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CAB को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने तीन आर्टिकल 14, 15, 21 का उल्लंघन बता दी चुनौती, जानिए क्या हैं ये

By अभिषेक पाण्डेय | Updated: December 12, 2019 11:58 IST

Article 14, 15, 21: इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने आर्टिकल 14, 15 और 21 का हवाला देते हुए दायर की नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ याचिका, जानिए क्या हैं ये तीनों आर्टिकल

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ठळक मुद्देइंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने नागरिकता संशोधन बिल को दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मुस्लिम लीग ने अपनी याचिका का आधार आर्टिकल 14, 15 और 21 को बनाया है

बुधवार को राज्यसभा में पास हुए नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला किया है।

मुस्लिम लीग ने इससे पहले कहा था कि वह इस बिल के संसद से पास होने पर उसे शीर्ष अदालत में चुनौती देगा क्योंकि इसमें धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात कही गई है जो संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है। 

नागरिकता संसोधन बिल में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर 31 दिसंबर 2014 तक भारत आने वाले गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान है। इस बिल को भेदभावपूर्ण बताते हुए विपक्ष इसका विरोध कर रहा है।  इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने इस बिल को संविधान के आर्टिकल 14, आर्टिकल 21 और आर्टिकल 25 का उल्लंघन बताया है। आइए जानें आखिर क्या हैं आर्टिकल 14, 15 और 21.

क्या हैं आर्टिकल 14, आर्टिकल 15 और आर्टिकल 21?

संविधान के भाग-3 में सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों के बारे में बताया गया है, जिसे आर्टिकल 14 से आर्टिकल 35 तक विस्तार से बताया गया है, जो इस प्रकार हैं:

1.समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)3.शोषण के खिलाफ अधिकार (अनुच्छेद 23-24)4.धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)5.सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30)6.संवैधानिक उपचार के अधिकार (अनुच्छेद 32) 

आर्टिकल 14: समानता का अधिकार: संविधान के आर्टिकल 14 के अनुसार, राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा और हर नागरिक को समानता का अधिकार मिलेगा।

आर्टिकल 15 में भी समानता के अधिकारों का ही वर्णन है, बस इसमें राज्य के साथ ही व्यक्तिगत भेदभाव को भी शामिल किया गया है। यानी यह प्रावधान राज्य और निजी दोनों व्यक्तियों द्वारा भेदभाव को रोकता है जबकि आर्टिकल 14 का प्रावधान केवल राज्य द्वारा भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।

आर्टिकल 15 के मुताबिक, 'कोई भी नागरिक किसी भी धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी भी अपात्रता, दायित्व, प्रतिबंध या शर्त के अधीन नहीं होगा।'

आर्टिकल 21: जीने और आजादी का अधिकार: संविधान के आर्टिकल 19 से 22 तक जीने, आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों का जिक्र है। 

आर्टिकल-21: संविधान का ये आर्टिकल किसी भी नागरिक के दो महत्वपूर्ण अधिकारों से जुड़ा है, पहला-जीने का अधिकार और दूसरा अपनी आजादी का अधिकार: आर्टिकल 21 के मुताबिक, 'कानून द्वारा तय प्रक्रिया को छोड़कर किसी भी व्यक्ति को जीने के अधिकार या आजादी के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा।'

टॅग्स :नागरिकता संशोधन बिल 2019
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