बिहार विधानसभा चुनावः कई दिशा-निर्देश, बूथ पर पहली बार महिला कर्मी, दागियों को भी देनी होगी ब्योरा, जानिए गाइडलाइंस
By एस पी सिन्हा | Published: August 25, 2020 04:52 PM2020-08-25T16:52:26+5:302020-08-25T16:52:26+5:30
चुनाव के दौरान अमूमन मतदान कार्य में महिला कार्मियों की तैनाती नहीं देखी जाती थी, लेकिन इस बार मतदान केंद्रों की अधिक संख्या को देखते हुए चुनाव आयोग ने महिलाकर्मी की भी तैनाती करने का निर्णय लिया है.
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग तैयारियों में जोरशोर से जुट गया है. तमाम तरह के दिशा-निर्देश जारी किये जाने लगे हैं. इसी क्रम में एक ओर जहां इस बार बूथ पर कई तरह के बदलाव देखे जाएंगे, वहीं दागियों के चुनाव लड़ने के सवाल पर भी कई तरह के दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं.
चुनाव के दौरान अमूमन मतदान कार्य में महिला कार्मियों की तैनाती नहीं देखी जाती थी, लेकिन इस बार मतदान केंद्रों की अधिक संख्या को देखते हुए चुनाव आयोग ने महिलाकर्मी की भी तैनाती करने का निर्णय लिया है. बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी एचआर श्रीनिवास ने सभी जिला निर्वाचन पदाधिकारी सह जिलाधिकारी को इस बाबत निर्देश दिया है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार कोरोना काल में बिहार विधानसभा चुनाव में बूथों की संख्या ज्यादा रखी गई है. बूथों की ज्यादा संख्या होने के कारण इस बार मतदान केन्द्रों पर महिला कर्मियों की भी नियुक्ति की जाएगी. राज्य में करीब छह लाख मतदानकर्मियों की जरूरत होगी.
कोरोना को देखते हुए इस बार 34 हजार सहायक बूथों के बनाए जाने से 1.80 लाख अतिरिक्त कर्मी की जरूरत होगी. चुनावकर्मियों की कमी को देखते हुए इसबार बडे़ पैमाने पर महिला चुनावकर्मी तैनात होगी. ये पहला मौका है जब चुनाव में महिला चुनावकर्मी मतदान केन्द्रों पर तैनात नजर आयेंगी.
अप्रवासी मजदूरों की वोटिंग में हिस्सेदारी बढ़ाने की कवायद तेज की जाए
वहीं, मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने स्पष्ट कहा कि अप्रवासी मजदूरों की वोटिंग में हिस्सेदारी बढ़ाने की कवायद तेज की जाए. एक भी अप्रवासी मजदूर वोटिंग से वंचित नहीं रहेंगे. इसको लेकर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी एचआर श्रीनिवास ने सभी जिलों को विशेष तौर पर निर्देशित किया कि मजदूरों का नाम मतदाता सूची में जोड़ने के लिए अभियान चलाएं.
एक भी मजदूर मताधिकार से वंचित नहीं होना चाहिए. उन्होंने जिलाधिकारियों को नाम जोडने की पूरी प्रक्रिया को प्रूफ करने को कहा. यह भी निर्णय लिया गया है कि कोरोना संक्रमण को लेकर विधानसभा स्तर पर मार्गदर्शिका बनेगा. राज्य स्तर, जिला स्तर और विधानसभा स्तर पर भी गाइड लाइन जारी किया जा सकता है. यह भी निर्णय लिया गया है कि मतदान केंद्रों को पूर्ण सेनेटाइज किया जाएगा.
वे वैसे उम्मीदवारों को प्रत्याशी नहीं बनायें, जिसके खिलाफ मुकदमे लंबित हैं
इसबीच, चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक पार्टियों को अपनी चिट्ठी में हिदायत करते हुए लिखा है कि वे वैसे उम्मीदवारों को प्रत्याशी नहीं बनायें, जिसके खिलाफ मुकदमे लंबित हैं. नियमानुसार पार्टियों को समाचार पत्रों में बजाप्ता समाचार प्रकाशित करानी होगी.
आयोग ने दलों को हिदायत करते हुए लिखा कि चुने जाने के 48 घंटे के उपरांत फार्मेट सी 7 में उसे समाचार पत्रों में सूचना देनी होगी. यह सूचना राज्य और राष्ट्रीय अखबार में देनी होगी. साथ ही सूचना प्रकाशित करने के 72 घंटे के अंदर आयोग को फामेर्ट सी 8 में बताना होगा. इसमें प्रावधान है कि अगर कोई दल इस आदेश का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कंटेम्ट प्रोसिडिंग चलायी जायेगी.
आयोग ने चिठ्ठी सर्वोच्च न्यायालय के उसी आदेश के आलोक में लिखी है जिसमें न्यायालय ने पांच निर्देश दिये थे ताकि मतदाता को वोटिंग से पहले प्रत्याशी की पृष्ठभूमि का पता चल सके. निर्देशानुसार प्रत्याशी को अपनी पृष्ठभूमि समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए तीन बार बतानी होगी.
मोटे अक्षरों में लिखना होगा कि उसके खिलाफ कितने आपराधिक मामले चल रहे हैं
चुनाव आयोग के फार्मेंट मोटे अक्षरों में लिखना होगा कि उसके खिलाफ कितने आपराधिक मामले चल रहे हैं. उसे इस फार्म में हर पहलू की जानकारी देनी होगी. किसी भी सवाल को छोडा नहीं जा सकता. वह पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है, तो उस मामले की जानकारी पार्टी को भी देनी होगी. पार्टी को अपने प्रत्याशियों को आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी अपनी बेवसाइट पर डालनी होगी ताकि वोटर नेता की पृष्ठभूमि से अनजान न रहे.
यहां उल्लेखनीय है कि पिछली बार के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कोर्ट के आदेशों पर पूरी तरह अमल नहीं हो पाया था. पुन: लोकसभा चुनाव 2019 में भी इसका पालन नहीं हो पाया था. अब आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन कारने की पहल शुरू कर दे गई है. आयोग ने भी चुनाव में भाग्य आजमा रहे उम्मीदवारों को चेतावनी देते हुए कहा है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान आपराधिक रिकॉर्ड के ब्योरे सहित विज्ञापन नहीं देने वाले उम्मीदवारों को अदालत की अवमानना की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.
साथ ही अपने प्रतिद्वंद्वियों के बारे में गलत आपराधिक रिकॉर्ड प्रकाशित करवाने वालों पर भ्रष्ट तरीके इस्तेमाल करने के आरोप में जुर्माना लग सकता है. चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों को निर्वाचन आयोग ने यह चेतावनी भी दी है. यहां बता दें कि 2010 में जहां 85 यानी 35 प्रतिशत विधायकों पर गंभीर मामले थे. वहीं, 2015 में 40 प्रतिशत यानी 98 विधायकों पर गंभीर मामले लंबित हैं.