मजदूरी संहिता विधेयक को मंजूरी, पूरे देश में एक न्यूनतम मजदूरी तय करने का प्रावधान
By भाषा | Published: July 3, 2019 08:37 PM2019-07-03T20:37:38+5:302019-07-03T20:37:38+5:30
सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘मंत्रिमंडल ने मजदूरी संहिता पर विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है।’’ सरकार का इसे संसद के मौजूदा सत्र में पारित कराने का इरादा है। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में 10 अगस्त 2017 को मजदूरी संहिता विधेयक को लोकसभा में पेश किया था।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को मजदूरी संहिता विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी। विधेयक में कर्मचारियों के पारिश्रमिक से जुड़े मौजूदा सभी कानूनों को एक साथ करने और केंद्र सरकार को पूरे देश के लिये एक न्यूनतम मजदूरी तय करने का अधिकार देने का प्रावधान किया गया है।
सरकार ने देश में कारोबार सुगमता को बढ़ावा देने और निवेश आकर्षित करने के लिये श्रम क्षेत्र में चार संहिता का प्रस्ताव किया है जो मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा और कल्याण तथा औद्योगिक संबंधों से जुड़ी होंगी। मजदूरी संहिता उनमें से एक है।
सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘मंत्रिमंडल ने मजदूरी संहिता पर विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है।’’ सरकार का इसे संसद के मौजूदा सत्र में पारित कराने का इरादा है। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में 10 अगस्त 2017 को मजदूरी संहिता विधेयक को लोकसभा में पेश किया था।
इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेजा गया। समिति ने 18 दिसंबर 2018 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। हालांकि, मई 2019 में 16वीं लोकसभा भंग होने के साथ विधेयक निरस्त हो गया। मजदूरी संहिता मजदूरी भुगतान कानून, 1936, न्यूनतम मजदूरी कानून, 1948, बोनस भुगतान कानून 1965 और समान पारिश्रमिक कानून 1976 का स्थान लेगा।
विधेयक में प्रावधान है कि केंद्र सरकार रेलवे और खान समेत कुछ क्षेत्रों के लिये न्यूनतम मजदूरी तय कर सकती है जबकि राज्य अन्य श्रेणी के कर्मचारियों के लिये न्यूनतम मजदूरी तय करने को स्वतंत्र हैं। संहिता में राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने का प्रावधान है।
केंद्र सरकार विभिन्न क्षेत्रों या राज्यों के लिये अलग से न्यूनतम वेतन निर्धारित कर सकती है। कानून के मसौदे में यह भी कहा गया है कि न्यूनतम मजदूरी की समीक्षा हर पांच साल में की जाएगी।
कैबिनेट ने मध्यस्थों को अधिक जवाबदेह बनाने वाले विधेयक को मंजूरी दी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को मध्यस्थता एवं मेलमिलाप संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी प्रदान कर दी जिसके माध्यम से भारत को घरेलू एवं वैश्विक मध्यस्थता का केंद्र बनाने का मार्ग प्रशस्थ हो सकेगा । इस विधेयक में वाणिज्यिक विवादों को समयबद्ध तरीके से निपटाने और मध्यस्थों की जवाबदेही तय करने का प्रस्ताव किया गया है।
इसी तरह का एक विधेयक अगस्त 2018 में लोकसभा में पारित हो चुका था लेकिन यह राज्यसभा में पारित नहीं हो सका । 16वीं लोकसभा की अवधि समाप्त होने के साथ ही यह विधेयक भी खत्म हो गया था । सूत्रों ने बताया कि देश में लगातार सरकारें भारत को अंतरराष्ट्रीय एवं घरेलू मध्यस्थता का केंद्र बनाने को प्रयासरत रही हैं।
यह नया विधेयक संस्थागत विवादों से निपटने के लिये एक ठोस तंत्र प्रदान करेगा । इसमें संशोधनों के माध्यम से संस्थागत मध्यस्थता को बेहतर बनाने के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल सकेगी । इसके तहत मानक तय करने, मध्यस्थता की प्रक्रिया को और सरल एवं सस्ता बनाने तथा समयबद्ध तरीके से मामलों का निपटारा सुनिश्चित करने के लिये स्वतंत्र निकाय की स्थापना करने की बात कही गई है ।
इसके तहत स्वतंत्र निकाय के रूप में भारतीय मध्यस्थता परिषद के गठन का प्रस्ताप किया गया है ।