सीएम अमरिंदर सिंह के दामाद से जुड़े बैंक धोखाधड़ी मामले में ED ने 109.8 करोड़ की संपत्ति कुर्क की
By भाषा | Updated: July 2, 2019 13:52 IST2019-07-02T13:52:36+5:302019-07-02T13:52:36+5:30
धनशोधन रोकथाम कानून के तहत उत्तर प्रदेश में हापुड़ के सिम्भावली में स्थित कंपनी की इकाई की जमीन, इमारतें, संयंत्र और मशीनरी जैसी सम्पत्तियों को कुर्क करने का एक अंतरिम आदेश जारी किया गया था। प्रवर्तन निदेशालय ने एक बयान में कहा कि ताजा आदेश के तहत कुल 109.8 करोड़ रुपए की सम्पत्तियां कुर्क की गई हैं।

ईडी ने इस प्राथमिकी का संज्ञान लेने के बाद पीएमएलए के तहत कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
ईडी ने मंगलवार को बताया कि कथित बैंक कर्ज धोखाधड़ी मामले में उसने देश की सबसे बड़ी चीनी मिलों में शामिल सिम्भावली शुगर्स लिमिटेड की 110 करोड़ रुपए की सम्पत्ति कुर्क की है।
एजेंसी ने बताया कि धनशोधन रोकथाम कानून के तहत उत्तर प्रदेश में हापुड़ के सिम्भावली में स्थित कंपनी की इकाई की जमीन, इमारतें, संयंत्र और मशीनरी जैसी सम्पत्तियों को कुर्क करने का एक अंतरिम आदेश जारी किया गया था। प्रवर्तन निदेशालय ने एक बयान में कहा कि ताजा आदेश के तहत कुल 109.8 करोड़ रुपए की सम्पत्तियां कुर्क की गई हैं।
Enforcement Directorate (ED) attaches under PMLA, land, buildings, plant & machinery of distillery unit of M/s Simbhaoli Sugars Ltd, Simbhaoli in Hapur worth Rs.109.80 crore in a bank fraud case. pic.twitter.com/QqirNj6mM0
— ANI (@ANI) July 2, 2019
सीबीआई ने ‘‘गन्ना किसानों को वित्तीय मदद देने के बहाने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के साथ धोखाधड़ी करने’’ के मामले में सिम्भावली शुगर्स लिमिटेड और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। ईडी ने इस प्राथमिकी का संज्ञान लेने के बाद पीएमएलए के तहत कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
न्यायालय ने धनशोधन कानून में संशोधनों पर जयराम रमेश की याचिका पर केन्द्र से मांगा जवाब
उच्चतम न्यायालय ने 2015 से धन शोधन कानून में धन विधेयक के रूप में संशोधन करने के खिलाफ कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिका पर मंगलवार को केन्द्र सरकार से जवाब मांगा। न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने जयराम रमेश की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी किया और उसे अपना जवाब देने का निर्देश दिया।
रमेश की दलील है कि धन विधेयक के रूप में धन शोधन कानून में संशोधन करना संविधान का उल्लंघन था। उच्च न्यायलाय ने इस साल फरवरी में जयराम रमेश की याचिका यह कहते हुये खारिज कर दी थी कि वह याचिका दायर करने मे हुये विलंब के बारे में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके।