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कामकाजी तलाकशुदा महिला को बच्चा गोद लेने से रोकना ‘मध्यकालीन रूढ़िवादी मानसिकता’ को दर्शाता है, बंबई उच्च न्यायालय ने कहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 13, 2023 15:40 IST

उच्च न्यायालय ने 47 साल की एक तलाकशुदा महिला को उसकी चार साल की भांजी को गोद लेने की इजाजत दे दी। न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि एकल अभिभावक (सिंगल पेरेंट) कामकाजी होने के लिए बाध्य है।

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ठळक मुद्दे बच्चों को गोद लेने के लिए अनुपयुक्त नहीं माना जा सकता कि वह कामकाजी है। न्यायालय ने पेशे से शिक्षिका शबनमजहां अंसारी की याचिका पर यह आदेश पारित किया।अंसारी ने अपनी बहन की बेटी को गोद लेने की इच्छा जाहिर की थी।

मुंबईः बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी तलाकशुदा महिला को इस आधार पर बच्चा गोद लेने की अनुमति न देना कि वह कामकाजी होने की वजह से बच्चे पर व्यक्तिगत रूप से पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाएगी, ‘मध्यकालीन रूढ़िवादी मानसिकता’ को दर्शाता है।

मंगलवार को पारित आदेश में उच्च न्यायालय ने 47 साल की एक तलाकशुदा महिला को उसकी चार साल की भांजी को गोद लेने की इजाजत दे दी। न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि एकल अभिभावक (सिंगल पेरेंट) कामकाजी होने के लिए बाध्य है।

उन्होंने कहा कि किसी एकल अभिभावक को इस आधार पर बच्चों को गोद लेने के लिए अनुपयुक्त नहीं माना जा सकता कि वह कामकाजी है। उच्च न्यायालय ने पेशे से शिक्षिका शबनमजहां अंसारी की याचिका पर यह आदेश पारित किया।

अंसारी ने भूसावल (महाराष्ट्र) की एक दीवानी अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसने मार्च 2022 में एक नाबालिग बच्ची को गोद लेने की उसकी (अंसारी की) अर्जी इस आधार पर खारिज कर दी थी कि वह तलाशुदा और कामकाजी महिला है। अंसारी ने अपनी बहन की बेटी को गोद लेने की इच्छा जाहिर की थी।

दीवानी अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि चूंकि, अंसारी एक कामकाजी महिला होने के साथ-साथ तलाकशुदा है, इसलिए वह बच्ची पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं दे पाएगी और बच्ची का उसके जैविक माता-पिता के साथ रहना ज्यादा उपयुक्त है। दीवानी अदालत के खिलाफ उच्च न्यायालय में दायर याचिका में अंसारी ने कहा था कि निचली अदालत का इस तरह का दृष्टिकोण विकृत और अन्यायपूर्ण है।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अंसारी का अनुरोध ठुकराने के लिए निचली अदालत द्वारा दिया गया कारण ‘व्यर्थ और बेबुनियाद’ है। न्यायमूर्ति गोडसे ने कहा, “निचली अदालत द्वारा की गई यह तुलना कि बच्ची की जैविक मां गृहणी है।

गोद लेने की अर्जी देने वाली संभावित दत्तक मां (अकेली अभिभावक) कामकाजी है, परिवारों को लेकर मध्यकालीन रुढ़िवादी मानसिकता को दर्शाती है।” पीठ ने कहा कि जब कानून एकल माता-पिता को दत्तक माता-पिता होने के योग्य मानता है, तो निचली अदालत का ऐसा दृष्टिकोण कानून के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देता है। 

टॅग्स :बॉम्बे हाई कोर्टकोर्ट
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