मुंबई, 23 जुलाईः आधुनिक कालेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की आज जयंती है। बाल गंगाधर तिलक को भारतीय समाज एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर याद करता है। भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले 'गरम दल' या लाल-बाल-पाल के वे अहम सदस्य थे। तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल उस दौर में उनके प्रमुख साथी थे। इन्होंने मिलकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। जिसमें तिलक का प्रमुख योगदान उनके मराठी अखबार मराठी दर्पण ने निभाया।
लेकिन बाल गंगाधर तिलक के जीवन का एक और पक्ष है। वह है उनके हिन्दू राष्ट्रवाद का पक्षधर होना। उनकी आजादी की लड़ाई में उनके व्यक्तित्व का यह पक्ष काफी प्रभावी रहा। साल 1908 में तिलक ने क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया तो अंग्रेजी सरकार ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल में डाल दिया। यहीं पर उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता की व्याख्या गीता-रहस्य लिखी। इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। इसके अलावा उन्होंने वेद काल का निर्णय (The Orion), आर्यों का मूल निवास स्थान (The Arctic Home in the Vedas), वेदों का काल-निर्णय और वेदांग ज्योतिष (Vedic Chronology & Vedang Jyotish),हिन्दुत्व आदि किताबें लिखीं।
इन किताबों और अपने इंग्लिश अखबार 'मराठा दर्पण' व मराठी अखबार 'केसरी' के माध्यम से उन्होंने भारत के लोगों को हिन्दू राष्ट्रवाद का मतलब समझाया। जल्दी शादी करने के व्यक्तिगत रूप से विरोधी होने के बाद भी जब अंग्रेजी हुकुमत 1891 एज ऑफ कंसेन्ट विधेयक लाई तो वे विफर पड़े और उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया। क्योंकि वे उसे हिन्दू धर्म में दखलअंदाजी मानते थे। इस एक्ट में लड़कियों के विवाह करने की न्यूनतम आयु को 10 से बढ़ाकर 12 वर्ष की गई थी। लेकिन तिलक का कहना है कि यह हिन्दुओं का अधिकार है। इसमें कोई बदलावा हिन्दुओं के द्वारा किया जाना चाहिए।
पहले स्वंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के वे 10 नारे, जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया
बाद में उनका मराठी नारा "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" बहुत ही ज्यादा मशहूर हुआ। इसके हिन्दी मायने स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा भी बेहद चर्चित रहा।
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गांव चिखली में हुआ। अपनी पढ़ाई-लिखाई के बाद उन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया। लेकिन बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने लगे। उन्होंने अंग्रेजी की अच्छी शिक्षा ली थी, उसे जानने समझने के बाद वे अंग्रेजी शिक्षा के ये घोर आलोचक बने। उनके अनुसार अंग्रेजी शिक्षा भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इसीलिए उन्होंने दक्खन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की जो भारत में शिक्षा का स्तर सुधारे। हालांकि भारत की आजादी देखने से पहले ही 1 अगस्त, 1920 को बम्बई (अब मुंबई) में उनका देहांत हो गया। मरणोपरान्त उनको दी जाने वाली श्रद्धांजलि में महात्मा गांधी ने कहा, वे आधुनिक भारत का निर्माता थे। जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय क्रांति का जनक माना।