जब अटल बिहारी वाजपेयी बस से पहुंचे थे लाहौर, नवाज शरीफ को लगाया था गले

By भाषा | Published: August 16, 2018 08:38 PM2018-08-16T20:38:22+5:302018-08-16T20:42:00+5:30

लंबी बीमारी के बाद 93 साल की उम्र में चल बसे वाजपेयी ने अहम कूटनीतिक प्रयास किया और उन्होंने बॉलीवुड हस्ती देवानंद, लेखक जावेद अख्तर और क्रिक्रेटर कपिल देव जैसी शख्सियतों के साथ अमृतसर से लाहौर की यात्रा की।

atal bihari vajpayee took bus to lahore on bus in 1999 hugged nawaz sharif | जब अटल बिहारी वाजपेयी बस से पहुंचे थे लाहौर, नवाज शरीफ को लगाया था गले

जब अटल बिहारी वाजपेयी बस से पहुंचे थे लाहौर, नवाज शरीफ को लगाया था गले

नई दिल्ली, 16 अगस्त: जब अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में बस से लाहौर गये थे और अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को गले लगाकर अपनी प्रिय छवि की छाप छोड़ी, तब द्विपक्षीय संबंधों में जो आस जगी थी वह महज कुछ समय के लिए थी। लंबी बीमारी के बाद 93 साल की उम्र में चल बसे वाजपेयी ने अहम कूटनीतिक प्रयास किया और उन्होंने बॉलीवुड हस्ती देवानंद, लेखक जावेद अख्तर और क्रिक्रेटर कपिल देव जैसी शख्सियतों के साथ अमृतसर से लाहौर की यात्रा की।

 इस कदम को भारत और पाकिस्तान के सबंधों में नये युग की शुरुआत के तौर पर देखा गया। लाहौर पहुंचने पर उनका जोरदार स्वागत हुआ था और उन्होंने कहा था, ‘‘मैं अपने साथी भारतीयों की सद्भावना और आशा लाया हूं जो पाकिस्तान के साथ स्थायी शांति और सद्भाव चाहते हैं...मुझे पता है कि यह दक्षिण एशिया के इतिहास में एक निर्णायक पल है और मैं आशा करता हूं कि हम इस चुनौती पर आगे बढ़ पायेंगे। ’’

दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच बातचीत के बाद लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर हुए थे जिसके तहत अन्य बातों के साथ इस पर सहमति बनी थी कि दोनों पक्ष परमाणु हथियारों के दुर्घटनावश या अनधिकृत उपयोग का जोखिम कम करने के लिए कदम उठायेंगे। लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच यह मधुर संबंध अधिक समय तक नहीं टिका और इस यात्रा के महज कुछ ही महीने बाद पाकिस्तान की सेना ने जम्मू कश्मीर के कारगिल में अपने सैनिक भेजकर गुप्त अभियान चलाया, फलस्वरुप सीमित लड़ाई हुई और पाकिस्तान की हार हुई।

वाजपेयी की लाहौर यात्रा के दौरान पाकिस्तान में भारत के राजदूत रहे गोपालस्वामी पार्थसारथी ने पीटीआई भाषा से कहा कि उनका भाषण दिल को छू लेने वाला था क्योंकि उन्होंने कहा था कि जहां तक उनकी बात है तो वह लड़ाई नहीं होने देंगे। पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर ने कहा कि भारत पाक संबंधों में वाजपेयी का योगदान ऐसा था जो खुद अपनी कहानी बयां करता है।

बताया जाता है कि वाजपेयी सदैव कूटनीति और वार्ता को एक मौका देने में यकीन करते थे और उन्होंने दो दिवसीय आगरा सम्मेलन के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को निमंत्रित किया। लेकिन वार्ता बिना किसी नतीजे के समाप्त हुई। कश्मीर पर विवाद को इस गतिरोध की वजह के रुप में देखा गया।

पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने बाद में अपनी पुस्तक ‘नाइदर ए हॉक नॉर ए डोव’ में लिखा कि ‘‘ आगरा सम्मेलन में कश्मीर का समाधान दोनों सरकारों के करीब आ गया था लेकिन वह मूर्त रुप नहीं ले पाया। ’’ पार्थसारथी ने कहा कि आगरा सम्मेलन विफल हो गया लेकिन हमें लाभ हुआ क्योंकि हमने उन्हें निमंत्रित किया लेकिन उन्होंने गलत व्यवहार किया।

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