सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा, भारद्वाज समेत सभी एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी पर लगाई रोक, अगली सुनवाई तक घर में रहेंगे नजरबंद
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 29, 2018 04:13 PM2018-08-29T16:13:10+5:302018-08-29T18:53:00+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में देश भर से 5 एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी पर महाराष्ट्र सरकार से 5 सितंबर तक जवाब माँगा है।
नई दिल्ली, 29 अगस्त: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, अरुण फेरिरिया, वर्नन गोनसॉल्विस और वरवर राव की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है।
सर्वोच्च अदालत ने आदेश दिया है कि छह सितम्बर को मामले की अगली सुनवाई तक ये सभी एक्टिविस्ट घर में नजरबंद रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतभेद लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल है और इसे रोका गया तो लोकंतत्र टूट जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा एवं अन्य 4 एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी मामले से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार से 5 सितंबर तक जवाब माँगा है।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से सुप्रीम कोर्ट मेंं पेश हुए वकील राजीव धवन ने सर्वोच्च अदालत से कहा कि सभी एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी असंगत तरीके से हुई है। धवन ने इन गिरफ्तारियों को "गैर-कानूनी और मनमाना" बताया।
यूएपीए के तहत मामला दर्ज करने पर सवाल
एक्टिविस्टों की तरफ से पेश हुए वकील रोहन नाहर ने सभी गिरफ्तार लोगों पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किए जाने पर भी सवाल उठाया।
नाहर ने अदालत से कहा कि यूएपीए तब लगाया जाता है जब संदिग्ध के घर से हिंसक वारदात अंजाम दे सकने वाले असलहे, गोला-बारूद इत्यादि बरामद होते हैं।
नाहर ने अदालत से कहा कि महाराष्ट्र पुलिस ने सभी अभियुक्तों के घर से जिन चीजों की बरामदगी दिखायी है उसमें ऐसा कुछ नहीं है जो यूएपीए के अभियोग दर्ज करने लायक हो।
इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, देवकी जैन और मजा दारूवाला ने भीमा-कोरेगांव मामले के सिलसिले में हुई इन गिरफ्तारियों के विरोध में सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दायर की थी।
दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई
वहीं दिल्ली हाई कोर्ट ने नवलखा एवं अन्य की गिरफ्तारी से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार के वकील से जवाब तलब किया कि नवलखा को गिरफ्तारी मेमो दिये बिना क्यों गिरफ्तार किया गया? हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के वकील से कहा, "हिरासत में गुजारा गया हर मिनट चिंता का विषय है।"
भीमा-कोरेगांव मामले के सिलसिले में हुई इन गिरफ्तारियों के विरोध में इतिहासकार रोमिला थापर और प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, देवकी जैन और मजा दारूवाला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिस पर आज पहली सुनवाई हुई।
Delhi High Court questions the prosecution that why arrest memo was not given to Gautam Navlakha or his counsel. HC observed, "every minute that a person is spending in custody is matter of concern". #BhimaKoregaon
— ANI (@ANI) August 29, 2018
महाराष्ट्र पुलिस की छापेमारी
महाराष्ट्र पुलिस ने कई राज्यों में बुद्धिजीवियों के घरों में मंगलवार 28 अगस्त को छापा मारा। जिसमें माओवादियों से संपर्क रखने के शक में कम से कम पांच लोगों को गिरफ्तार किया। जिसमें रांची से फादर स्टेन स्वामी , हैदराबाद से वामपंथी विचारक और कवि वरवरा राव, फरीदाबाद से सुधा भारद्धाज और दिल्ली से सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलाख शामिल है।
महाराष्ट्र पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से मंगलवार को दिल्ली में पत्रकार-सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, गोवा में प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे, रांची में मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी, मुंबई में सामाजिक कार्यकर्ता अरुण परेरा, सुजैन अब्राहम, वर्नन गोनसाल्विस, हैदराबाद में माओवाद समर्थक कवि वरवर राव, वरवर राव की बेटी अनला, पत्रकार कुरमानथ और फरीदाबाद में सुधा भारद्वाज के घर पर छापेमारी की।
मोदी सरकार पर लग रहे हैं आरोप, जानें किसने क्या-क्या कहा...
- कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, 'भारत में सिर्फ एक ही एनजीओ के लिए जगह है और उसका नाम है आरएसएस। इसके अलावा अन्य सभी एनजीओ को बंद कर दीजिए। सभी ऐक्टिविस्ट्स को जेल में डाल दो और जो विरोध करे, उसे गोली मार दो।'
- महाराष्ट्र के गृह राज्यमंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि इस मामले में जो भी पांच गिरफ्तारी हुई है, वह पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत की गई है। उनके खिलाफ कुछ सबूत मिले हैं, जो उन्हें शक के घेरे में लाते हैं। बिना सबूत पुलिस उनको कस्टडी में कैसे ले सकता है, जरा आप ही सोचिए?
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मीडिया रिपोर्ट्स का जिक्र करते हुए कहा था कि ऐक्टिविस्ट्स बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी में तय मानकों का पालन नहीं किया गया था। मानवाधिकार आयोग ने इस संबंध में महाराष्ट्र के चीफ सेक्रटरी और डीजीपी को नोटिस जारी कर पूरी प्रक्रिया के संबंध में 4 सप्ताह के भीतर जानकारी मांगी है।
- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) नेता सीताराम येचुरी ने भीमा-कोरेगांव हिंसा पर कहा- इन अनैतिक गिरफ्तारियों के खिलाफ वामदलों तथा सभी प्रगतिशील संगठनों द्वारा गुरुवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा..."
- मायावती ने कहा है कि ये दलितों की बात करने वालों की आवाज दबाने की कोशिश है। महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार की ओर से सत्ता का बेजा इस्तेमाल करने जैसा है।
- - इस बीच, सिविल लिबर्टिज कमेटी के अध्यक्ष गद्दम लक्ष्मण ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह बुद्धिजीवियों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रही है। लक्ष्मण ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम कानूनी विशेषज्ञों से मशविरा कर रहे हैं। हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे ...उनकी गिरफ्तारी मानवाधिकारों का घोर हनन है।’’
- वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, ‘‘फासीवादी फन अब खुल कर सामने आ गए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह आपातकाल की स्पष्ट घोषणा है। वे अधिकारों के मुद्दों पर सरकार के खिलाफ बोलने वाले किसी भी शख्स के पीछे पड़ रहे हैं। वे किसी भी असहमति के खिलाफ हैं।’’
- चर्चित इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने पुलिस की कार्रवाई को ‘‘काफी डराने वाला’’ करार दिया और उच्चतम न्यायालय के दखल की मांग की ताकि आजाद आवाजों पर ‘‘अत्याचार और उत्पीड़न’’ को रोका जा सके। गुहा ने ट्वीट किया, ‘‘सुधा भारद्वाज हिंसा और गैर-कानूनी चीजों से उतनी ही दूर हैं जितना अमित शाह इन चीजों के करीब हैं।
- नागरिक अधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने भी छापेमारियों की कड़ी निंदा की। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘‘महाराष्ट्र, झारखंड, तेलंगाना, दिल्ली, गोवा में सुबह से ही मानवाधिकार के रक्षकों के घरों पर हो रही छापेमारी की कड़ी निंदा करती हूं। मानवाधिकार के रक्षकों का उत्पीड़न बंद हो। मोदी के निरंकुश शासन की निंदा करती हूं।’’
क्या है पूरा मामला
31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव - भीमा गांव में दलितों और उच्च जाति के पेशवाओं के बीच हुई हिंसा भड़क गई थी। जिसपर ये गिरफ्तारी हुई है। एक जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना के बीच पुणे के निकट भीमा नदी के किनारे कोरेगांव नामक गाँव में युद्ध हुआ था। एफएफ स्टॉन्टन के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को गंभीर नुकसान पहुँचाया। ब्रिटिश संसद में भी भीमा कोरेगांव युद्ध की प्रशंसा की गयी। ब्रिटिश मीडिया में भी इस युद्ध में अंग्रेज सेना की बहादुरी के कसीदे काढ़े गये। इस जीत की याद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोरेगांव में 65 फीट ऊंचा एक युद्ध स्मारक बनवाया जो आज भी यथावत है। भीमा कोरेगांव के इतिहास में बड़ा मोड़ तब आया जब बाबासाहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कोरेगांव युद्ध की 109वीं बरसी पर एक जनवरी 1927 को इस स्मारक का दौरा किया।
शिवराम कांबले के बुलावे पर ही बाबासाहब कोरेगांव पहुंचे थे। बाबासाहब ने भीमा कोरेगांव स्मारक को ब्राह्मण पेशवा के जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ महारों की जीत के प्रतीक के तौर पर इस युद्ध की बरसी मनाने की विधवित शुरुआत की। इस साल एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव की 200वीं बरसी पर आयोजित आयोजन का कई दक्षिणपंथी संगठनों ने विरोध किया था। विरोध करने वालों में अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा, हिन्दू अगाड़ी और राष्ट्रीय एकतमाता राष्ट्र अभियान ने शामिल थे। ये संगठन इस आयोजन को राष्ट्रविरोधी और जातिवादी बताते हैं।
(भाषा इनपुट)