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स्नानघर में नहाना अनिवार्य रूप से ‘निजी कार्य’ और इसे केवल ‘सार्वजनिक कृत्य’ करार देना ‘‘बेतुका’’, दिल्ली उच्च न्यायालय ने शख्स को ताक-झांक का दोषी ठहराया

By भाषा | Updated: April 6, 2023 21:12 IST

उच्च न्यायालय ने कहा कि पीड़िता जब भी नहाती थी तो यौन मंशा से स्नानघर में झांकना और उसके खिलाफ अभद्र टिप्पणी करना, ना केवल तुच्छ और अभद्र व्यवहार था बल्कि यह महिला की निजता का हनन है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 354सी (ताक-झांक) के तहत आपराध है।

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ठळक मुद्देताक-झांक के अपराध के लिए व्यक्ति की दोषसिद्धि और एक साल की सजा को बरकरार रखा।यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के आरोपों से बरी कर दिया गया।अदालत ने पाया कि 2014 में हुई घटना के समय महिला नाबालिग नहीं थी।

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को ताक-झांक का दोषी करार देते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि स्नानघर में नहाना अनिवार्य रूप से एक ‘निजी कार्य’ है और इसे केवल इसलिए ‘सार्वजनिक कृत्य’ करार देना ‘‘बेतुका’’ है कि (स्नानघर की) संरचना अस्थायी थी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि पीड़िता जब भी नहाती थी तो यौन मंशा से स्नानघर में झांकना और उसके खिलाफ अभद्र टिप्पणी करना, ना केवल तुच्छ और अभद्र व्यवहार था बल्कि यह महिला की निजता का हनन है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 354सी (ताक-झांक) के तहत आपराध है। न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने ताक-झांक के अपराध के लिए व्यक्ति की दोषसिद्धि और एक साल की सजा को बरकरार रखा।

हालांकि, उसे यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के आरोपों से बरी कर दिया गया क्योंकि अदालत ने पाया कि 2014 में हुई घटना के समय महिला नाबालिग नहीं थी। न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मौजूदा कानून (ताक-झांक) को पेश करने के पीछे का उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध को रोकना और उनकी निजता की रक्षा करना था।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि दोषी के वकील की यह दलील कि मौजूदा मामले में पीड़िता द्वारा नहाने का कार्य ‘निजी काम’ होने के बजाय ‘सार्वजनिक कार्य’ है, ‘‘पूरी तरह से आधारहीन है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘केवल इसलिए कि एक संरचना, जिसे एक महिला द्वारा स्नानघर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और उसमें दरवाजा नहीं है बल्कि केवल एक पर्दा और अस्थायी दीवारें हैं और यह उसके घर के बाहर स्थित है, यह इसे सार्वजनिक स्थान नहीं बनाता है।’’ 

टॅग्स :दिल्ली हाईकोर्टकोर्ट
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