संरक्षण के आदेश को कठोर नहीं बनाया जा सकता है, बच्चे की जरूरतों और कल्याण के मद्देनजर बदलाव कर सकते हैं, बंबई उच्च न्यायालय ने कहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 6, 2023 04:14 PM2023-05-06T16:14:09+5:302023-05-06T16:16:29+5:30

न्यायमूर्ति नीला गोखले की एकल पीठ ने चार मई को जारी आदेश में कहा कि बच्चे के संरक्षण का मामला बेहद गंभीर मुद्दा है और इसके लिए सराहना, स्नेह और प्यार की जरूरत होती है।

Bombay High Court says Order of custody cannot be made rigid can be modified keeping in view the needs and welfare of the child | संरक्षण के आदेश को कठोर नहीं बनाया जा सकता है, बच्चे की जरूरतों और कल्याण के मद्देनजर बदलाव कर सकते हैं, बंबई उच्च न्यायालय ने कहा

हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दायर उसके आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

Highlightsअभिभावक नियुक्त करने का अनुरोध करते हुए व्यक्ति ने यह याचिका दायर की थी।पीठ ने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ एक बच्चे को जीवन के हर चरण में इनकी आवश्यकता होती है।हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दायर उसके आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

मुंबईः बंबई उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर परिवार न्यायालय को फिर से सुनवाई करने का निर्देश देते हुए कहा है कि संरक्षण के आदेश को कठोर नहीं बनाया जा सकता है और जीवन के विभिन्न चरण में बच्चे की जरूरतों एवं उसके कल्याण के मद्देनजर इनमें बदलाव लाया जा सकता है।

 

अपनी पूर्व पत्नी के फिर से विवाह कर लेने के बाद अपने नाबालिग बेटे का वैधानिक अभिभावक नियुक्त करने का अनुरोध करते हुए व्यक्ति ने यह याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति नीला गोखले की एकल पीठ ने चार मई को जारी आदेश में कहा कि बच्चे के संरक्षण का मामला बेहद गंभीर मुद्दा है और इसके लिए सराहना, स्नेह और प्यार की जरूरत होती है।

पीठ ने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ एक बच्चे को जीवन के हर चरण में इनकी आवश्यकता होती है। उच्च न्यायालय ने यह आदेश 40 वर्षीय व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद पारित किया। व्यक्ति ने अपनी याचिका में परिवार न्यायालय द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दायर उसके आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

व्यक्ति ने अपनी याचिका में नाबालिग बच्चे का संयुक्त संरक्षण माता-पिता दोनों को देने के पहले के आदेश में संशोधन का अनुरोध किया था। व्यक्ति के मुताबिक 2017 में तलाक की कार्यवाही में दाखिल सहमति की शर्तों में उसने और उसकी पूर्व पत्नी ने इस बात पर सहमति जताई थी कि अगर दोनों में से एक ने दोबारा शादी की तो दूसरे को बच्चे का पूरा संरक्षण मिलेगा।

परिवार न्यायालय ने इस आधार पर व्यक्ति का आवेदन खारिज कर दिया था कि उसे अपना आवेदन अभिभावक और वार्ड अधिनियम के प्रावधानों के तहत दायर करना चाहिए था न कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत। व्यक्ति ने अपनी दलील में कहा कि वह केवल तलाक की कार्यवाही में दायर सहमति शर्तों में संशोधन का अनुरोध कर रहा है।

उच्च न्यायालय ने परिवार न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए नाबालिग बच्चे के संरक्षण से संबंधित सहमति शर्तों में संशोधन के अनुरोध वाले व्यक्ति के आवेदन पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति गोखले ने अपने आदेश में कहा कि परिवार न्यायालय का दृष्टिकोण ‘‘बहुत अधिक तकनीकी’’ था।

अदालत ने कहा कि परिवार न्यायालय की बात सही है कि बच्चे के पिता को कानूनी अभिभावक नियुक्त करने के अनुरोध वाला अपना आवेदन अभिभावक एवं वार्ड अधिनियम के तहत दायर करना चाहिए था न कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत। अदालत ने कहा, ‘‘बच्चों के संरक्षण के मामले बेहद संवेदनशील मुद्दे हैं। इसके लिए सराहना, स्नेह और प्यार की जरूरत होती है, जिसकी उम्र बढ़ने के साथ एक बच्चे को जीवन के हर चरण में आवश्यकता होती है।’’ 

Web Title: Bombay High Court says Order of custody cannot be made rigid can be modified keeping in view the needs and welfare of the child

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे