बिहार उपचुनावः सरफराज आलम पर खेला RJD ने दांव, BJP पर पड़ रहा भारी
By रामदीप मिश्रा | Published: March 14, 2018 09:51 AM2018-03-14T09:51:26+5:302018-03-14T09:51:26+5:30
अररिया में जेडीयू ने कभी जीत का स्वाद नहीं चखा। पिछले चुनाव में माना गया कि बीजेपी की हार मुख्य कारण जेडीयू उम्मीद विजय कुमार मंडल थे, जिन्होंन करीब-करीब बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह के बराबर वोट पाए थे।
पटना, 14 मार्चः बिहार की अररिया लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मोदी लहर और नीतीश कुमार के सुशासन का जादू चलता नहीं दिखाई दे रहा है। इस सीट से दिवंगत सांसद तसलीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम आगे चल रहे हैं। इस सीट को लेकर उस समय लोगों में दिलचस्पी बढ़ गई थी जब सरफराज ने लोकसभा उपचुनाव की घोषणा होते ही जेडीयू छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का दामन थाम लिया।
आपको बता दें कि अररिया में जेडीयू ने कभी जीत का स्वाद नहीं चखा। पिछले चुनाव में माना गया कि बीजेपी की हार मुख्य कारण जेडीयू उम्मीद विजय कुमार मंडल थे, जिन्होंन करीब-करीब बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह के बराबर वोट पाए थे। लेकिन, इस वक्त हालात दूसरे हैं। प्रदेश राजनीति में बीजेपी, जेडीयू की सहयोगी है इसलिए अबकी बार जेडीयू ने बीजेपी के खिलाफ उपचुनाव में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं। बीजेपी ने फिर से पूर्व सांसद प्रदीप कुमार सिंह पर ही दांव खेला है जो मोदी लहर में भी नहीं जीत पाए थे।
आरजेडी ने इमोशनल कार्ड खेलते हुए दिवंगत सांसद तसलीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम को टिकट दिया। यह थोड़ा दिलचस्प इसलिए भी हो गया है कि पिता की मृत्यु तक, बल्कि अररिया लोकसभा उपचुनावों की घोषणा तक सरफराज जेडीयू की सीट पर अररिया जिले की ही जोकीहट विधानसभा सीट से विधायक थे।
सरफराज आलम पर जनवरी 2015 में डिब्रूगढ़ राजधानी में महिला से छेड़छाड़ का अरोप है, जबकि जनवरी 2016 में पटना जीआरपी पुलिस की ओर से आईपीसी की धारा 341, 323, 290, 504 और 354A के तहत मामला दर्ज होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से निलंबित भी किए गए थे। हालांकि बाद में वे दोषमुक्त हो गए थे। फिलहाल उन्होंने जेडीयू छोड़ दिया है और आरजेडी की ओर से अररिया लोकसभा उपचुनाव के उम्मीदवार हैं।
आपको बता दें कि बिहार की अररिया लोकसभा सीट को लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में आरजेडी ने तब जीती थी जब पूरे देश में मोदी लहर थी। बीजेपी ने बीते लोकसभा चुनाव 2014 में बिहार की 40 में से 22 सीटें जीत ली थीं, जबकि उनके सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने 6 और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) ने 3 सीटों पर कब्जा किया था। यानी कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बिहार की 40 में से कुल 31 सीटें निकाल ले गई थीं। ऐसे में लालू के नेतृत्व में सीमांचल के बड़े नेता तस्लीमुद्दीन ने ये सीट बीजेपी की झोली से खींच ली थी। क्योंकि इससे पहले दो लोकसभा चुनावों 2009-2004 में अररिया पर बीजेपी काबिज थी।