अयोध्या विवादः प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने टिप्पणी की, चीजें हमारे कार्यक्रम के अनुसार नहीं चल रही हैं, पीठ ने कहा- आप कितना समय लेंगे?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 28, 2019 15:32 IST2019-09-28T15:32:56+5:302019-09-28T15:32:56+5:30

पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाडे से सवाल किया, ‘‘आप कितना समय लेंगे?’’ मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने कहा कि वह दो घंटों के अंदर अपना पक्ष रख देंगे। पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे़, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं।

Ayodhya dispute: Chief Justice Gogoi commented, things are not going according to our schedule, the bench said- how much time will you take? | अयोध्या विवादः प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने टिप्पणी की, चीजें हमारे कार्यक्रम के अनुसार नहीं चल रही हैं, पीठ ने कहा- आप कितना समय लेंगे?

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की 2003 की रिपोर्ट कोई ‘साधारण राय’ नहीं है

Highlights18 अक्टूबर की समयसीमा तय, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सुनवाई तय कार्यक्रम के अनुसार नहीं हो रही।प्रधान न्यायाधीश ने टिप्पणी की, ‘‘चीजें हमारे कार्यक्रम के अनुसार नहीं चल रही हैं।’’ पीठ 30 सितंबर को मामले में फिर से सुनवाई करेगी।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई ‘‘कार्यक्रम के अनुसार’’ नहीं हो रही है। न्यायालय ने इस मामले में दलीलें पूरी करने के लिए 18 अक्टूबर की समयसीमा तय की है।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले की सुनवाई 33 वें दिन कर रही थी। न्यायालय ने पहले स्पष्ट किया था कि मुस्लिम पक्षकारों को 27 सितंबर को दोपहर एक बजे तक अपनी दलीलें पूरी कर लेनी चाहिए।

पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाडे से सवाल किया, ‘‘आप कितना समय लेंगे?’’ मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने कहा कि वह दो घंटों के अंदर अपना पक्ष रख देंगे। पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे़, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं। उनकी बातें सुनने के बाद पीठ ने आज की सुनवाई पूरी कर ली और प्रधान न्यायाधीश ने टिप्पणी की, ‘‘चीजें हमारे कार्यक्रम के अनुसार नहीं चल रही हैं।’’ पीठ 30 सितंबर को मामले में फिर से सुनवाई करेगी। 

अयोध्या मामले में न्यायालय ने कहा : एएसआई की रिपोर्ट कोई आम राय नहीं

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की 2003 की रिपोर्ट कोई ‘साधारण राय’ नहीं है क्योंकि पुरातत्ववेत्ता खुदाई में मिली सामग्री के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से राय देने के लिए काम कर रहे थे।

उच्च न्यायालय ने अपने ‘कोर्ट-कमिश्नर’ के माध्यम से 2002 में एएसआई से उस स्थल की खुदाई करने और यह निष्कर्ष देने को कहा था कि "विवादित भवन" का निर्माण "कथित हिंदू मंदिर" को गिराने के बाद किया गया था या नहीं। एएसआई को कलाकृतियां, मूर्तियां, स्तंभ और अन्य अवशेष मिले थे और उसने अपनी रिपोर्ट में कथित बाबरी मस्जिद के नीचे एक विशाल संरचना का अस्तित्व होने की बात की थी।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि सुशिक्षित एवं अध्ययनशील विशेषज्ञों द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट से निष्कर्ष निकाला गया है। पीठ ने ये टिप्पणियां उस वक्त कीं जब मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश एक वकील ने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट ‘सिर्फ एक राय’ है और अदालत पर बाध्यकारी नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘आप (कोर्ट) कमिश्नर की रिपोर्ट की तुलना किसी अन्य सामान्य राय के साथ नहीं कर सकते।

कमिश्नर के कहने के बाद उन्होंने (एएसआई विशेषज्ञों ने) ऐसा (खुदाई) किया।’’ संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पीठ ने कहा कि विशेषज्ञों ने कमिश्नर के निर्देश पर उत्खनन और विश्लेषण किया और कमिश्नर को उच्च न्यायालय ने शक्तियां प्रदान की थी। न्यायालय ने कहा कि वह इस तथ्य से अवगत है कि दोनों पक्षों के तर्क निष्कर्षों के आधार पर हैं और इन घटनाओं का कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है। पीठ ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में सुनवाई के 33 वें दिन कहा, ‘‘हमें इसके बारे में पता है। हमें देखना होगा कि किस पक्ष की कहानी यथोचित संभावित है।’’

सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट ‘सिर्फ एक राय’ है और विवादित स्थल पर पहले राम मंदिर होने की बात साबित करने के लिये इसके समर्थन में ठोस साक्ष्यों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट को पुख्ता साक्ष्य नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘एएसआई की 2003 की रिपोर्ट एक कमजोर साक्ष्य है और इसके समर्थन में ठोस साक्ष्य की आवश्यकता है।’’ उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट न्यायालय के लिये बाध्यकारी नहीं है क्योंकि यह प्रकृति में सिर्फ ‘‘परामर्शकारी’’ है। मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा, ‘‘यह (एएसआई की रिपोर्ट) सिर्फ एक राय है और इससे कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।’’

उन्होंने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण को इस बारे में अपनी रिपोर्ट देने के लिये कहा गया था कि क्या उस स्थल पर पहले राम मंदिर था या नहीं। उन्होंने रिपोर्ट के निष्कर्षो का जिक्र करते हुये कहा कि इसमें कहा गया है कि बहुत हुआ तो मोटे तौर पर ढांचा उत्तर भारत के मंदिर जैसा था। उन्होंने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट में कुछ जगह कहा गया है कि बाहरी बरामदे में राम चबूतरा संभवत: पानी का हौद था। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में बहुत सारे अनुमान और अटकलें हैं और इस रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिये न्यायालय बाध्य नहीं है।

उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट परामर्श दस्तावेज की तरह है। मुस्लिम पक्षकारों की ओर से ही एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने पूर्व निर्णय के सिद्धांत के आधार पर अपनी दलीलें पेश कीं। दीवानी कानून के तहत यह सिद्धांत इस तथ्य के बारे में है कि एक ही तरह के विवाद का अदालत में दो बार निर्णय नहीं हो सकता है। नफड़े ने कहा कि 1885 में महंत रघुवर दास ने विवादित परिसर के दायरे में राम मंदिर के निर्माण की अनुमति मांगी थी लेकिन अदालत ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने पूर्व निर्णय के सिद्धांत का हवाला देते हुये कहा कि उसी विवाद को कानून के तहत हिन्दू पक्षकार फिर से नहीं उठा सकते हैं। इस मामले में अब 30 सितंबर को अगली सुनवाई होगी। 

Web Title: Ayodhya dispute: Chief Justice Gogoi commented, things are not going according to our schedule, the bench said- how much time will you take?

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