Bird Village Menar: मेनार गांव को बर्ड विलेज क्यों कहते हैं?, 3000 किमी का फासला तय करके पहुंचते हैं पक्षी, जानें पर्यटन के लिए क्या है खास

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 5, 2023 08:44 PM2023-12-05T20:44:23+5:302023-12-05T20:45:09+5:30

Bird Village Menar of Udaipur District: उदयपुर जिले की वल्लभ नगर तहसील में स्थित मेनार गांव बर्ड विलेज यानी परिदों के गांव के नाम से विख्यात है। पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियां देखने को मिलती है।

Bird Village Menar of Udaipur District Bird Village Why is Menar village called Bird Village Birds reach here after covering distance of 3000 km know what is special for tourism see pics | Bird Village Menar: मेनार गांव को बर्ड विलेज क्यों कहते हैं?, 3000 किमी का फासला तय करके पहुंचते हैं पक्षी, जानें पर्यटन के लिए क्या है खास

photo-lokmat

Highlightsप्राकृतिक, संस्कृति, विरासत का संगम देखने को मिलता है।बारूद की होली भी खासी प्रसिद्ध है। मेनार के अधिकतर निवासी पाक कला व्यवसाय में कार्यरत हैं।

Bird Village Menar of Udaipur District: राजस्थान अपनी पर्यटन विविधता के लिए प्रसिद्ध है। वाइल्ड लाइफ टूरिज्म, प्रदेश के पर्यटन का अहम हिस्सा है। बर्डिंग में भी राजस्थान का कोई सानी नहीं भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान सबसे प्रसिद्ध पक्षी अभ्यारण्य में गिना जाता है जो कि प्रदेश की सबसे पहली दो रामसर साइट्स में से एक है।

इन दिनों प्रदेश में उदयपुर से चालीस किलोमीटर दूरी मेनार पक्षी ग्राम खासी चर्चाओं में है क्योंकि इसे जल्द ही रामसर साइट घोषित किया जाने वाला है साथ ही मेनार ग्राम का चयन पर्यटन मंत्रालय द्वारा “ट्रेवल फॉर लाइफ” के तहत “बेस्ट टूरिज़्म विलेज कॉम्पिटीशन 2023” में सिल्वर श्रेणी में हुआ है। उदयपुर जिले की वल्लभ नगर तहसील में स्थित मेनार गांव बर्ड विलेज यानी परिदों के गांव के नाम से विख्यात है।

यहां 250 प्रकार की चिड़ियाएं देखी जा सकती हैं, जिनमें 100 से अधिक प्रवासी पक्षी हैं। पक्षी प्रेमी ग्रामीणों ने तालाबों को पक्षियों के लिए संरक्षित एवं समर्पित रखा है। 19.07.2023 को मेनार गांव स्थित ब्रम्ह तालाब और ढंड तालाब को वेटलैंड घोषित किया है। वन विभाग द्वारा इसे रामसर साइट घोषित करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर भेजे जा चुके हैं। 

मेनार ग्राम की बात करें तो यह गांव अपने आप में अनूठा है। यहां पर पर्यटकों को मेवाड़ की शौर्य गाथाएं, परम्पराएं, सभ्यता, प्राकृतिक, संस्कृति,विरासत व पुरातत्व पर्यटन व संरक्षण  का संगम देखने को मिलता है। जो एक ऐसा सुखद अहसास है जो पर्यटकों को मेनार के अलावा कहीं नहीं मिल सकता। 

यह ग्राम सामुदायिक संरक्षण (कम्यूनिटी कंजर्वेशन) व वन संरक्षण (फॉरेस्ट कंजर्वेशन) के तालमेल का बेहतरीन उदाहरण है। पक्षीविदों का कहना है कि यहां के पक्षियों में इंसान के प्रति डर नहीं है वह उनके सामने भी सहज रहते हैं, बल्कि बेहद नजदीक से यहां पक्षियों को देखा व महसूस किया जा सकता है। 

मेनार को पक्षी गांव ब्रह्म तालाब व ढंढ तालाब हैं जिन्हें ग्रामीणों ने अपनी सूझबूझ से संरक्षित कर रखा है। यहां के स्वयं सेवक (वॉलियन्टर्स) इतने सजग हैं कि फोटोग्राफर्स को पक्षियों को उड़ा कर तस्वीर लेने की सख्त मनाही है, जिसे भी फोटो खींचनी है वह उसे यहां सहज रूप से भी उपलब्ध हो जाती है। मेनार गांव में वॉलियन्टर्स को पक्षी मित्र के नाम पुकारा जाता है।

इन पक्षी मित्रों की जागरूकता व संवेदनशीलता के कारण ही मेनार आज वैश्विक पर्यटन मंच पर अपनी सशक्त उपस्थित दर्ज करवा रहा है। पक्षी मित्रों सहित पक्षीविदों का कहना है कि यहां का वातावरण प्रवासी पंछियों को इतना भाया है कि कुछ पक्षी अपने पुराने संसार में नहीं लौटे और उन्होंने मेनार के पारिस्थितक तंत्र में खुद को ढाल लिया। 

सन 1832  की घटना से पता चलता है पक्षियों व पक्षी मित्रों का रिश्ताः

ब्रिटिशकाल में 6 मार्च 1832 को  जॉन टेल्सटन नामक एक अंग्रेज अपने दल बल के साथ यहां आया। उनकी संख्या पचास के करीब रही होगी। जॉन से जब यहां हजारों की तादाद में पक्षियों को देखा तो उसने एक पक्षी को नाश्ते के लिए गोली मार दी।

उसके गोली मारते ही सारे पक्षी सतर्क व आक्रमक मुद्रा में आ गए उन्होंने आकाश में एक विशेष आकृति बनाई जिसे देख ग्रामीण वहां पहुंचे और उन्होंने अंग्रेजों को दल को वहां से बाहर निकाल कर दम लिया। मेनार ग्राम में उस समय अंग्रेजों को खदेड़ते हुए उनका हुक्का पानी बंद कर दिया। 

मेनार की बारूद होली, जहां होली के दिन हो जाती है दिवालीः 

400 सालों से भी मेनार में होली के दूसरे दिन बारूद की होली खेली जाती है। जिससे लगता है कि होली के दिन दिवाली हो गई। यह समय वह भी है कि जब मेनार से प्रवासी पक्षियों की वापसी हो चुकी होती है। दरअसल, मेनार, मेनारिया ब्राह्मणों को गांव है।

जिन्होंने मुगल काल में मेवाड़ के महाराणा का युद्ध में समर्थन करते हुए मुगलों की सैन्य छावनी तो तहस-नहस कर दिया और मुगलों को पराजय का सामना करना पड़ा, इसी के बाद से यहां पर बारूद की होली खेली जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में जमराबीज कहते हैं।

महाराजों का गांव है मेनारः 

मेनार ग्राम के हर घर में आपको पाक कला के कुशल जानकार व कारीगर मिलेंगे। जिन्हें आज हम शैफ कहते  हैं। पुराने समय में इन्हें महाराज के  नाम से जाना जाता था। जानकारों का कहना है कि आज भी मेनारिया ब्राह्मण सेवन स्टार- फाइव स्टार होटलों सहित देश के सबसे बड़े व्यापारिक घरानों के मुख्य शैफ है जो पाक कला में अपने वैष्णव भोजन के लिए ख्यातिप्राप्त हैं। अंबानी, अम्बुजा, हिंदुजा ब्रदर्स सहित  फिल्म स्टार जूही चावला के घऱ में भी मेनार ग्राम के ही लोग रसोई संभाले हुए हैं। 

पुरामहत्व भी कम नहींः

मेनार ग्राम में तालाबों के किनारे कई शिव मंदिर है। छह सौ सालों से पुराने शिवमंदिर औऱ शिवलिंग यहां देखने को मिलते हैं, खास बात यह भी है कि इन मंदिरों को बाहर प्राचीन लिपि में शिलालेख आज भी मौजूद हैं वहीं शिवलिगों पर भी प्राचीन लिपि में कुछ न कुछ उकेरा गया है। ग्रामवासी अब भाषाविदों और पुरातत्वविदों की मदद से इन लिपियों को पढ़ना चाहते हैं जिससे उन्हें अपने ग्राम के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हो सके।

दीपावली पर पटाखे नहीं, आतिशबाजी नहींः 

मेनार  ग्राम की अनूठी परंपराओँ में से एक खास पंरपरा यह भी है कि यहां पर दीपावली के दिन यहां आतिशबाजी नहीं होती क्योंकि यहां पर दीपावली के दिनों में प्रवासी पक्षी डेरा डाले होते हैं। आतिशबाजी के धमाके उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। दूसरी बात यह भी है कि दीपावली का समय फसल कटाई का भी होता है, उनमें आग नहीं लगे इसलिए भी मेनार में ग्रामवासी आतिशबाजी नहीं करते हैं।

कौन-कौन से प्रवासी पक्षी यहां पाएं जाते हैः

वैसे तो यहां 100 से अधिक प्रवासी पक्षी नवंबर से मार्च तक रहते हैं लेकिन जिनमें मुख्यतः डेमेसाइल क्रेन (कुरजां),  पेलीकन (हवासील), ओस्प्रे( समुद्री बाज), फ्लेमिंगोज ( राजहंस), रेड किर्स्टेड पोचार्ड, बार हैडेड गूज, ग्रेलैग गूज आदि। 

ग्रेट क्रिस्टेड ग्रीवः

स्थानीय भाषा में इसे शिवा डुबडुबी कहा जाता है। हिमालय की तराई से मेनार आने वाला यह पक्षी पिछले दस सालों से यहीं है। कंलगीधारी यह पक्षी पानी से कभी बाहर  नहीं आता, इसके घोंसले पानी पर तैरते हैं औऱ साथ यह प्रजनन भी पानी में ही करता है। शिवाडुबडुबी अपने बच्चों को अपनी पीठ पर बैठा कर पानी की सैर करवाता है और खाना खिलाता है। ऐसे पक्षियों की कई प्रजातियां यहां पाई जाती है जिन्होंने मेनार को नहीं छोड़ने का फैसला किया।

English summary :
Bird Village Menar of Udaipur District Bird Village Why is Menar village called Bird Village Birds reach here after covering distance of 3000 km know what is special for tourism see pics


Web Title: Bird Village Menar of Udaipur District Bird Village Why is Menar village called Bird Village Birds reach here after covering distance of 3000 km know what is special for tourism see pics

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे