बिहार: निजी स्कूलों में बस्ते के बोझ तले कराहता बचपन, निजी प्रकाशकों के इशारे पर चलते प्राइवेट स्कूल

By एस पी सिन्हा | Published: September 6, 2023 02:34 PM2023-09-06T14:34:00+5:302023-09-06T14:36:48+5:30

बचपन बस्ते की बोझ तले दबा जा रहा है। किसी भी सरकार के द्वारा बच्चों के बस्ते का बोझ हल्का करने की दिशा में कोई पहल नहीं की जा रही है।

Bihar: Childhood moaning under the burden of bags in private schools, private schools running at the behest of private publishers | बिहार: निजी स्कूलों में बस्ते के बोझ तले कराहता बचपन, निजी प्रकाशकों के इशारे पर चलते प्राइवेट स्कूल

बिहार: निजी स्कूलों में बस्ते के बोझ तले कराहता बचपन, निजी प्रकाशकों के इशारे पर चलते प्राइवेट स्कूल

Highlights केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति की बात कर रही है लेकिन बचपन बस्ते की बोझ तले दबा जा रहा हैपटना के स्कूलों में नौंवी क्लास में पढ़ने वाले छात्रों के स्कूली बैग का वजन 10 से 12 किलो का हैयह महज एक उदाहरण मात्र है, शिक्षा के बाजारीकरण का खामियाजा अबोध बच्चों के कंधे पर झूल रहा है

पटना: केन्द्र सरकार के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति की बात की जा रही है। राज्य सरकारें भी शिक्षा में सुधार की बातें कहती रहती हैं। लेकिन हालात ये हैं कि "बचपन बस्ते की बोझ" तले दबा जा रहा है। किसी भी सरकार के द्वारा बच्चों के बस्ते का बोझ हल्का करने की दिशा में कोई पहल नहीं की जा रही है।

स्कूली शिक्षा का हाल यह है कि छोटे-छोटे बच्चे कंधे पर भारी भरकम स्कूली बैग उठाने को मजबूर हो रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार बच्चों के बैग का बोझ कम से पांच किलो ग्राम से कम नही होता है। चाहे वह क्लास एक का हो अथवा उससे ऊपर के क्लास का। आठवीं के ऊपर क्लास के बच्चों का स्कूल बैग का वजन कम से कम आठ-दस किलोग्राम होना आम बात बात है।

पटना के क्राइस्ट चर्च डायोसेशन स्कूल के नौंवी क्लास की एक बच्ची के स्कूल बैग का वजन आज 10-12 किलोग्राम का था, जिसे वह बच्ची के संभालने से ज्यादा था। यह महज एक उदाहरण मात्र है। शिक्षा के बाजारीकरण का खामियाजा अबोध बच्चे तो उठा ही रहे हैं, अभिभावकों पर भी महंगे किताबों का बोझ कम दबाव नही बना रहा है।

एनसीआरटी की कुछ पुस्तकें ही स्कूलों के द्वारा अनुशंसित होते हैं, जबकि निजी प्रकाशकों के किताबों के बोझ तले शिक्षा की लौ जलाने का प्रयास निजी स्कूलों के द्वारा किया जाता है। निजी प्रकशकों के पुस्तकों के कारण ही बस्ते का बोझ हल्का नही होने दिया जा रहा है।

लोगों को आश्चर्य है कि इन सारी बातों को जानते हुए भी सरकार अनजान बनी हुई है। इधर, बचपन बोझ ढोने को मजबूर हो रहा है। यही कारण है कि बचपन में ही बच्चों के कमर और रीढ़ जनित बीमारियां बढ़ने लगी हैं।

Web Title: Bihar: Childhood moaning under the burden of bags in private schools, private schools running at the behest of private publishers

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