बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, "दूसरी पत्नी पेंशन की हकदार नहीं, अगर...." जानिए पूरा मामला
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 16, 2022 10:01 PM2022-02-16T22:01:56+5:302022-02-16T22:07:37+5:30
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट प्रावधान दिया है कि दूसरी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत स्वीकार नहीं किया जा सकता है, अगर यह पहली शादी को कानूनी रूप से समाप्त हुए बिना की गई है तो।
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि दूसरी पत्नी मृत पति की पेंशन पाने की हकदार उस सूरत में नहीं हो सकती है। जबकि अगर दूसरी शादी पहली शादी के कानूनी रूप से नहीं टूटने के बाद हुई हो।
जस्टिस एसजे कथावाला और जस्टिस मिलिंद जाधव की बेंच ने सोलापुर निवासी शामल ताते की दायर याचिका को इस तर्क के आधार पर खारिज कर दिया। याचिका में राज्य सरकार के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्हें कानूनी तौर पर दूसरी पत्नी न मानते हुए पेंशन का लाभ देने से मना कर दिया था।
हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिका को खारिज करते हुए कहा कि शामल ताते ने सोलापुर जिला कलेक्टर के कार्यालय में एक चपरासी के पद पर रहे दिवंगत पति महादेव से उस वक्त शादी की थी, जब वो पहले से शादीशुदा थे। शामल ताते के पति महादेव की मृत्यु साल 1996 में हुई थी।
दरअसल महादेव की मृत्यु के बाद शामल टेट और महादेव की पहली पत्नी के बीच हुए एक समझौता के तहत पहली पत्नी को मृत महादेव के पेंशन के सभी लाभ का लगभग 90 प्रतिशत मिलना तय हुआ वहीं बाकी बचे मासिक पेंशन पर दूसरी पत्नी को मिलना तय हुआ।
इस मामले में नाटकीय मोड़ तब आया जब दिवंगत महादेव की पहली पत्नी का कैंसर के कारण निधन हो गया। जिसके बाद शामल टेट ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर दावा किया उन्हें बतौर महादेव की विधवा आश्रित मानते हुए महादेव की पेंशन के बकाये हिस्से का भी लाभ दिया जाए, जो पूर्व में महादेव की पहली पत्नी को मिलता था।
शामल की अर्जी पर काफी सोच विचार के बाद महाराष्ट्र सरकार ने साल 2007 और साल 2014 के बीच कुल चार आवेदनों को खारिज कर दिया। जिसके बाद टेट साल 2019 में हाईकोर्ट पहुंच गईं। कोर्ट में दायर याचिका में टेट ने इस बात का दावा किया कि चूंकि वह महादेव के तीन बच्चों की मां थीं और समाज उन्हें पति-पत्नी के रूप में जानता था. इस कारण से वह महादेव के पेंशन की लाभार्थी बनती हैं जो पूर्व में महादेव की पहली पत्नी को मिल रही थी।
लेकिन कोर्ट ने शामल की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट प्रावधान दिया है कि दूसरी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत स्वीकार नहीं किया जा सकता है, अगर यह पहली शादी को कानूनी रूप से समाप्त हुए बिना की गई है तो। इस मामले में बेंच ने कहा कि राज्य सरकार का तर्क एकदम सही है कि मृतक के पेंशन का लाभ केवल कानूनी रूप से विवाहित पत्नी को ही मिलेगा।