लिव-इन-रिलेशनशिप पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी, कहा- विवाह की संस्था को नष्ट करने के लिए एक व्यवस्थित डिजाइन काम कर रहा है

By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: September 1, 2023 01:23 PM2023-09-01T13:23:21+5:302023-09-01T13:24:59+5:30

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत में विवाह की संस्था को नष्ट करने के लिए एक व्यवस्थित डिजाइन काम कर रहा है और फिल्में और टीवी धारावाहिक इसमें योगदान दे रहे हैं।

Allahabad High Court on live-in-relationship Systematic Design Working To Destroy Marriage Institution | लिव-इन-रिलेशनशिप पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी, कहा- विवाह की संस्था को नष्ट करने के लिए एक व्यवस्थित डिजाइन काम कर रहा है

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (फाइल फोटो)

Highlightsलिव-इन-रिलेशनशिप पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की अहम टिप्पणी धारावाहिकों और वेब सीरीज पर भी टिप्पणी कीकहा- विवाह की संस्था को नष्ट करने के लिए एक व्यवस्थित डिजाइन काम कर रहा है

प्रयागराज: अपनी लिव-इन पार्टनर से बलात्कार के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत में विवाह की संस्था को नष्ट करने के लिए एक व्यवस्थित डिजाइन काम कर रहा है और फिल्में और टीवी धारावाहिक इसमें योगदान दे रहे हैं।

टीवी धारावाहिकों और वेब सीरीज के कंटेट पर टिप्पणी करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि हर सीजन में साथी बदलने की अवधारणा को "स्थिर और स्वस्थ" समाज की पहचान नहीं माना जा सकता है। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि विवाह संस्था किसी व्यक्ति को जो सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती है,  लिव-इन-रिलेशनशिप से उसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है।

मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की पीठ ने टिप्पणी की, "लिव-इन-रिलेशनशिप को इस देश में विवाह की संस्था के अप्रचलित होने के बाद ही सामान्य माना जाएगा, जैसा कि कई तथाकथित विकसित देशों में होता है जहां विवाह की संस्था की रक्षा करना उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। हम भविष्य में अपने लिए एक बड़ी समस्या खड़ी करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। शादीशुदा रिश्ते में पार्टनर से बेवफाई और स्वतंत्र लिव-इन-रिलेशनशिप को एक प्रगतिशील समाज के लक्षण के रूप में दिखाया जा रहा है।  युवा ऐसे दर्शन की ओर आकर्षित हो जाते हैं, क्योंकि वे दीर्घकालिक परिणामों से अनजान होते हैं।"

न्यायालय का यह भी मानना ​​था कि जिस व्यक्ति के पारिवारिक रिश्ते मधुर नहीं हैं, वह राष्ट्र की प्रगति में योगदान नहीं दे सकता। लिव-इन रिश्तों का जिक्र करते हुए, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने यह भी कहा कि एक रिश्ते से दूसरे रिश्ते में जाने से कोई संतुष्टिदायक अस्तित्व नहीं मिलता है और ऐसे रिश्तों से पैदा होने वाले बच्चों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

पीठ ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चों के माता-पिता जब अलग हो जाते हैं तब वे समाज पर बोझ बन जाते हैं। वे गलत संगत में पड़ जाते हैं और अच्छे नागरिकों की राष्ट्रीय हानि होती है।  लिव-इन-रिलेशनशिप से पैदा हुई कन्या शिशु के मामले में, अन्य दुष्प्रभाव भी होते हैं जिनके बारे में विस्तार से बताना संभव नहीं है। अदालतों को रोजाना ऐसे मामले देखने को मिलते हैं।

Web Title: Allahabad High Court on live-in-relationship Systematic Design Working To Destroy Marriage Institution

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