नंदीग्राम में ममता और अधिकारी के बीच चुनावी मुकाबला कर्मों का फल देगा : लक्ष्मण सेठ
By भाषा | Updated: March 17, 2021 16:29 IST2021-03-17T16:29:26+5:302021-03-17T16:29:26+5:30

नंदीग्राम में ममता और अधिकारी के बीच चुनावी मुकाबला कर्मों का फल देगा : लक्ष्मण सेठ
(प्रदीप्त तापदार)
नंदीग्राम(पश्चिम बंगाल), 17 मार्च पूर्वी मिदनापुर जिले में नंदीग्राम विधानसभा सीट के चुनावी मुकाबले पर इस बार सभी की नजरें टिकी हैं, लेकिन वहां का कभी बेताज बादशाह रहा एक शख्स पूरे परिदृश्य से बाहर है।
लक्ष्मण चंद्र सेठ को इलाके में 2007 के कृषि भूमि अधिग्रहण विरोधी ऐतिहासिक आंदोलन का खलनायक माना जाता है, लेकिन वह इस बार के जोरदार चुनाव प्रचार के शोरगुल से दूर हैं।
सेठ ने खुद को हल्दिया तक सीमित कर लिया है, जहां उनका बेटा रहता है। वहीं, सांप्रदायिक रूप से विभाजित नंदीग्राम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कभी उनके करीबी विश्वस्त रहे शुभेन्दु अधिकारी के बीच महामुकाबले का इंतजार कर रहा है। अधिकारी इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार है।
सेठ (74) ने पीटीआई-भाषा से फोन पर कहा, ‘‘मैं इसे (ममता और अधिकारी के बीच चुनावी मुकाबले) को बुरे कर्मों का बुरा फल कहुंगा।’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘दोनों नेताओं ने अपना राजनीतिक करियर बनाने के लिए नंदीग्राम के बेकसूर लोगों को गुमराह किया था। अब उनके झूठ ही उन्हें परेशान करने वाले हैं।’’
सेठ ने कहा, ‘‘हालांकि, मैं अब भी कांग्रेस का सदस्य हूं, लेकिन राजनीति से दूर हूं। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें लगता है कि नंदीग्राम सीट पर चुनाव में ममता को अधिकारी पर बढ़त हासिल है। हम माने या ना माने, ममता ने अकेले ही वाम मोर्चा और दो बार के मुख्यमंत्री (बुद्धदेव भट्टाचार्य) को हराया था। उन्होंने (ममता ने) खुद को एक जननेता साबित किया है। शुभेन्दु अधिकारी में जननेता बनने की कुव्वत नहीं है। और नंदीग्राम के लोग दलबदलू को पसंद नहीं करते हैं।’’
सेठ ने कहा, ‘‘शुभेन्दु और उनके लोगों ने नंदीग्राम में पिछले 10 साल से जो आतंक मचाया है--उसका उन्हें इस चुनाव में (जनता से) मुंहतोड़ जवाब मिलेगा।’’
सेठ माकपा में थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें 2014 में निष्कासित कर दिया। इसके दो साल बाद वह भाजपा में शामिल हुए थे, लेकिन उन्होंने भगवा पार्टी छोड़ दी। वह अब कांग्रेस में हैं और तामलुक से 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंचने की उनकी नाकाम कोशिश ने शायद उन्हें बचाव की मुद्रा में ला दिया। चुनाव में उनकी जमानत तक जब्त हो गई थी।
गौरतलब है कि वह तामलुक सीट का तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
नंदीग्राम आंदोलन बंगाल के राजनीतिक इतिहास में एक निर्णायक मोड़ लाया था क्योंकि इस आंदोलन की जमीन से मार्क्सवाद विरोधी तेज तर्रार नेता ममता बनर्जी का उदय हुआ था, जिन्होंने राज्य में 34 साल से शासन कर रहे वाम मोर्चे को सत्ता से बेदखल कर दिया।
अधिकारी, इलाके के सर्वाधिक ताकतवर नेता के रूप में और तृणमूल कांग्रेस के एक कद्दावर नेता के तौर पर उभरे थे।
सेठ ने दार्शनिक अंदाज में कहा, ‘‘उन्होंने (ममता और अधिकारी ने) मेरे राजनीतिक करियर को नष्ट कर दिया। अब वक्त का पहिया फिर से घूम कर वहीं पर आ गया है और वे दोनों (ममता और अधिकारी) एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। यही जीवन और राजनीति है।’’
कई लोगों को अब भी ऐसा लगता है कि यदि 2007 में नंदीग्राम में हिंसक आंदोलन नहीं हुआ होता और सेठ वहां मौजूद नहीं होते तो नंदीग्राम कभी भी बंगाल के अशांत राजनीतिक फलक पर इतिहास नहीं रच पाता।
राजनीति में उन दिनों में सेठ का ऐसा दबदबा था कि उनके विरोधी कहा करते थे, ‘‘सेठ की मर्जी के बगैर पत्ता तक नहीं हिलता है।’’
वर्ष 2008 के पंचायत चुनाव के दौरान तत्कालीन सीआरपीएफ डीआईजी आलोक राज के साथ टेलीफोन पर उनकी तीखी बहस का एक वीडियो वायरल हुआ था, जो इलाके में उनके दबदबे को प्रदर्शित करता था।
सेठ ने कहा , ‘‘मेरे विरोधी मुझे हरमाद (गुंडा) कहा करते थे। कुछ लोग मुझे विलेन (खलनायक) कहते थे। लेकिन मैं बस अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों के हित में रूचि रखता था। ’’
सेठ पहली बार 1982 में माकपा के टिकट पर विधायक चुने गये थे और 1998 में तामलुक लोकसभा सीट से निर्वाचित होने तक वह विधानसभा पहुंचते रहे। उन्होंने 2004 में इस सीट पर अधिकारी को शिकस्त दी थी।
हालांकि, जब राजनीतिक हवा ने दिशा बदली तो अधिकारी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हरा दिया।
एक स्थानीय माकपा नेता ने कहा, ‘‘सेठ हल्दिया-नंदीग्राम में माकपा से भी ज्यादा ताकतवर माने जाते थे।’’
हालांकि, 2007 में स्थिति तेजी से बदल गई जब एक रसायन संयंत्र लगाने के लिए 10,000 एकड़ भूमि अधिग्रहित करने का एक नोटिस एक पंचायत कार्यालय से जारी होने पर प्रदर्शन शुरू हो गये। यह सेठ थे, जिन्होंने स्थानीय पंचायत को अधिसूचना जारी करने को कहा था।
इसके बाद, नंदीग्राम में और इसके आसपास के गांव राजनीतिक आधार पर ध्रुवीकृत हो गये। उस वर्ष 14 मार्च को हुई हिंसा के दौरान पुलिस गोलीबारी में 14 प्रदर्शनकारी मारे गये।
हालांकि, तत्कालीन बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार ने परियोजना वापस लेने का फैसला किया, लेकिन नुकसान हो चुका था। तत्कालीन माकपा सरकार में रहे कई लोगों का मानना है कि सेठ के अड़ियल रुख और अहंकार के चलते चीजें हाथ से निकल गई।
सेठ ने आरोप लगाया, ‘‘इसके लिए माकपा ने मुझे बलि का बकरा बनाया।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या वह नंदीग्राम में चुनाव प्रचार करना चाहेंगे, ‘‘यदि कांग्रेस ने मुझसे महागठबंधन उम्मीदवार के लिए प्रचार करने को कहा , तो मैं नंदीग्राम जाऊंगा। अन्यथा, मैं घर पर ही रहूंगा। वैसे भी राजनीति में मेरी कोई रूचि नहीं रह गई है।’’
कांग्रेस ने आठ चरणों में होने जा रहे बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए वाम और आईएसएफ के साथ संयुक्त मोर्चा बनाया है।
वहीं, अधिकारी के करीबी सहयोगी कनिष्क पांडा ने कहा, ‘‘जिस व्यक्ति ने नंदीग्राम में कई परिवारों को तबाह कर दिया, उसे जननेता का प्रमाणपत्र बांटने का कोई अधिकार नहीं है।
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