CAA लखनऊ हिंसाः SC ने प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने को लेकर योगी सरकार से पूछा, क्या आपके पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है?

By रामदीप मिश्रा | Published: March 12, 2020 11:40 AM2020-03-12T11:40:12+5:302020-03-12T12:10:11+5:30

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नौ मार्च को लखनऊ प्रशासन को यह आदेश दिया था। अदालत ने राज्य सरकार को यह भी आदेश दिया था कि कानूनी प्रावधान के बगैर ऐसे पोस्टर नहीं लगाए जाएं।

CAA protests: SC hearing Special Leave Petition filed by UP Govt challenging Allahabad HC order | CAA लखनऊ हिंसाः SC ने प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने को लेकर योगी सरकार से पूछा, क्या आपके पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है?

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

Highlightsसॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि निजता के अधिकार के कई आयाम हैं।हाईकोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की थी कि प्राधिकारियों की इस कार्रवाई से संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन होता है।

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा और तोड़फोड़ के आरोपियों के पोस्टर हटाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पक्ष रखा।

समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि निजता के अधिकार के कई आयाम हैं। विरोध प्रदर्शन के दौरान बंदूक चलाने वाला और हिंसा में कथित रूप से शामिल होने वाला निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। बता दें, राज्य सरकार की इस अपील पर न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ सुनवाई कर रही है।

इसके बाद  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण मामला है। न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या उसके पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है। फिलहाल ऐसा कोई कानून नहीं है जो आपकी इस कार्रवाई का समर्थन करता हो। कोर्ट ने यह मामला बड़ी बेंच को भेज दिया है। अब तीन जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी।

बता दें, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नौ मार्च को लखनऊ प्रशासन को यह आदेश दिया था। अदालत ने राज्य सरकार को यह भी आदेश दिया था कि कानूनी प्रावधान के बगैर ऐसे पोस्टर नहीं लगाए जाएं। अदालत ने आरोपियों के नाम और फोटो के साथ लखनऊ में सड़क किनारे लगाये गये इन पोस्टरों को तुरंत हटाने का निर्देश देते हुये टिप्पणी की थी कि पुलिस की यह कार्रवाई जनता की निजता में अनावश्यक हस्तक्षेप है। 

अदालत ने लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त को 16 मार्च या इससे पहले अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया था। इन पोस्टरों को लगाने का मकसद प्रदेश की राजधानी में 19 दिसंबर को आयोजित नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को कथित रूप से नुकसान पहुंचाने वाले आरोपियों को शर्मसार करना था। 

इन पोस्टरों में प्रकाशित नामों और तस्वीरों में सामाजिक कार्यकर्ता एवं नेता सदफ जाफर, और पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी के नाम भी शामिल थे। ये पोस्टर लखनऊ के प्रमुख चौराहों पर लगाये गये हैं। 

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की थी कि प्राधिकारियों की इस कार्रवाई से संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन होता है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा प्रतिपादित प्रक्रिया का पालन किये बगैर उनकी वैयक्तिक स्वतंत्रता और जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। 

हाईकोर्ट ने कहा था कि इस जनहित याचिका की विषय वस्तु को लेकर उसे इसमें संदेह नहीं कि सरकार की कार्रवाई और कुछ नहीं बल्कि जनता की निजता में अनावश्यक हस्तक्षेप है। 

Web Title: CAA protests: SC hearing Special Leave Petition filed by UP Govt challenging Allahabad HC order

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