कहा था कि इससे लगता है कि उन्हें कथित विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव के मामले में शीर्ष अदालत जाने की वजह से ‘धमकाया’ गया है।
न्यायालय ने यह निर्देश दिया था कि महाराष्ट्र विधानसभा में लंबित कथित विशेषाधिकार हनन की कार्यवाही के मामले में अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।
न्यायालय ने विधानसभा के अधिकारी द्वारा 13 अक्टूबर को अर्णब गोस्वामी को भेजे पत्र के बयानों को ‘अभूतपूर्व’ बताते हुये कहा था कि यह न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने वाला है और निश्चित ही यह ‘बहुत गंभीर’ तथा न्यायालय की अवमानना करना है।
न्यायालय ने कहा कि लगता है कि यह पत्र रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक को कानूनी राहत के लिये संविधान के अनुच्छेद 32 में प्रदत्त मौलिक अधिकार का इस्तेमाल करने के कारण सजा के लिये धमकी देने वाला है।
न्यायालय ने अर्नब गोस्वामी को इस मामले में केन्द्र को प्रतिवादी बनाने की अनुमति दी थी और अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल को नोटिस जारी किया था।
साल्वे ने इस पत्र का जिक्र करते हुये कहा था कि गोस्वामी को इस मामले में शीर्ष अदालत आने के कारण धमकी दी गयी है। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है और इस मामले में न्यायालय को पत्रकार को संरक्षण प्रदान करना चाहिए।
न्यायालय अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की घटना से संबंधित कार्यक्रम के संदर्भ में महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा अर्णब गोस्वामी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की कार्यवाही शुरू करने के लिये जारी कारण बताओ नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
अर्नब ने अपने कार्यक्रम में सुशांत सिंह राजपूत की मौत के इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बारे में कुछ टिप्पणियां की थीं।
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