कोर्ट में हत्याः 700 करोड़ का मालिक था संतोष झा, मजदूरी को लात मारकर बना था डॉन
By एस पी सिन्हा | Updated: August 29, 2018 07:48 IST2018-08-29T07:48:08+5:302018-08-29T07:48:08+5:30
नक्सलियों के लाल गलियारे से होकर अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बने संतोष झा का जीवन मध्यम वर्गीय परिवार के संघर्ष गाथा के अनुरूप ही था।

फाइल फोटो
पटना, 28 अगस्त:बिहार के सीतामढ़ी कोर्ट कैंपस में मारा गया गैंगस्टर संतोष झा की चर्चा पूरे बिहार में थी। संतोष झा और उसके गुर्गे अपराधों की दुनिया में शामिल होने के बाद लगातार अपनी संपत्ति को बढ़ाने में लगे हुए थे। शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है कि संतोष झा और उसके गुर्गों के पास करीब 700 करोड़ की संपत्ति है।
बताया जाता है कि गैंगस्टर संतोष झा, विकास झा, मुकेश पाठक, बबलू दुबे समेत इस गैंग के सभी अपराधियों ने संपत्ति के काफी हिस्से को नेपाल में निवेश किया है। इसके अलावा सीतामढी, मधुबनी, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार समेत अन्य जिलों में भी संपत्ति मौजूद है। सूत्रों के अनुसार इनकी अधिक संपत्ति दूसरों के नाम पर है। संतोष झा गैंग का नेपाल में काफी बड़ा ऑपरेशन सेंटर मौजूद था। नेपाल से ही ये सभी लोग व्यवसाय समेत अन्य चीजों में पैसे निवेश करते हैं।
बता दें कि 2015 में दरभंगा में रोड निर्माण में लगी निजी निर्माण कंपनी से रंगदारी मांगी गई थी, उसे नेपाल के नंबर से ही फोन आया था। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि अपराधों को अंजाम देने के बाद ये नेपाल जाकर ही रहते थे। नक्सलियों के लाल गलियारे से होकर अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बने संतोष झा का जीवन मध्यम वर्गीय परिवार के संघर्ष गाथा के अनुरूप ही था। उसके पिता चंद्रशेखर झा ड्राइवर का काम करते थे। लगभग चार एकड़ जमीन रहने के बावजूद बागमती के तांडव से खेतों में उपज नहीं होती थी। तीन भाई-बहनों में संतोष झा सबसे बड़ा था। उसकी दो छोटी बहनें हैं, जिनकी शादी हो चुकी है।
संतोष ने बस इंटर तक की थी पढ़ाई, जबरन हुई थी शादी
बताया जाता है कि मात्र इंटर तक की पढ़ाई करने वाले संतोष घर की हालत को देख हरियाणा एक फैक्ट्री में काम करने गया और कुछ दिनों तक वहां काम किया। लेकिन संतोष के माता-पिता अपने एकलौते पुत्र को अपने से दूर नहीं रख सकते थे। लिहाजा संतोष गांव आया और पहले उसने सब्जी की खेती शुरू की। इसके बाद उसने मुर्गी फार्म भी खोला। साथ ही मारुती भान खरीदा, जिसे खुद वह भाड़े पर चलाने लगा। इसी बीच रुन्नीसैदपुर थाना क्षेत्र के थुम्मा गांव के कुछ स्वजातीय लोगों ने जबरन उसकी शादी अपने गांव में एक लड़की से करा दी। हालांकि, बिना तिलक-दहेज के इस आदर्श शादी को संतोष एवं उसके परिजनों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उसकी जिंदगी की गाड़ी इसी तरह चल रही थी। इसी बीच वह चार बच्चियों का पिता भी बना। लेकिन गांव में जमींदार बंधुओं के खिलाफ सुलग रही आग के तपन से वह भी अपने आप को नहीं बचा पाया। इसी बीच उसके पिता पर सुबोध राय ने जानलेवा हमला किया।
दरअसल, हर तरह से हावी जमींदार बंधुओं को उन्हीं की भाषा में जवाब देने के लिए सर्वप्रथम वर्ष 2001 में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दौरान नवल किशोर राय के खिलाफ मुखिया प्रत्याशी के रूप में प्रमोद ठाकुर को खड़ा किया गया। इस चुनाव में नवल राय की जीत तो हुई। लेकिन नवल राय को प्रमोद ठाकुर से कड़ी टक्कर मिली थी। अपने रियासत के मुलाजिमों की इस जुर्रत ने जमींदार बंधुओं के खून में हलचल मचा दिया। लिहाजा, मुखिया चुनाव जितने के बाद नवल राय के भाई और उनके गुर्गे और बेखौफ हो गए। इसी के बाद से दोस्तिया गांव और ग्रामीणों की दुर्दशा की नींव पड़ गई और संतोष को नक्सलियों के लाल रास्ते पर चलने को मजबूर होना पड़ा। इधर, पटना में संतोष की हुई गिरफ्तारी के बाद सूबे के कई जिलों में हुए नक्सली घटना को लेकर की थाना की पुलिस रिमांड पर लेती रही। जेल में ही रहने के दौरान ही उसे महसूस हुआ कि नक्सली संगठन ने उससे किनारा करना शुरू कर दिया है। यही नहीं, उसे अपने विश्वस्त सूत्रों से संगठन के गतिविधियों की जानकारी मिलती रही। संगठन में जाति-पाती हावी होने लगी। संगठन अपने उद्देश्य से भटकते हुए स्वार्थ सिद्धी का एक प्लेटफ़ॉर्म बन गया। संगठन की गतिविधियां गलत रास्तों की ओर मुड़ गई।
जानकार बताते हैं कि इन सब बातों के कारण संगठन को अलविदा कहने का मन संतोष ने जेल में रहने के दौरान ही बनाया और जमानत पर छूटने के बाद उसके मन में सामाजिक जीवन जीने के बीज अंकुरित होने लगे। परिणाम स्वरुप उसने कुछ लोगों का एक संगठन 'परशुराम सेना' नाम से बनाया। संगठन से लोग जुड़ने लगे। तभी परशुराम सेना के सदस्यों ने सीतामढ़ी के डुमरा रोड स्थित नवल किशोर राय के डेरा पर धावा बोलकर उसकी हत्या कर दी। उसके बाद परशुराम सेना का नाम भी अपराधी गतिविधियों से जुड़ गया। इसी बीच कुछ अपराधी गतिविधियों से जुडे़ लोगों ने उससे संपर्क बनाना शुरू किया और उसके नाम का उपयोग कर रीगा थाना क्षेत्र के अन्हारी गांव स्थित सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शाखा में डाका डाला। जिसमें अपराधियों ने कैश तो लुटा ही, साथ में बैंक के गार्ड की गोली मरकर हत्या कर दी। इस कांड में संतोष झा भी नामजद हुआ।
इस घटना के बाद उसके पांव अब अपराध की दुनिया की और मुड़ गये और अपना एक आपराधिक संगठन 'पीपुल्स लिबरेशन आर्मी' नाम से बनाया। चूंकि परशुराम सेना का नाम आपराधिक गतिविधियों से जुड़ने के बाद उसे नई आपराधिक संगठन खड़ा करना पड़ा। जिस अपराधिक संगठन ने कई आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया। उसके बाद संतोष झा उत्तर बिहार में अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया, जो देश के बाहर रहकर अपने संगठन को संचालित करने लगा। रंगदारी के लिए उसके गुर्गे कंस्ट्रक्शन कंपनी के अधिकारियों को मौत के घाट उतारने लगे। सूत्रों के अनुसार, बहेड़ी में उसके गुर्गों ने रंगदारी के लिए ही दो इंजीनियरों की हत्या कर दी थी। संतोष झा के बढ़े हुए अपराधिक कद से उसे राजनितिक संरक्षण भी मिलने लगा। जिसमें एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के अलावा एक विधान पार्षद का भी नाम सामने आया। इसके अलावा पुलिस महकमे के एक उच्चाधिकारी की सहानुभूति उसे मिलने की बात बताई जा रही है। जिस पदाधिकारी ने अपनी ओर उठ रहे ऊंगली को दबाने के लिए सफल विभागीय कार्रवाई भी कराई है।